पेरिस : एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी फेफड़ों की समस्याओं से पीड़ित बच्चों और वयस्कों को जलवायु परिवर्तन से और अधिक खतरा हो सकता है. यूरोपियन रेस्पिरेटरी जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट इस बात का सबूत पेश करती है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव जैसे हीटवेव, जंगल की आग और बाढ़, दुनिया भर के लाखों लोगों, विशेषकर शिशुओं, छोटे बच्चों और बुजुर्गों के लिए सांस लेने में कठिनाई को और बढ़ा देंगे.
यूरोपीय रेस्पिरेटरी सोसाइटी के पर्यावरण और स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर जोराना जोवानोविक एंडर्सन ने कहा, 'जलवायु परिवर्तन हर किसी के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, लेकिन इससे श्वसन रोगी सबसे अधिक असुरक्षित हैं. ये वे लोग हैं जो पहले से ही सांस लेने में कठिनाई का अनुभव करते हैं और वे हमारी बदलती जलवायु के प्रति कहीं अधिक संवेदनशील हैं. उनके लिए जलवायु परिवर्तन खतरनाक साबित होगा.'
'वायु प्रदूषण पहले से ही हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है. अब जलवायु परिवर्तन का असर सांस के मरीजों के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है.' रिपोर्ट के अनुसार इन प्रभावों में वायुजनित एलर्जी में वृद्धि शामिल है. इनमें लू, सूखा और जंगल की आग जैसी घटनाएं भी शामिल हैं, जिससे अत्यधिक वायु प्रदूषण और धूल भरी आंधियां होती हैं. साथ ही भारी वर्षा और बाढ़ से घर में उच्च आर्द्रता और फफूंदी भी रोगियों के लिए खतरनाक है.