पिछले दिनों देश भर के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी को लेकर बातें सामने आ रही थी। यह बात अब लगभग सभी लोग जानते हैं की कोरोना के चलते मरीज के शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है, यहां तक की शरीर में ऑक्सीजन के स्तर में कमी को कोरोना के मुख्य लक्षणों में गिना जाता है। ऐसे में शरीर में ऑक्सीजन के स्तर को बनाए रखने के लिए मेडिकल ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है। ETV भारत सुखीभवा अपने पाठकों के साथ सांझा कर रहा है मेडिकल ऑक्सीजन तथा उससे जुड़ी कुछ विशेष जानकारियां ।
क्या है मेडिकल ऑक्सीजन
हमारे वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन में कई दूसरी गैसें, धूल और नमी भी होती है, जिसे सामान्य अवस्था में स्वस्थ इंसान के फेफड़े अलग कर देते है और शरीर में केवल ऑक्सीजन जाती है। लेकिन शारीरिक रूप से कमजोर या रोगग्रस्त मरीज के फेफड़े प्राकृतिक रूप से ऑक्सीजन ग्रहण करने में सक्षम नहीं हो पाते है, तो उन्हें मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। मेडिकल ऑक्सीजन को 98 प्रतिशत तक शुद्ध माना जाता है, क्योंकि इसमें प्राकृतिक ऑक्सीजन के मुकाबले अन्य गैस, नमी, धूल आदि जैसी अशुद्धियां नहीं होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से मेडिकल ऑक्सीजन अति आवश्यक दवाओं की सूची में भी शामिल किया गया है, और इसे आमतौर पर चिकित्सीय सलाह पर ही दिया जाता है।
कैसे बनती है मेडिकल ऑक्सीजन
हमारे वातावरण में ऑक्सीजन सभी जगह व्याप्त है। हवा में इसका स्तर 21 प्रतिशत, नाइट्रोजन का स्तर 78 प्रतिशत होता है तथा हाइड्रोजन, नियोन, जीनोन, हीलियम और कार्बन डाईऑक्साइड जैसी गैसों का स्तर संयुक्त रूप से 1 प्रतिशत होता है। वहीं पानी में मौजूद 10 लाख मॉलिक्यूल्स में से ऑक्सीजन के 10 मॉलिक्यूल्स होते हैं।
मेडिकल ऑक्सीजन तैयार करने की प्रक्रिया प्लांट में होती है। मेडिकल ऑक्सीजन निर्माण प्रक्रिया के दौरान हवा में से विभिन्न गैसों से केवल ऑक्सीजन को निकालकर अलग किया जाता है। एयर सेपरेशन की इस तकनीक में हवा को पहले कंप्रेस किया जाता है और फिर फिल्टर की मदद से इसमें से अशुद्धियां निकाल दी जाती हैं। जिसके उपरांत हवा को डिस्टिल किया जाता है, जिससे ऑक्सीजन से बाकी गैस पूरी तरह से अलग हो जाती है। इस प्रक्रिया में हवा में मौजूद ऑक्सीजन द्रव्य में तबदील हो जाती है, जिसको सरलता से बड़े-बड़े टैंकरों में संग्रहीत किया जाता है। इन टैंकरों को एक खास तापमान पर डिस्ट्रिब्यूटरों तक पहुंचाया जाता है। इसके उपरांत डिस्ट्रिब्यूटर के स्तर पर तरल ऑक्सीजन को फिर से गैस के रूप में बदला जाता है और सिलेंडर में भरा जाता है।
इसके अलावा भी मेडिकल ऑक्सीजन तैयार करने के कुछ तरीके हैं, जिनमें वैक्यूम स्विंग एडसरप्शन प्रोसेस तथा इलेक्ट्रोलिसिस काफी प्रचलित है। इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया में पानी से ऑक्सीजन अलग की जाती है। जिसके लिए पानी में करंट पास करते हुए उसे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ दिया जाता है। दोनों गैसें जैसे ही अलग होती हैं, उन्हें मशीनों के जरिए सोख लिया जाता है। इस दौरान ऑक्सीजन तो बनती ही है, साथ ही हाइड्रोजन गैस भी तैयार होती है।
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मेडिकल ऑक्सीजन की कमी से बढ़ी परेशानी
आंकड़ों की माने तो बीते अप्रैल माह में कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण गंभीर हुई स्थिति के मद्देनजर देश में मेडिकल ऑक्सीजन की खपत लगभग 4,795 मीट्रिक टन हो गई थी। अचानक से बढ़ी मांग के चलते देश भर में ऑक्सीजन की सप्लाई में काफी ज्यादा समस्याएं आने लगी थी। इस समस्या के निवारण के लिए ज्यादा से ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन निर्माण का कार्य किया जा रहा है। इसके अलावा सरकारी तथा गैर सरकारी स्तर पर मेडिकल ऑक्सीजन के निर्माण के लिए कुछ नए प्लांट की भी शुरुआत की गई है, यही नहीं कुछ पूर्व में बंद हो चुके ऑक्सीजन प्लांट को वापस शुरू किया गया है।
जानकार तथा चिकित्सक उम्मीद जता रहे है की इन सभी संयुक्त प्रयासों के चलते जल्द ही ऑक्सीजन की उपलब्धता सरल होगी और जरूरतमंदों को वर्तमान में फैली मेडिकल ऑक्सीजन के सिलेंडरों की कालाबाजारी की समस्या से भी निजात मिलेगी।