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प्लास्टिक के डिब्बों में खाना बनाने तथा रखने से बचें

प्लास्टिक के पर्यावरण तथा जीवन के लिए खतरों को लेकर दुनियाभर में जनजागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन बावजूद इसके प्लास्टिक अलग-अलग रूपों में हमारे जीवन में शामिल है. ऐसे में बहुत जरूरी हो जाता है कि स्वास्थ्य और सेहत के मद्देनजर प्लास्टिक का इस्तेमाल करते समय उससे जुड़ी सावधनियों को अवश्य अपनाया जाए.

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प्लास्टिक के डिब्बे

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Published : Nov 26, 2021, 3:01 PM IST

घर और बाहर की तमाम जरूरतों में प्लास्टिक हर रूप में शामिल है. समान रखने के डब्बे, फर्नीचर, खाने के बर्तन, प्लास्टिक की थैलियाँ और न जाने क्या क्या ? लेकिन प्लास्टिक से होने नुकसान को लेकर आमतौर पर बातें सुनने में आती रहती हैं. विशेषतौर पर खाना खाने या उसे गरम करने में प्लास्टिक के बर्तनों या डिब्बों के इस्तेमाल को लेकर सुनने में आता है कि वह कैंसर तथा अन्य गंभीर रोगों का कारण बन सकते हैं.

इंदौर के वरिष्ठ जनरल फिजीशियन डॉ संजय जैन बताते हैं कि हल्की गुणवत्ता वाले प्लास्टिक के डब्बों में माइक्रोवेव में खाना गरम करना और या फिर उनमें तेज गरम खाना रखना, दोनों नुकसानदायक हो सकते हैं. इसके अलावा पन्नियों में गरम चाय या खाने का गरम सामान लाना और फिर उनका सेवन करना भी नुकसान पहुंचा सकता है.

स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालता है प्लास्टिक

इस संबंध में की गई बहुत सारी रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि जब हम गर्म खाना प्लास्टिक के कंटेनर में रखते है तो उसके रसायन कुछ मात्रा में हमारे खाने या पानी में भी मिल जाते है. जो धीमे धीमे हमारे शरीर को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. यही नही प्लास्टिक के कंटेनर में खाना दोबारा गर्म करना या होम डिलीवरी अथवा टेकअवे में प्लास्टिक के बरतनों में आने वाला गर्म भोजन को खाना भी हानिकारक हो सकता है.

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की वेबसाइट पर उपलब्ध एक रिपोर्ट में भी प्लास्टिक के कंटेनर में भोजन के नुकसान से जुड़े इन अध्ययनों के उल्लेख किया गया है. इस रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक से खाद्य पदार्थों में प्रवेश करने वाले रसायनों का प्रभाव, लंबे समय में, चयापचय संबंधी विकार (मोटापे व पाचन संबंधी) जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है. यहाँ तक की इसका प्रजनन क्षमतापर भी असर पड़ सकता है.

वर्ष 2018 में प्रकाशित एक शोध में भी यह बात सामने आई है कि खाना बनाने वाले प्लास्टिक के बर्तनों के इस्तेमाल से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं. इन बर्तनों में खाना बनाने या उसे गरम करने से गर्भवती महिलाओं और उनके भ्रूण पर असर पड़ता है साथ ही बच्चे के थायरॉयडहॉर्मोन का स्तर भी गिरता है और उनके दिमाग का विकास भी प्रभावित होता है.

शिकागो की बायोसाइंटिस्ट तथा शोधकर्ता डॉ. जॉडी फ्लॉज ने इस शोध के निष्कर्षों में बताया था कि खाने-पीने के सामान के डिब्बों, कंटेनर्स, सीडी, डीवीडी और बोतलों आदि के निर्माण के लिए पॉलीकार्बोनिक प्लास्टिक का प्रयोग किया जाता है, जिसमें बाइफेनोल-ए (BPA) कैमिकल होता है. जो महिलाओं में बांझपन का कारण हो सकता है. इस शोध में उन्होंने चूहों पर परीक्षण किया था.

दरअसल जानकार भी बताते हैं कि बाइफेनोल-ए तथा प्लास्टिक में मिलने वाल एक अन्य रसायन 'एंडोक्रिन डिस्ट्रक्टिंग' दिल की बीमारी और कैंसर के खतरे को भी बढ़ाता है. यहीं नही यह शरीर में एस्ट्रोजेन हार्मोन के स्तर को प्रभावित करता है.

