नई दिल्ली: बाहरी दिल्ली के अलीपुर इलाके में बना शहीद स्मारक अंग्रेजों के खिलाफ साल 1857 की क्रांति का गवाह है. दिल्ली देहात के क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने मुखबिरी के आरोप पर खौलते तेल की कड़ाही में डाल दिया था. दिल्ली की तत्कालीन सरकार ने उन क्रांतिकारियों की याद में शहीद स्मारक अलीपुर इलाके में बनवाया था.
आजादी की 'पहली लड़ाई' का गवाह है स्मारक गद्दार लोगों ने अंग्रेजों को दी सूचना
ईटीवी भारत की टीम ने अलीपुर इलाके के एक क्रांतिकारी वंशज रायसिंह मान से विस्तार से बात की. उनका कहना है कि अलीपुर इलाके के करीब 80 क्रांतिकारियों को इस जगह पर अंग्रेजों ने मुखबिरी के आरोप पर शहीद करवा दिया था. गांव के ही कुछ गद्दारों ने अंग्रेजों के साथ मिलकर अपने ही लोगों को धोखा दिया और उन लोगों को धोखे से मरवा दिया.
स्मारक 1857 की पहली क्रांति का गवाह
अलीपुर इलाके में बना शहीद स्मारक देश की अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की पहली क्रांति का मुख्य गवाह है. जो क्रांति मेरठ में महान क्रांतिकारी मंगल पांडे के नेतृत्व में शुरू हुई, उसकी चिंगारी दिल्ली तक भी पहुंची. दिल्ली के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के दमनकारी नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की तो अंग्रेजों ने धोखे से उन क्रांतिकारियों को बंधक बनाकर मरवा दिया.
इंडिया गेट से निकलने के बाद अंग्रेज किंग्सवे कैंप लाइन में पहला पड़ाव डालते थे. उसके बाद दूसरा पड़ाव उनका अलीपुर इलाके में होता था. जो कि किंग्सवे कैंप से करीब 25 से 30 किलोमीटर दूर है.
सालों तक वीरान पड़ा रहा शहीद स्मारक
कई सालों तक शहीद स्मारक विरान पड़ा रहा. कांग्रेस सरकार के मंत्री जब यहां आए तो उन्होंने वीरान पड़े स्मारक को देखा और इसके जीर्णोद्धार का काम शुरू हुआ. जिसके बाद गांव वालों की मदद से यहां पर शहीद स्मारक बनाया गया. करीब ढाई एकड़ पड़ी खाली जमीन में मिनी स्टेडियम बनवाया गया, जहां हर साल 15 अगस्त को शहीदों की याद में दंगल होता है. स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज की पुरानी बिल्डिंग में वह पेड़ काफी लम्बे समय तक मौजूद था जिसपर क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी से लटकाया था.
काफी तलाश के बाद मिले कुछ नाम
क्रांतिकारियों के वंशज सिंह मान कहते हैं कि सरकार के साथ तालमेल बिठाकर उन शहीदों के नाम खोजे गए. करीब 49 के करीब नाम मिले जिनके नाम पत्थर पर लिखकर शहीद स्मारक में लगाए गए हैं. कई नाम ऐसे भी हैं जिनके बारे में आज तक पता नहीं चल पाया, लेकिन उन लोगों ने देश के लिए अपने प्राण हंसते-हंसते न्योछावर कर दिए.
नेताओं ने किया शहीदों को याद
महान हस्तियां जब भी इस इलाके से गुजरी, चाहे वे देश के प्रधानमंत्री, दिल्ली के मुख्यमंत्री या कोई बड़ी फिल्म हस्ती ही क्यों न हो. जिस किसी ने भी इस शहीद स्मारक को देखा, उतरकर शहीदों को नमन किया और उसके बाद दूसरी जगह जाने के लिए कदम आगे बढ़ाए.