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'कोविड-19 डायरी' 2020

कोविड-19 के कारण 2020 ऐसा साल रहा जिसने पूरी दुनिया में हिला कर रख दिया. कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में असंख्य लोगों की जान तो ली ही, साथ ही बड़ी संख्या में लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित किया. बच्चे हो या बड़े कोरोना के वायरस ने सभी को अपनी चपेट में लिया. इस पूरे दौर में एक और तथ्य ने लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें खींची, वह है कोरोना संक्रमण के कारण लोगों में कई और शारीरिक समस्याओं की शुरुआत तथा संक्रमण के उपरांत ठीक हो चुके लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर पार्श्व प्रभाव यानि साइड इफेक्ट.

COVID-19
कोविड-19

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Published : Dec 24, 2020, 9:01 AM IST

Updated : Dec 24, 2020, 11:40 AM IST

लगभग एक साल बीतने को आया है, लेकिन कोरोना अभी भी लोगों के मन मस्तिष्क में डर का पर्याय बना हुआ है. सिर्फ कोरोना ही नहीं उसके पार्श्व प्रभावों ने भी शोधकर्ताओं और चिकित्सकों की नींद उड़ा रखी है. वायरस की बदलती संरचना, उसके लक्षणों में अंतर और शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का नतीजा है की वायरस का टीका आने के बावजूद लोग चिंता और संशय की स्थिति में हैं की क्या वे कारगर होंगे.

इस साल सिर्फ कोरोना ही नहीं, बल्कि उसके कारण होने वाले पार्श्व प्रभावों के चलते शरीर के लगभग सभी तंत्रों में गंभीर बीमारियों के मामले देखने सुनने में आए. श्वसन तंत्र हो, पाचन तंत्र हो या फिर तंत्रिका तंत्र सभी पर कोरोना के गंभीर प्रभाव पड़े. वर्ष 2020 की कोरोना डायरी से सबसे ज्यादा सुर्खियों में आई बीमारियों और उनके शरीर पर पड़े प्रभावों से जुड़ी जानकारियां ETV भारत सुखीभवा अपने पाठकों के साथ साझा कर रहा है.

कोविड-19

कोविड-19 ने सर्वप्रथम चीन देश में तबाही मचाई, जिसके उपरांत धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया. इस रोग को प्रारंभिक नाम 'सार्स कोव 2' दिया गया , जिसे बाद में कोविड-19 कहा गया. सर्वप्रथम खांसी, जुकाम और तीव्र बुखार को कोरोना का लक्षण माना गया. फिर इन लक्षणों में सांस लेने में परेशानी, सूंघने और स्वाद लेने की क्षमता में कमी को शामिल किया गया. इसके उपरांत इन सभी लक्षणों के साथ डायरिया, सिर और बदन में दर्द और कमजोरी और थकान को भी कोरोना का लक्षण माना गया. इस साल बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने कोरोना के कारण आपनी जान गवाई. इस फैलने वाले संक्रमण ने लोगों के जीवन जीने का तरीका ही बदल दिया. सामाजिक दूरी के साथ, मास्क की अनिवार्यता और ना सिर्फ अपने बल्कि अपने आसपास के सेनेटाइजेशन को लोगों ने अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाया. जान-माल की हानी और संक्रमण के पार्श्व प्रभावों के कारण इससे अब तक की सबसे गंभीर महामारी कहा जा रहा है.

कोमोरबिड बीमारियों से पीड़ित लोगों पर ज्यादा असर

इस संक्रमण का सबसे ज्यादा असर उन लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ा, जो पहले से ही हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह जैसी कोमोरबिड बीमारियों से पीड़ित थे. इस तरह के रोगों से पीड़ित लोगों के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली यानि इम्यून सिस्टम वैसे ही कमजोर हो जाता है, उस पर कोरोना का वायरस भी सीधे हमारे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र पर हमला करता है. कोरोना के कारण जान गंवाने वाले लोगों में से एक बड़ा प्रतिशत कोमोरबिड बीमारियों से पीड़ित लोगों का रहा. विशेष तौर पर हृदय रोगियों की बात करें तो आंकड़ों के अनुसार साल 2020 में हार्ट के मामले भी पहले के मुकाबले काफी ज्यादा बढ़ गए. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी सूचना के अनुसार पिछले 20 सालों के मुकाबले इस साल हार्ट अटैक के कारण वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा मौतें हुई. आंकड़ों के मुताबिक, 16 प्रतिशत मौतों का कारण दिल की बीमारी थी.

फेफड़ों और श्वसन तंत्र पर असर

शुरुआत से ही कोरोना को श्वसन तंत्र और फेफड़ों से जुड़ी बीमारी माना गया, क्योंकि इसके लक्षण फ्लू और निमोनिया जैसे थे और कोरोना संक्रमित होने पर सबसे ज्यादा असर भी हमारे फेफड़ों पर ही पड़ता है. कोरोना वायरस से पीड़ितों के शरीर में सबसे ज्यादा परेशानी सांस लेने में ही आती है.

