हाल ही में मध्य प्रदेश के एक अखबार में खबर छपी थी कि एक युवक लगातार एक हफ्ते तक मोबाइल में खेल खेलते-खेलते इस कदर विक्षिप्त हो गया कि उसने सब से बात करनी बंद कर दी. यहां तक कि वह अपने माता-पिता तथा भाई बहन को पहचाने नहीं में भी अक्षम हो गया था. स्थिति इतनी खराब हुई कि उसे मनोचिकित्सकों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा.
यह सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं है. मनोचिकित्सक इस बात की पुष्टि करते हैं कि बीते कुछ समय में बच्चों में स्क्रीन गैजेट्स की लत काफी ज्यादा बढ़ गई है. जिसके कारण न सिर्फ उनका मानसिक स्वास्थ्यबल्कि शारीरिक स्वास्थ्य भी काफी ज्यादा प्रभावित हो रहा है.
एक समय था बच्चे घर के बाहर खेलों में ज्यादा व्यस्त रहते थे. शाम होते ही घर से बाहर खेलने के लिए निकले बच्चों को माता-पिता को डांट-डांट कर घर बुलाना पड़ता था. लेकिन फिलहाल माता पिता के समक्ष सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह अपने बच्चों को मोबाइल या लैपटॉप के सामने से कैसे हटाए और उन्हें घर के बाहर खेलने के लिए कैसे भेजें. पिछले लगभग 2 साल की अवधि कोरोना के चलते मोबाइल या लैपटॉप का ज्यादा इस्तेमाल पढ़ाई तथा दफ्तर के कार्यों के चलते काफी ज्यादा बढ़ गया था. लेकिन विशेषकर बच्चों में उस दौर की जरूरत अब समस्या बन कर उभर रही है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2019 में बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर कुछ गाइडलाइंस जारी की थी. जिनके अनुसार 1 साल से कम उम्र के बच्चों का स्क्रीन टाइम जीरो होना चाहिए, यानी उन्हें बिल्कुल भी टीवी, लैपटॉप या मोबाइल नहीं देखना चाहिए. इसके अलावा 2 से 4 साल के बच्चों को पूरे दिन में 1 घंटे से ज्यादा स्क्रीन नहीं दिखानी चाहिए . यही नही उससे बड़े बच्चों को भी 24 घंटे में सिर्फ 1 घंटे ही टीवी , लैपटॉप या मोबाइल जैसी चीजें देखने की अनुमति मिलनी चाहिए क्योंकि इससे ज्यादा स्क्रीन टाइम होने का बच्चों के दिमागी विकास पर बुरा असर पड़ता है.
लेकिन पिछले कुछ समय में पहले कोरोनावायरस से उत्पन्न हुई परिस्थितियों और इस दौरान लगातार ऑनलाइन क्लासेज, ऑनलाइन ट्यूशंस के कारण स्क्रीन पर बने रहने के चलते बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय लैपटॉप तथा मोबाइल के समक्ष बने रहने की आदत पड़ गई है. यहां तक कि समय और परिस्थितियां अनुकूल होने के बावजूद अब बड़ी संख्या में बच्चे घर से बाहर जाकर खेलने की इच्छा कम व्यक्त करते हैं. इसकी बजाय वे अपने मोबाइल में खेलने को प्राथमिकता देते हैं.
बच्चों के बेहतर शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी है कि उन्हे इस आदत से मुक्ति मिले. लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल है कैसे!
मनोवैज्ञानिक तथा काउंसलर डॉ रेणुका शर्मा बताते हैं बच्चों में लगी इन आदतों को छुड़ाना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन लगातार प्रयासों से उनमें लगातार स्क्रीन के समक्ष बैठे रहने की आदत को बदला जा सकता है. जिसके लिए कुछ चीजों को ध्यान में रखा जाना बहुत जरूरी है.
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घर में सभी के लिए समान हो नियम
बच्चा जो कुछ भी सीखता है वह ज्यादातर अपने मां-बाप को देख कर सीखता है. सिर्फ बच्चे ही नहीं वर्क फ्रॉम होम कल्चर के चलते आजकल ज्यादातर कामकाजी माता-पिता भी ना सिर्फ काम बल्कि मनोरंजन के लिए भी अपना ज्यादातर समय मोबाइल और लैपटॉप के समक्ष बताते हैं. यदि बच्चों में मोबाइल तथा लैपटॉप इस्तेमाल कम करना है तो माता-पिता को भी इन चीजों से दूरी बनानी पड़ेगी. जिसके लिए ऑनलाइन क्लास या ऑफिस के कार्य के बाद जहां तक संभव हो गैजेट्स से दूरी बनाकर रखने का प्रयास करें, विशेष तौर पर मोबाइल से.
