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जब था कोरोना का कहर, निजी लैब ने ढूंढे आपदा में अवसर..!

कोरोना महामारी के नाम पर जहां, निजी अस्पतालों में मरीजों की खूब जेब कटी. वहीं निजी लैब में ही जरूरी जांच के नाम पर कई गुना ज्यादा पैसे वसूले गए, तो इसे आपदा में अवसर क्यों न कहा जाए. चिकित्सा पेशे से जुड़े विशेसज्ञ भी यह मानते हैं कि कोरोना के नाम पर कुछ लूट तो जरूर हुई है, जिसे नहीं होना चाहिए था. इसके लिए जितना दोषी सरकार है, उससे ज्यादा लोग खुद भी जिम्मेदार हैं.

private labs looted in the name of corona test
आपदा में अवसर

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Published : Jul 15, 2021, 2:09 PM IST

नई दिल्लीः कोरोना के मामले थम गए हैं, लेकिन तीसरी लहर की आहट दिखाई देनी शुरू हो गई. ऐसे में लोगों के मन में दूसरी लहर की त्रासदी एक बुरे सपने की तरह दिख रही है. जब लोगों को खराब स्वास्थ्य व्यवस्था का खामियाजा भुगतना पड़ा था. ऑक्सीजन, दवाई और अस्पतालों के लिए लोग परेशान हो रहे थे, तो कुछ लोग आपदा में अवसर तलाश रहे थे.

डायग्नोस्टिक जांच और दवाइयां काफी महंगी हो गई थी. जिन मरीजों में एंटीजन और आरटी-पीसीआर टेस्ट से कोरोना की पहचान नहीं हो पा रही थी, वे लोग अपने मन से ही सीटी स्कैन, एक्स-रे और ब्लड टेस्ट करवाने के लिए डायग्नोस्टिक सेंटर्स के आगे भीड़ लगाने लगे. इसका फायदा भी डायग्नोस्टिक सेंटर्स के लोगों ने बखूबी उठाया.

...जब निजी लैब के ने ढूंढे़ आपदा में अवसर..!

तुलनात्मक रूप से अगर देखें, तो करोना की दूसरी लहर के दौरान डायग्नोस्टिक से संबंधित हर तरह की जांच लगभग 50 से 100 फीसदी तक महंगी हो गई. वहीं कोरोना के मामलों में ठहराव आने के बाद चीजें सामान्य हो गई. हालांकि सरकार ने इस पर नकेल कसने की कोशिश की, लेकिन इसका कोई विशेष असर नहीं हुआ और मरीजों को टेस्ट के नाम पर मोटी रकम गंवानी पड़ी.

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान लैब टेस्ट में अनाप-शनाप चार्ज जरूर किए गए हैं, लेकिन इसके लिए सरकार तो जिम्मेदार है ही, लोग खुद भी उन्हें अवसर प्रदान करने के लिए दोषी हैं. सरकार सुविधा देना नहीं चाहती. ऐसे में निजी लैब को आपदा में अवसर तलाशने में आसानी होती है.

आरटीपीसीआर टेस्ट

अजय गंभीर ने कहा कि अगर आप बेहतर सर्विस की उम्मीद करते हैं, तो आपसे थोड़े ज्यादा पैसे जरूर लिए जाएंगे. आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए शुरू में 4500 रुपये लिए जा रहे थे. काफी विवाद होने के बाद सरकार ने इस को नियंत्रित करने की कोशिश की. उसके बाद यह जांच 2500 रुपये में कर दी गई. फिर 2000, 1500 और आखिर में 800 रुपये कर दिया गया.

डॉ. गंभीर का मानना है कि सरकार हर चीज को नियंत्रित नहीं कर सकती है, खासकर बाजार को. कोरोना महामारी के दौरान जो लोग सक्षम थे, वे कोरोना संक्रमण का जोखिम नहीं उठाना चाहते थे. वे चाहते थे कि प्राइवेट लैब वाले उनके घर तक आकर सैंपल कलेक्ट करें. जाहिर है इसके लिए वह ज्यादा पैसा देने को तैयार थे. आखिर नागरिकों के इस अधिकार को सरकार कैसे नियंत्रित कर सकती है..?

आरटीपीसीआर टेस्ट

डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि प्राइवेट लैब वाले की अपनी देनदारी होती है. उनके यहां पेशेंट आए या ना आए, लेकिन उन्हें अपने स्टाफ को सैलरी देनी होती है, जिसकी पूर्ति उनके यहां जांच कराने आने वाले मरीजों से ली जाने वाली फीस से ही की जाती है. इसके लिए वह एक औसत निकालते हैं और उसी के हिसाब से जांच की फीस तय करते हैं.

