ऑटिस्टिक बच्चे आमतौर पर दूसरों के साथ संवाद स्थापित करने में तथा प्रतिक्रिया देने में सक्षम नहीं होते हैं। उनका व्यवहार भी सामान्य बच्चों के मुकाबले अलग होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों की माने तो हर 160 में से एक बच्चा ऑटिस्टिक होता है। जिनमें से लगभग 40 % ऑटिस्टिक बच्चे बोलने में सक्षम नहीं होते हैं ।
ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक न्यूरोडेवलपमेंटल समस्या है जो की व्यक्ति के स्वास्थ्य और उनकी प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करती है। चूंकि इस अवस्था के लक्षण बच्चों में छः महीने से तीन साल की उम्र में दिखाई देने लगते हैं , ऐसे में यदि शुरुआत से ध्यान दिया जाय तो कुछ मामलों में काफी हद तक ऑटिज्म के लक्षणों पर नियंत्रण संभव है। यूं तो ऑटिज्म का कोई इलाज नहीं है लेकिन विभिन्न थेरेपियों के माध्यम से चिकित्सक तथा थैरेपिस्ट बच्चों की मदद कर सकते हैं। ऐसी ही एक थेरेपी है प्ले थेरेपी।
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खेल के माध्यम से दी जाने वाली थेरेपी के फायदे
काजल यू दवे बताती हैं कि प्ले थेरेपी एक ऐसा माध्यम है जिससे बच्चे सीखते हैं कि कैसे एक सुरक्षित माहौल में वह अपनी पसंद और नापसंद को दूसरों तक पहुंचा सकते हैं। आमतौर पर ऑटिस्टिक बच्चे एक स्थान पर ज्यादा देर तक नहीं बैठ सकते हैं, साथ ही किसी भी खेल, प्रतिक्रिया या गतिविधि को वह बार-बार दोहराते रहते हैं। अन्य बच्चों के साथ बाहरी लोगों के अलावा ज्यादातर मामलों में वह अपने परिजनों और भाई बहनों के साथ भी संवाद स्थापित करने और उन्हें अपनी जरूरतों के बारे में जानकारी देने में भी सक्षम नहीं हो पाते हैं। प्ले थेरेपी के दौरान थैरेपिस्ट प्रयास करता है कि बच्चों को एक ऐसा वातावरण और माध्यम दिया जा सके जिससे वह अपनी भावनाओं को दूसरों के समक्ष रख सके और उन्हें अपनी जरूरतों को लेकर अवगत करा सकें।
प्ले थेरेपी निम्नलिखित तरीकों से बच्चों की मदद कर सकती है:
- इस थेरेपी के माध्यम से ऑटिस्टिक बच्चे बात करना, बातों और निर्देशों को समझना तथा कुछ हद तक अपनी उम्र के दूसरे और सामान्य बच्चों के जैसे ही व्यवहार करने के स्वस्थ और सुरक्षित तरीके सीख सकते हैं।
- इस थेरेपी के माध्यम से ऑटिस्टिक बच्चों में लंबे समय तक एक स्थान पर बैठे रहने की क्षमता भी विकसित होती है। साथ ही उनमें लगातार किसी बात या शारीरिक प्रक्रिया को दोहराने की आदत में भी कमी आती है । इसके अलावा वह अपनी जरूरतों तथा कैसे उन्हें पूरा किया जा सकता है इस बारे में भी जानने लगता है।
- इस थेरेपी के दौरान खिलौनों, रेत तथा अन्य माध्यमों से ऑटिस्टिक बच्चे अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना सीख सकते है।
- यह एक ऐसी थेरेपी है जिसमें बच्चे को ज्यादा प्रयास नहीं करना पड़ता है क्योंकि खेल खेलना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और इसमें बोलना या दूसरों के साथ संवाद बनाने की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं होती है।
काफी कारगर है प्ले थेरेपी
काजल यू दवे बताती हैं कि प्ले थेरेपी अन्य थेरेपीयों के मुकाबले बच्चों के लिए आदर्श मानी जाती है क्योंकि इसमें ज्यादातर संवाद बनाने और एक दूसरे पर आश्रित होने की जरूरत नहीं पड़ती है। और चूंकि ऑटिस्टिक बच्चे लोगों से संवाद और संपर्क बनाने में ज्यादा सक्षम नहीं होते हैं, उनके लिए यह थेरेपी काफी ज्यादा कारगर साबित होती है।
ऑटिस्टिक बच्चों की समस्याएं और क्षमताएं एक दूसरे से भिन्न हो सकती है इसलिए इस थेरेपी के दौरान अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सीखने में उन्हें अलग-अलग समय लग सकता है। यानी इस थेरेपी के जरिए बच्चे की विकास की गति उनकी अवस्था के आधार पर अलगअलग हो सकती है। बहुत जरूरी है कि इसका अभ्यास नियमित तौर पर किया जाए और इसके साथ ही इसके फॉलो अप सेशन में भी नियमित रहा जाए।
प्ले थेरेपी के दौरान एक बार बच्चा जब वातावरण के साथ सामान्य हो जाए तो उसके साथ अन्य बच्चों को भी खेलने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है। आमतौर पर इस थेरेपी का माध्यम वार्तालाप तथा मौन दोनों हो सकते हैं। यह पूरी तरह से बच्चे की अवस्था पर निर्भर करता है। काजल यू वे बताती हैं कि आमतौर पर इस थेरेपी के लिए बच्चे की अवस्था के आधार पर अभ्यासों का निर्धारण किया जाता है।
इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिए davekajal26@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।