यदि अभिभावक ज्यादा समय मोबाइल पर बिताते हैं तो बच्चे भी स्वतः कभी जिज्ञासा तो कभी मनोरंजन की लालसा में मोबाइल के इस्तेमाल के लिए लालायित हो जाते हैं. ऐसे में बच्चों के सामने उदाहरण रखने के लिए सबसे पहले माता-पिता को अपना स्क्रीन टाइम कम करना चाहिए
बच्चों को समय दे माता पिता
आज के समय में एकल परिवारों का ज्यादा चलन है. दरअसल संयुक्त परिवारों में यदि माता-पिता बच्चों को जरूरी मात्रा में समय नहीं दे पाते हैं तो परिवार के अन्य सदस्यों के साथ बच्चे के चलते बच्चे अकेलापन महसूस नहीं करते हैं तथा व्यस्त रहते हैं. लेकिन एकल परिवारों में यह संभव नहीं है. उस पर वर्तमान समय में ज्यादातर माता-पिता दोनों कामकाजी होते हैं. ऐसे में बच्चे कई बात अकेलापन महसूस करते हैं. इसलिए बच्चे मनोरंजन तथा अकेलेपन को दूर करने के लिए ज्यादातर मोबाइल, टीवी और लैपटॉप का सहारा लेते हैं.
बहुत जरूरी है कि माता-पिता जब भी संभव हो अपने बच्चों के साथ क्वालिटी समय बताएं. उनके साथ घर में इंडोर गेम या बोर्ड गेम खेलें, उनसे बातें करें उनकी समस्याओं को जाने, घर के कार्यों में उन्हें अपनी मदद करने के लिए उत्साहित करें और साथ ही कभी-कभी उन्हे घूमाने ले जाएं .
कई बार माता-पिता इस सोच के साथ कि कहीं बच्चे उन्हें परेशान ना करें, उनके हाथ में खुद ही मोबाइल पकड़ा देते हैं जिससे वे व्यस्त हो जाए. यह आदत बहुत गलत है.
गैजेट्स को ना बनाएं बहाना या घूस
डॉ रेणुका बताती हैं की कई बार छोटे बच्चों को खाना खिलाने के लिए माता-पिता उनके हाथ में मोबाइल पकड़ा देते हैं जिससे वह उसमें व्यस्त रहें और माता-पिता उन्हें खाना खिलाते रहे. ऐसे में बच्चे को पता भी नहीं चलता है कि वह क्या खा रहा है कितना खा रहा है . यह एक बहुत गलत आदत है. बच्चों में खाने की अच्छी आदतों को विकसित करने के लिए बहुत जरूरी है खाते समय का ध्यान सिर्फ भोजन पर हो, साथ ही उन्हें पता हो कि वह क्या खा रहे हैं.
इसके अलावा कई बार माता-पिता बच्चों से कोई कार्य कराने के लिए उन्हें घूस देते हैं कि यदि तुमने यह कार्य किया तो हम तुमको ज्यादा देर टीवी या मोबाइल देखने की आज्ञा दे देंगे. यह आदत भी सही नहीं है. पहली बात तो बच्चे को किसी कार्य कराने के लिए घूस देना अच्छी आदत नहीं है क्योंकि ऐसा करने से उनमें किसी भी कार्य के उपरांत लाभ या इनाम की लालसा बढ़ जाती है. वहीं यदि किन्हीं कारणों से माता-पिता को ऐसा करना भी पडे तो बच्चों को प्रेरित तथा उत्साहित करने के लिए उन्हें इस तरह के इनाम का वायदा करें जो उनके शारीरिक, मानसिक है या व्यवहारिक विकास में फायदेमंद हो. जैसे यदि तुमने कोई भी कार्य समय पर पूरा किया तो हम साथ मिलकर तुम्हारा पसंदीदा खेल खेलेंगे या अगली बार जब हम घूमने जाएंगे तो तुम्हारे पसंदीदा स्थान पर जाएंगे या फिर उनका पसंदीदा खाना उन्हे खिलाएं.
छोटे-छोटे प्रयासों के नियमित अभ्यास से बच्चों में गैजेट्स के अनावश्यक इस्तेमाल की आदत को सुधारा जा सकता है.
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