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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Aug 28, 2023, 6:11 AM IST

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Delhi Zoo: चिड़ियाघर में क्यों होता है एक्सचेंज प्रोग्राम, जानिए

दिल्ली आने वाले हर शख्स के जहन में चिड़ियाघर का दीदार करना पहली प्राथमिकता होती है. वैसे तो दिल्ली जू में विभिन्न प्रकार के पशु पक्षी हैं, लेकिन जो नहीं है उन्हें एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत दूसरे जू से लाया जाता है.

दिल्ली चिड़ियाघर
दिल्ली चिड़ियाघर

नई दिल्ली: वन्य जीवों से प्रेम या फिर उन्हें देखने की जिज्ञासा रखने वाले कभी न कभी चिड़ियाघर गए होंगे. यहां आकर हाथी, चीता, बाघ, तेंदुआ, शेर, मॉनिटर लिजार्ड, गेंडा, जिराफ जेब्रा आदि वन्य जीव देखे होंगे. इन्हें देखने के बाद आप अपने घर चले जाते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि जिन वन्य जीवों को आप चिड़ियाघर में देखकर आए हैं वह एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत दूसरे जू से लाए होते हैं.

जिस तरह से आप अपना सामान के बदले में दूसरे समान लेते हैं. एक्सचेंज कर लेते हैं. ठीक उसी प्रकार चिड़ियाघर में भी जानवरों का एक्सचेंज किया जाता है. अब सवाल है कि एक्सचेंज प्रोग्राम. तो चलिए जानते हैं एक्सचेंज प्रोग्राम से संबंधित सभी सवालों के जवाब...

नए मेहमान लाने के लिए एक्सचेंज प्रोग्राम:दिल्ली जू निदेशक आकांक्षा महाजन बताती हैं कि अगर किसी चिड़ियाघर में सभी प्रजाति के वन्यजीव नहीं हैं तो ऐसे में जू प्रशासन एक्सचेंज प्रोग्राम करता है. इसके लिए एक फाइल तैयार होती है. जिसमें कौन-कौन से वन्य जीव की जरूरत है, इसकी एक लिस्ट बनाई जाती है. दिल्ली जू में जिराफ, जेब्रा लंबे समय से नहीं है. कई बार इनके नाम एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत रखे गए.

वन्य जीवों से प्रेम या फिर उन्हें देखने की जिज्ञासा रखने वाले कभी न कभी चिड़ियाघर तो गए होंगे.

एक्सचेंज प्रोग्राम को पूरा होने में समय?

जू निदेशक आकांक्षा महाजन बताती हैं कि एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत यह तय किया जाता कि हमें कौन से जीव चाहिए. इसके लिए एक लिस्ट बनाई जाती है. इस लिस्ट को अप्रूव करने के लिए सेंट्रल जू अथॉरिटी को भेजा जाता है. अथॉरिटी से इसे हरी झंडी मिलने में कुछ समय लग जाता है. क्योंकि, सीजेडए की तरफ से दूसरे जू से संपर्क किया जाता है. इसके बाद वहां से स्वीकृति मिलने के बाद दो चिड़ियाघर में जानवरों को लेकर एक्सचेंज प्रोग्राम पास होता है.

कैसे रन होता है एक्सचेंज प्रोग्राम?

जब सेंट्रल जू अथॉरिटी की तरफ से एक्सचेंज प्रोग्राम को पास कर दिया जाता है तो इसकी जानकारी दोनों चिड़ियाघर के निदेशक को दिया जाता है. उन्हें सेंट्रल जू अथॉरिटी से एक चिट्ठी जाती है. इस चिट्ठी में जानकारी दी जाती है कि उनके यहां से कौन से जीव आएंगे और कौन से जीव जाएंगे.

जिस तरह से आप अपना सामान के बदले में दूसरा समान लेते हैं. एक्सचेंज कर लेते हैं. ठीक उसी प्रकार चिड़ियाघर में भी जानवरों का एक्सचेंज किया जाता है.

एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत कौन से वन्यजीव दूसरे जू से ले सकते हैं?

