एक शोध के अनुसार, जो लोग रचनात्मक शौक यानी हॉबीज़ से जुड़े होते हैं, उनके जीवन के प्रोढकाल और वृद्धकाल में संज्ञानात्मक गिरावट आने की संभावना 32% तक कम होती है। हॉबी होने के संज्ञानात्मक लाभों के अलावा, फिटनेस और स्वास्थ्य लाभ भी हैं। कई रिसर्च में यह बात साबित हो चुकी है की अच्छी और सकारात्मक हॉबी मनुष्य की सोच में सकरात्मकता और जीवन में खुशी, संतुष्टि, तथा आत्मविश्वास बढ़ाने में काफी मददगार होती है ।
दरअसल नौकरी तथा पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियां निभाते-निभाते हम अपनी जिंदगी में इस कदर भागना शुरू कर देते हैं की अपनी हॉबी यानी अपने शौकों को दरकिनार कर देते हैं। सच तो यह है कि जब हम अपने शौक को समय देते हैं तो न केवल हमारा मूड अच्छा हो जाता है, बल्कि आत्मिक संतुष्टि भी मिलती है।
अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित 2010 की समीक्षा 'द कनेक्शन बिटवीन आर्ट, हीलिंग एंड पब्लिक हेल्थ: ए रिव्यू ऑफ करंट लिटरेचर, में शोधकर्ताओं ने रचनात्मक कार्यों के स्वास्थ्य लाभ की जांच की थी। इस अध्धयन के निष्कर्षों में सामने आया था की कला और मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के बीच मजबूत संबंध होता है। विशेष रूप से, इस शोध में शोधकर्ताओं ने पाया कि रचनात्मकता मस्तिष्क और शरीर को इस कदर प्रभावित करती है की इससे मूड बेहतर होता है व घबराहट कम हो जाती है, साथ ही संज्ञानात्मक कार्य बढ़ जाते हैं, पुरानी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है और प्रतिरक्षा स्वास्थ्य में सुधार होता है।
शोध में पाया गया की शौक के रूप में ही सही, रचनात्मक अभिव्यक्ति चिंता, अवसाद या आघात से पीड़ित लोगों के लिए उपचार सरीखी होती है। जैसे संगीत मस्तिष्क की गतिविधि को शांत करता है, जिससे भावनात्मक संतुलन की भावना पैदा होती है। वहीं ये किसी आघात से उबरने वालों के लिए और पीड़ितों को अपने विचारों को बाहर निकालने में मदद करता है। रचनात्मक होने से संज्ञानात्मक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शोधकर्ताओं ने सबूत पाया है कि रचनात्मकता मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करती है। जैसे किसी भी रचनात्मक चीज पर काम करना, चाहे वह एक छोटी कहानी लिखना हो या किसी बगीचे को लगाना, सभी समस्या-समाधान और महत्वपूर्ण सोच, कौशल को बढ़ाने में मदद करते हैं।