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प्लास्टिक में भोजन गरम होने पर होती हैं रासायनिक क्रियाएं

प्लास्टिक के पर्यावरण और जीवन को नुकसान को लेकर जागरूकता फैलाने तथा प्लास्टिक के कचरे के निस्तारण के लिए कार्य कर रहे युवा समाजसेवी कौस्तुभ कुकरेजा बताते हैं कि
प्लास्टिक के बर्तनों में खाना गरम करने तथा उनमें गरम खाना रखने से खतरनाक रसायन बनने शुरू हो जाते हैं .

वह बताते हैं कि दरअसल शुद्ध प्लास्टिक बायोकेमिकली ऐक्टिव न होने की वजह से अपेक्षाकृत कम जहरीला होता है. लेकिन जब इसमें दूसरी तरह के प्लास्टिक और रंग आदि मिला दिए जाते हैं तो यह सेहत और पर्यावरण के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते हैं.
कौन सी सावधानियाँ जरूरी

कौस्तुभ बताते हैं कि हमारे जीवन में प्लास्टिक को अलग करना सरल नही है. बचपन में स्कूल के टिफिन बॉक्स व पानी की बोतल से लेकर, घर या दफ्तर में समान रखने के डिब्बे, फ़ोल्डर , समान लाने-ले जाने वाली पन्नियाँ तथा कूड़ेदान सहित रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले अधिकांश सामान प्लास्टिक से ही बने होते हैं. प्लास्टिक के खतरों को मानते हुए वर्ष 2002 में, हमारे देश में 20 माइक्रोन मोटाई से कम मोटाई वाले प्लास्टिक बैग के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया था. वहीं पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 18 मार्च 2016 को 50 माइक्रोन से कम सभी पॉलिथिन बैग पर प्रतिबंध लगाने के लिए विनियमन पारित किया था. वर्तमान समय में देश के कई राज्यों में घोषित तौर पर इस प्रकार की पन्नियों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया हुया है , बावजूद इसके तथा उनसे होने वाले खतरों को लेकर लोगों में ज्यादा जागरूकता न होने के कारण लोग इन पन्नियों का इस्तेमाल करते हुए मिल जाते हैं. वहीं डॉ संजय जैन भी बताते हैं कि प्लास्टिक के खतरे के मद्देनजर जरूरी है कि उनके उपयोग के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखा जाय.

हमारे विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर प्लास्टिक के इस्तेमाल के दौरान अपनाई जाने वाली कुछ सावधानियाँ इस प्रकार हैं.

  • अच्छी गुणवत्ता वाले सामान ही खरीदे.
  • खाना पैक करने के लिए पॉलीप्रोपायलीन के बने उत्पाद ही खरीदें. क्योंकि इनमें सामान्यतः केमिकल रेजिस्टेंस पाई जाती है.
  • पॉलिस्टरीन से बना प्लास्टिक जिससे बने प्रॉडक्ट्स पर नंबर 6 दर्ज रहता है फूड पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता है लेकिन इसमें खाना गरम नही करना चाहिए. क्योंकि ऐसा करने से उसमें से कुछ गैसें निकलती हैं. जो हानिकारक हो सकती हैं.
  • माइक्रोवेव में भी प्लास्टिक के बरतनों में खाना पकाने और उसे बार-बार गरम करने से बचना चाहिए.
  • प्लास्टिक की बोतल में पानी गरम करने या किसी भी अवस्था में उनमें पानी के गरम हो जाने पर उस पानी को इस्तेमाल करने से बचना चाहिए. कई बार तेज धूप में खड़ी कार में रखी पानी की बोतल में पानी या अन्य पेय पदार्थ तेज गरम हो जाते हैं. ऐसे में इन प्लास्टिक बोतलों से निकला रसायन पानी को दूषित कर सकता है.
  • पॉलिथिन में चाय या गरम भोजन ना लें.
  • बच्चे को फीड करने के लिए प्लास्टिक की बोतल को खरीदने से पहले तथा उसके द्वारा दांत निकालने पर इस्तेमाल किए जाने वाले टिथर को खरीदने से पहले उसकी गुणवत्ता की जांच अवश्य कर लें. सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट की एक स्टडी में कहा गया है कि बच्चों के दांत निकलते वक्त उसे जो खिलौने दिए जाते हैं उनमें बेहद खतरनाक केमिकल्स पाए गए हैं.

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