नई दिल्ली: हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा. अल्लामा इकबाल के शेर की यह पंक्तियां, कोरोना काल में वायरस पीड़ितों के लिए मसीहा बने एंबुलेंस ड्राइवर आरिफ खान पर सटीक बैठती हैं. दरअसल, आरिफ खान पिछले करीब सात महीनों से अपने परिवार से दूर रहकर न केवल कोराना पीड़ितों को अस्पताल लाने ले जाने में मदद कर रहे थे, बल्कि इस महामारी कि चपेट में आकर मौत का शिकार बनने वालों के अंतिम सफर में भी वह बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे थे. आरिफ खान ने कोरोना संक्रमित होने के बाद उपचार के दौरान बाड़ा हिंदूराव अस्पताल में दम तोड़ दिया. आरिफ की मौत से जहां परिवार सदमे में है. वहीं उनके दल के कैप्टन जितेंद्र सिंह शंटी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनकी टीम का ऑलराउंडर प्लेयर चला गया.
उत्तर पूर्वी दिल्ली के वेलकम लोहा मार्केट में परिवार के साथ रहने वाले आरिफ खान वैसे तो पिछले करीब पच्चीस सालों से शहीद भगत सिंह सेवा दल के साथ जुड़े हुए थे. और पिछले करीब 7 महीनों से वह एंबुलेंस पर ही मौजूद रहे और लगातार पीड़ित मरीजों को अस्पताल से घर और घर से अस्पताल पहुंचाने में अपनी जान की परवाह किए बगैर जुड़े रहें. इतना ही नहीं करीब 100 से ज्यादा मृतकों के अंतिम संस्कार में भी वह सीधे तौर पर शामिल हुए. आरिफ खान के जाने से न केवल उनका परिवार पूरी तरह से बिखर गया बल्कि सेवा दल की टीम के कैप्टन जितेंद्र सिंह शंटी ने तो यहां तक कहा कि उनकी टीम का एक ऑलराउंडर सिपाही चला गया.
महामारी कि भेंट चढ़ गया जिंदादिल वॉरियर
आरिफ के निधन पर उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने शोक व्यक्त किया है. शहीद भगत सिंह सेवा दल के संस्थापक जितेंद्र सिंह शंटी ने आरिफ को जिंदादिल शख्सियत बताया और कहा कि मुस्लिम होकर भी आरिफ ने अपने हाथों से 100 से अधिक हिंदुओं के शव का अंतिम संस्कार किया. शंटी ने बताया कि जब आरिफ की मौत हुई, उनके अंतिम संस्कार के लिए परिवार के लोग पास नहीं थे. उनके परिवार ने आरिफ का शव काफी दूर से कुछ मिनट के लिए ही देखा. उनका अंतिम संस्कार खुद शहीद भगत सिंह सेवा दल के अध्यक्ष जितेंद्र सिंह शंटी ने अपने हाथों से किया.