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शिक्षकों के एक दल ने छोड़ा JNUTA का साथ, कहा- गलत दिशा में जा रहा आंदोलन

खुद को जेएनयू शिक्षक संघ से अलग करने वाले शिक्षक दल के सदस्य प्रोफेसर बृजेश पांडेय ने कहा कि छात्रों का आंदोलन जिन जायज़ मांगों को लेकर शुरू हुआ था, सभी शिक्षक उनके साथ थे. वो मानते हैं कि फीस में इज़ाफ़े का फैसला छात्रहित में नहीं है. लेकिन अब आंदोलन की पूरी दिशा ही बदल चुकी है.

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Published : Nov 22, 2019, 7:45 AM IST

शिक्षकों ने छोड़ा जेएनयू शिक्षक संघ का साथ

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हॉस्टल मैनुअल और बढ़ी हुई फीस को लेकर प्रदर्शन कर रहे छात्रों की समस्या सुलझाने वाले शिक्षक संघ में ही मतभेद होने लगा है. बता दें कि शिक्षकों के एक दल ने खुद को जेएनयू शिक्षक संघ से अलग कर लिया है.

शिक्षकों ने छोड़ा जेएनयू शिक्षक संघ का साथ

'आंदोलन गलत दिशा में जा रहा'

उनका कहना है कि जबतक छात्रों की मांगें उचित थीं, हम उनके साथ थे, लेकिन अब आंदोलन गलत दिशा में जा रहा है. उन्होंने कहा कि लेफ्ट इस आंदोलन की आड़ लेकर अपनी संकीर्ण विचारधारा की लड़ाई लड़ रहा है. जिसे शिक्षक प्रतिनिधि भी समर्थन दे रहे हैं. साथ ही कहा कि शिक्षक संघ के पदाधिकारियों को इस मसले को एक नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है.

'छात्र कश्मीर की आजादी के नारे लगा रहे थे'

खुद को जेएनयू शिक्षक संघ से अलग करने वाले शिक्षक दल के सदस्य प्रोफेसर बृजेश पांडेय ने कहा कि छात्रों का आंदोलन जिन जायज़ मांगों को लेकर शुरू हुआ था, सभी शिक्षक उनके साथ थे. वो मानते हैं कि फीस में इज़ाफ़े का फैसला छात्रहित में नहीं है. लेकिन अब आंदोलन की पूरी दिशा ही बदल चुकी है. उन्होंने कहा कि छात्रों के आंदोलन से उनका विरोध इस बात से है कि प्रदर्शन बढ़ी हुई फीस के मुद्दे को लेकर था. लेकिन छात्र कश्मीर की आजादी के नारे लगा रहे थे.

उनका विरोध इस बात से है कि छात्रों ने विश्वविद्यालय परिसर की दीवारों पर अभद्र टिप्पणियां लिखीं, उनका विरोध इस बात से है कि प्रदर्शनकारियों ने युवाओं के प्रतीक माने जाने वाली स्वामी विवेकानंद की मूर्ति को क्षतिग्रस्त करने की कोशिश की. साथ ही उनकी मूर्ति के पास अभद्र भाषा में नारे भी लिखें. प्रोफेसर ने कहा कि इन सभी हरकतों का बढ़ी हुई फीस से कुछ भी लेना देना नहीं था.

फिर भी छात्रों के एक समूह ने इस तरह की हरकतें कर साबित कर दिया कि अब प्रदर्शन की दिशा पूरी तरह बदल चुकी है और इसकी आड़ लेकर गिरी हुई मानसिकता के लोग अपनी विचारधारा जो कि रसातल में जा चुकी है, उसे पुनः जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं.

'महिला शिक्षक को 24 घंटे तक बंदी बनाकर रखा'

वहीं खुद को शिक्षक संघ से अलग करने को लेकर उन्होंने कहा कि उन्होंने शिक्षक संघ इसलिए छोड़ा कि जो शिक्षक संघ का प्रतिनिधि खुद को कहते हैं, उन पदाधिकारियों की यह जिम्मेदारी बनती है कि यदि शिक्षकों के साथ बदसलूकी हो या उनके परिवार पर कोई खतरा हो या उनसे अभद्र टिप्पणियां की जाए तो वह उसका विरोध करें और अपने शिक्षकों के साथ खड़े हो. लेकिन शिक्षक संघ के इन महानुभावों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. उन्होंने कहा कि चंद प्रदर्शनकारी छात्रों ने शिक्षक छात्र मर्यादा को ताक पर रखकर महिला शिक्षक को 24 घंटे तक बंदी बनाकर रखा और उसके साथ बदसलूकी की.

इसके बाद भी शिक्षक संघ ने उस पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की. यह जानते हुए भी की छात्रों का आंदोलन गलत दिशा में जा रहा है, खुद को शिक्षक संघ का प्रतिनिधि कहने वालों ने छात्रों को सही दिशा दिखाने की कोशिश नहीं की बल्कि उन्हें और भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए उन्होंने यह संघ छोड़ दिया.


बता दें कि छात्रों का समर्थन कर रहे जेएनयू शिक्षक संघ का साथ करीब 115 शिक्षकों ने छोड़ दिया है. इन शिक्षकों का कहना है कि छात्रों का आंदोलन अब गलत दिशा पर जा चुका है. जिसे नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है. साथ ही कहा कि जब छात्र शिक्षकों के संग ही बदसलूकी करने लगे तो अब शिक्षक उनका साथ नहीं दे सकते.

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