इस प्रोग्राम के तहत आप भले ही बड़े प्रजाति के वन्य जीव जैसे जिराफ, जेब्रा या फिर अन्य जानवर की मांग कर सकते हैं, लेकिन मांगने पर जरूरी नहीं की यह जानवर आपको मिल जाए. इसके पीछे कारण यह है कि कोई भी जू अपने बड़े प्रजाति के वन्यजीव को दूसरे जू को नहीं देना चाहता है. यही वजह है कि सालों साल बीत गए, लेकिन दिल्ली जू में जिराफ जेब्रा जैसे जानवर नहीं लाए जा सकें. आपकी मांग पर आपको दूसरे जानवर मिल सकते हैं. कई बार दिल्ली जू ने दूसरे जू को तेंदुआ के बदले हिरण सौंपा है.

चिड़ियाघर खुद से दूसरे जू से वन्य जीव ले सकता है?

जू निदेशक कहती हैं कि दो चिड़ियाघर प्रशासन आपस में जानवरों के आदान-प्रदान को लेकर चर्चा कर सकते हैं, लेकिन अपने स्तर पर एक्सचेंज प्रोग्राम कर जानवरों का आदान प्रदान नहीं कर सकते हैं. इसके लिए सेंट्रल जू अथॉरिटी के पास ही अधिकार है. हां दोनों जू इस संबंध में जू अथॉरिटी को लिख सकते हैं.

दिल्ली आने वाले हर शख्स के जहन में चिड़ियाघर का दीदार करना पहली प्राथमिकता होती है.

अगर समय पर एक्सचेंज प्रोग्राम न हो तो क्या होता है?

2017 में दिल्ली जू में पहली महिला आईएफएस रेनू सिंह यहां की निदेशक बनी. उनके कार्यकाल में रिकॉर्ड 8 एक्सचेंज प्रोग्राम पास हुए. कानपुर से सफेद बाघ लाए गए. जम्मू से तेंदुआ लाया गया. हालांकि, कुछ एक्सचेंज प्रोग्राम समय से पूरे नहीं हो पाए. जू निदेशक कहती हैं कि 6 माह का समय होता है जब दो जू के बीच पास हुए एक्सचेंज प्रोग्राम को पास होना जरूरी है. अगर समय पर प्रोग्राम नहीं हो पाता है तो उसे दोबारा रिशेड्यूल किया जाता है. अगर इस शेड्यूल में भी प्रोग्राम नहीं हो पाता है तो प्रोग्राम रद्द कर दिया जाता है.

एक्सचेंज प्रोग्राम में आने वाले जानवर कितने दिन तक अस्पताल में रहते हैं?

एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत दूसरे राज्य के चिड़ियाघर से लाए जाने वाले जानवरों को करीब एक से दो माह तक अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी में रखा जाता है. यह जानवर के हिसाब से समय में बढ़ोतरी हो सकती है. यहां जानवरों का टीकाकरण किया जाता है. इसके बाद इन्हें निगरानी में बाड़ों में रिलीज किया जाता है. यहां उन्हें कुछ समय एडजस्ट होने में समय लग जाता है.

दिल्ली जू में विभिन्न प्रकार के पशु पक्षी हैं, लेकिन उनमें जो नहीं उन्हें एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत दूसरे जू से लाया जाता है.

एक्सचेंज प्रोग्राम के लिए कौन सा मौसम जानवरों के लिए ठीक होता है?

एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत सर्दियों का मौसम जानवरों के आदान प्रदान के लिए ठीक होता है. हालांकि, ज्यादा सर्दी में एक्सचेंज प्रोग्राम करना भी कभी कभी घातक हो सकता है. अक्टूबर के मिड और नवम्बर तक मौसम हल्का ठंडा और एक्सचेंज प्रोग्राम के लिए सही माना जाता है. इस दौरान डॉक्टरों की एक टीम, जू कीपर सहित सात से 8 लोगों की एक टीम एक्सचेंज प्रोग्राम को कराने के लिए दूसरे जू जाती है. यहां से पूरी सुरक्षा के तहत गाड़ी में जानवर लाए जाते हैं. वहीं अपने यहां से जू किसी जानवर को अगर देता है तो इससे पहले गिनती की जाती है. यही प्रक्रिया दूसरे जू में भी को जाती है.

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