नई दिल्ली: कोरोना का असर बाकि त्यौहारों की तरह मोहर्रम के त्यौहार पर भी देखने को मिल रहा है. हालांकि, गम के इस त्यौहार मोहर्रम को पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत में मनाया जाता है. इस दिन सौगवार काले कपड़े पहनकर मातम करते हैं और ताजिये का जुलूस निकालकर अपने गम का इजहार करते हैं. दिल्ली के जाफराबाद की मस्जिद इमाम नकी में भी सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक इसे मनाया जा रहा है. कोविड-19 की वजह से सरकार ने ताजिये और जुलूस निकाले जाने पर पाबंदी लगाई हुई है.
मोहर्रम में ताजिया के साथ नहीं निकलेगा जुलूस इंसानियत को बचाने को हुई थी जंग
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक पहला महीना मोहर्रम का होता है, जिसे गम का महीना भी कहा जाता है. मोहर्रम की 10 तारीख को अशरे के दिन पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन अपने 71 साथियों के साथ 3 दिन के भूखे प्यासे शहीद हो गए थे. उन शहीदों में सबसे छोटे शहीद 6 महीने के इमाम हुसैन के बेटे अली असगर थे. इन सभी शहीदों को सिर्फ हक, इंसानियत और सच के रास्ते पर चलने की वजह से यजीद नाम के एक शासक के इशारे पर मार दिया गया था. तानाशाही यजीद बेगुनाहों पर जुल्म करना, हक छीनना,अलग रास्ते पर चलना, किसी भी इंसान को बेवजह खत्म कर देना समेत सभी तरह के गलत कामों को अंजाम देता था. ताकि इस्लाम को बदनाम कर सके. यजीद तानाशाह अपने आसपास के राज्य की सरकारों को भी जबरदस्ती अपने कब्जे में लेना चाहता था, जिससे डरे सहमे लोग उसके खिलाफ आवाज बुलंद नहीं कर पा रहे थे. यजीद ने इमाम हुसैन को भी खत लिखा था कि वह उसके रास्ते पर चलें, लेकिन इमाम हुसैन ने उससे साफ कह दिया कि जिल्लत की जिंदगी से बेहतर इज्जत की मौत है और मुझ जैसा इंसान तेरे जैसे के रास्ते पर नहीं चल सकता.
यजीद की फौज ने हुसैन के काफिले को घेरा था
बताया जाता है कि मोहर्रम के महीने की 2 तारीख को इमाम हुसैन इराक के कर्बला में अपने बीवी बच्चों और साथियों के साथ कुफा शहर जा रहे थे. तभी यजीद की फौज ने उन्हें घेर लिया, इतना ही नहीं यजीद की फौज ने इमाम हुसैन के काफिले के पास मौजूद नेहर फुरत पर भी पाबंदी लगा दी. ताकि इमाम हुसैन के काफिले को पानी ना मिल सके. तारीख बताती है कि इमाम हुसैन का काफिला सात मोहर्रम तक वहीं रहा और उनके पास जितना भी पानी था, वह खत्म हो गया और 10 मोहर्रम अशरे तक उनका पूरा काफिला भूखा प्यासा था. इस काफिले में छोटे-छोटे बच्चों से लेकर 80 साल तक के बुजुर्ग भी शामिल थे, लेकिन किसी ने भी उफ तक नहीं की.
यजीद ने जब देखा के इमाम हुसैन का काफिला भूखा-प्यासा रहने के बाद भी उनके साथ आने के लिए तैयार नहीं हुए, तो उसने उनके काफिले पर हमला बोल दिया. दोपहर 4 बजे तक इमाम हुसैन के काफिले में 70 लोगों की शहादत हो चुकी थी. बस आखिर में इमाम हुसैन और उनका 6 महीने का बच्चा था, जिसके बाद इमाम हुसैन उस बच्चे को अपनी गोद में लेकर जालिम के पास गया और कहा कि तुमने मेरे हर एक साथी को तो शहीद कर दिया है. फौज में शामिल एक तीरंदाज ने तीर निकाल कर उस छोटे बच्चे के गले पर मार दिया, जिससे मासूम की उसी वक्त शहादत हो जाती है. यजीद की फौज में शामिल लोगों ने इमाम हुसैन पर तीर तलवार और नेजे की बौछार कर दी, जिससे वह भी वहीं शहीद हो गए.
मोहर्रम के मौके पर जाफराबाद इलाके में मौजूद इमाम बारगाह को गम के इस त्यौहार यानी इमाम हुसैन की शहादत के दिन कर्बला के उस मंजर को एक बड़े ही हृदयविदारक अंदाज में दर्शाया गया था. सारी रात सौगवार गमी के माहौल में मातमपुर्सी करते रहे.