कोरोना संक्रमण तथा उसके पार्श्व प्रभावों के चलते बड़ी संख्या में लोगों में फेफड़ों संबंधी गंभीर रोगों के मामले सामने आए है. जिनके फलस्वरूप बड़ी संख्या में लोगों के फेफड़ों ने वेंटिलेशन और गैस एक्सचेंज फंक्शन तक काम करना बंद कर दिया.

इतना ही नहीं कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद भी लोगों के श्वसन तंत्र पर गंभीर दीर्घकालिक प्रभाव नजर आ रहे है.

पाचन तंत्र और पैंक्रियाज पर असर

कोरोना वायरस मरीजों की सांसों पर ही नहीं, बल्कि यह उनकी भूख पर भी असर डालता है. इससे इम्युनिटी (प्रतिरोधक क्षमता) घट जाने के साथ-साथ लीवर, आंत सहित पाचन तंत्र की प्रक्रिया भी कमजोर हो जाती है. नतीजतन मरीजों को पेट दर्द, दस्त, भोजन में स्वाद का पता ना चलने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. वहीं चिकित्सकों की माने तो इस साल ऐसे मरीजों की संख्या काफी बढ़ी है, जिनका वायरस की वजह से गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल ट्रैक बिगड़ गया है और पाचन तंत्र भी प्रभावित हुआ. नतीजतन ना केवल मरीजों की भूख पर असर पड़ा, बल्कि उनके शरीर में काफी ज्यादा कमजोरी भी बढ़ गई.

मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव

कोविड-19 के मुख्य लक्षणों में से प्रमुख स्वाद और गंध में कमी, कोरोना वायरस के हमारे मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र पर पड़ने वाले नकारात्मक असर का ही नतीजा रहा. सिर्फ यही नहीं नसों में दर्द और सूजन व खून के थक्के जमना, लगातार सिर में दर्द या अचानक से सिर में तीव्र दर्द का कारण भी रहा.

इसके अलावा सबसे चिंताजनक बात यह रही की चिकित्सकों के पास बड़ी संख्या में ऐसे मामले आए जहां कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों के मस्तिष्क के उस हिस्से को स्थाई क्षति पहुंची, जो हमारे स्वाद और सूंघने की क्षमता को नियंत्रित करते हैं. इसके अतिरिक्त सिर में माइग्रेन जैसे दर्द की समस्या भी काफी ज्यादा देखने सुनने में आ रही है.

किडनी से संबंधित रोग बढ़े

कोविड से संक्रमण के चलते बड़ी संख्या में लोगों की किडनी क्षतिग्रस्त तथा प्रभावित हुई. जिसके कारण लोगों को किडनी डायलिसिस की आवश्यकता पड़ी. चिकित्सकों की माने तो आम तौर पर जब किसी इन्फेक्शन से किडनी खराब होती है, या डायलसिस की जरूरत पड़ती है, तो किडनी रिकवर होने की उम्मीद बहुत ज्यादा रहती है, और यह आमतौर पर तीन दिन से तीन हफ्ते के बीच रिकवर भी हो जाती है. लेकिन कोविड-19 संक्रमण से पीड़ितों में गंभीर रूप से किडनी के क्षतिग्रस्त होने या खराब हो जाने के मामले सामने आ रहे है, जो जल्दी ठीक नहीं हो रहें है.

यहां सबसे अधिक चिंता की बात यह है की चिकित्सक मानते है की कोविड-19 के पार्श्व प्रभावों के कारण मरीजों को दीर्घकालिक क्रोनिक डायलिसिस की जरूरत पड़ सकती है, जिसके कारण ऐसी समस्या से पीड़ित लोगों को भविष्य में ट्रांसप्लांट की जरूरत भी पड़ सकती है.

मानसिक समस्याओं ने साल भर तक डराया

कोरोना के डर ने शुरू से ही लोगों को बहुत अधिक डराया है. चाहे चिंता बीमारी की हो, आर्थिक अस्थिरता की हो, बेरोजगारी की हो, भविष्य की हो, पढ़ाई की हो, या फिर मृत्यु की हो, पूरे साल लगभग पूरी दुनिया के अधिकांश लोग तनाव, अवसाद और बेचैनी जैसी समस्याओं से घिरे रहे.

चाहे चर्चित हस्तियां हो या फिर आमजन, इस वर्ष बड़ी संख्या में लोगों ने आत्महत्या कर स्वयं अपनी जान ले ली. इनमें बच्चे, बड़े तथा बूढ़े, हर वर्ग तथा हर लिंग के लोग शामिल थे. ये आंकड़ा सामान्य से काफी ज्यादा रहा, जिसने बड़ी संख्या में लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी. जिसके चलते कई सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं ने मनोचिकित्सकों की सहायता से ऑनलाइन मदद की शुरुआत की.

आंकड़ों की माने तो वर्ष 2020 में मनोचिकित्सकों से मदद लेने वालों की संख्या में हर वर्ष के मुकबलें चौगुनी वृद्धि हुई है.

Last Updated : Dec 24, 2020, 11:40 AM IST

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