डॉ. गंभीर ने कहा कि अगर कोई प्राइवेट लैब किसी मरीज से ज्यादा पैसे वसूलता है, तो इसकी शिकायत स्वास्थ्य विभाग में कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि सरकारी संस्थानों में जो मुफ्त में जांच की जाती है, उसके लिए जांच की किट टैक्स के पैसों से खरीदी जाती है. वहीं निजी अस्पतालों को या निजी लैब चलाने वालों को जांच किट्स खरीदने के लिए खूद के पैसे लगाने पड़ते हैं.

डिजिटल एक्स रे

फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रोहन कृष्ण बताते हैं कि कोरोना के समय में जब अफरा-तफरी मच गई, तो इसका फायदा जाहिर तौर पर में कुछ निजी लैब वालों ने उठाए. हालांकि सरकार ने निजी अस्पतालों और निजी लैब वालों के लिए अधिकतम फीस तय कर दी थी, फिर भी लोग ज्यादा पैसे देने के लिए तैयार थे.

डॉ. रोहन ने भी कहा कि अगर निर्धारित फीस से ज्यादा किसी मरीज से ली जाती है, तो इसकी शिकायत सरकार के संबंधित विभाग में की जानी चाहिए. अपने मन से कोई भी जांच कराने से मना करते हुए डॉक्टर रोहन अपील करते हैं कि चाहे कोई भी जांच हो, अपने डॉक्टर की सलाह पर ही करवाएं, अपनी मर्जी से नहीं. अगर आप ऐसा करते हैं तो निजी लैब कि इलीगल प्रैक्टिस को आप बढ़ावा देते हैं.

चेस्ट सीटी स्कैन.

माइक्रोबायोलॉजी डॉ. नीलाक्षी ने कहा कि कोरोना काल में कुछ निजी लैब्स ने आपदा में अवसर तलाशते हुए निर्धारित राशि से अधिक पैसे वसूले. हालांकि इसे ऐसा ना माना जाए कि सभी ने ऐसा ही किया हो. उन्होंने कहा कि सरकारी कोविड सेंटर में जांच के लिए 600 से 800 रुपये तय की गई, लेकिन अगर आप अपने घर पर प्राइवेट लैब को बुलाते हैं, तो जाहिर है आपको थोड़े अधिक पैसे देने होंगे.

डॉक्टर नीलाक्षी ने कहा कि कोरोना वायरस की समानांतर एक और बीमारी ब्लैक फंगस और यलो फंगस इंफेक्शन के रूप में सामने आई. इस बीमारी की जांच और इलाज के लिए जरूरी दवाइयों के दाम भी बढ़ाए गए. डर की वजह से भी लोग अपनी मर्जी से निजी लैब जाकर खुद ही जांच कराते हैं. इस तरह की जांच गैरकानूनी है. ऐसे में सरकार जांच कराने वाले और निजी लैब दोनों को कटघरे में खड़ी करेगी.

माइक्रोबायोलॉजी डॉ. नीलाक्षी ने कहा कि जब तक कोई डॉक्टर आपको प्रिसक्राइब ना करे, तब तक कोई भी जांच नहीं करानी चाहिए. बताते चलें कि जून 2020 में दिल्ली सरकार ने प्रतिदिन 5000 आरटीपीसीआर टेस्ट्स की संख्या बढ़कर 18000 प्रतिदिन कर दिया था, लेकिन प्रति किट जांच 4500 रुपये होने की वजह से समस्या थी. बाद में गृह मंत्री के दखल के बाद इसे 2400 रुपये कर दिया गया था.

वहीं दूसरी लहर से पहले और दूसरी लहर के दौरान जांच के लिए दी जाने वाली रकम की बात करें, तो जून 2020 तक आरटीपीसीआर के दाम 4,500 प्रति किट थे. जुलाई 2020 में इसे 2,400 प्रति किट किया गया. 30 नवंबर 2020 में सरकारी अस्पताल और कोविड सेंटर्स से जमा किए गए सैंपल के लिए 800 रुपये प्रति किट चुकाने पड़ते थे. वहीं घर से सैंपल कलेक्ट करने पर 1200 रुपये प्रति किट देनें होते थे.

दूसरी लहर से पहले चेस्ट सिटी स्कैन के लिए 2100 रुपये देने होते थे, वहीं दूसरी लहर के दौरान चेस्ट सीटी स्कैन के दाम- 5000 से 8000 तक लिए जाते थे. जबकि दूसरी लहर से पहले डिजिटल एक्स रे के लिए 400 से 500 रुपये देने होते थे, वहीं दूसरी लहर के दौरान डिजिटल एक्स रे के लिए 800 से 1000 रुपये तक लिए गए.

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