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कहीं खो ना जाए उर्दू की शान! एसोसिएशन ने दुर्दशा पर जताई चिंता

माइनॉरिटी कम्युनिटी टीचर्स एसोसिएशन ने NCPUL के तत्वावधान में दिल्ली रियासत और उर्दू जबान विषय पर दूसरी उर्दू फरोग कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया. जिसमें उर्दू की तरक्की में प्रयास करने वालों को सम्मानित किया गया.

दूसरी उर्दू फरोग कॉन्फ्रेंस का आयोजन

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Published : Mar 19, 2019, 11:17 AM IST

नई दिल्ली: उत्तर पूर्वी दिल्ली के सीमापुरी में माइनॉरिटी कम्युनिटी टीचर्स एसोसिएशन ने एनसीपीयूएल के तत्वावधान में दिल्ली रियासत और उर्दू जबान विषय पर दूसरी उर्दू फरोग कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया. इस कार्यक्रम में सरकारी स्तर पर उर्दू की उपेक्षा किये जाने पर चिंता जताई गई.वहीं उर्दू की तरक्की में अपने-अपने कार्यक्षेत्र में प्रयास करने वालों को एसोसिएशन की तरफ से प्रशस्ति पत्र और प्रतीक चिंह देकर सम्मानित किया गया.

राजधानी दिल्ली में उर्दू के मौजूदा हालात को देखते हुए माइनॉरिटी कम्युनिटी टीचर्स एसोसिएशन ने दूसरे उर्दू कॉन्फ्रेंस का आयोजन दिल्ली रियासत और उर्दू जबान के शीर्षक से किया. इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य दिल्ली में उर्दूके स्तर को ऊंचा करना है. वहीं दिल्ली के सरकारी महकमों और स्कूलों में इसे लागू नहीं किये जाने पर अफसोस जताया गया.

कार्यक्रम की शुरुआत पवित्र कुरान (आयात) के पाठ से की गई. माइनॉरिटी एसोसिएशन के अध्यक्ष शकील अहमद ने बताया कि उनकी संस्था दिल्ली में शिक्षकों के साथ ही बच्चों की समस्याओं के समाधान के लिए काम करती है.

ये है मांगें

  • संस्था के पदाधिकारियों ने कॉन्फ्रेंस के जरिए दिल्ली सरकार से मांग की है कि उर्दू की तरक्की के लिए इसे तुरंत ही सरकारी महकमों में लागू किया जाए.
  • दिल्ली सरकार के उर्दू स्कूलों की कमी के चलते ईडीएमसी के उर्दू मीडियम स्कूलों से पास होने वाले छात्रों को खासी परेशानी आती है. एसोसिएशन ने दिल्ली सरकार से मांग की है कि उर्दू टीचरों की कमी को ध्यान में रखते हुए प्राइमरी टीचरों के लिए अलग से डाइट सेंटर खोला जाए या फिर दिल्ली में पहले से चल रहे नौ सेंटरों में से एक को उर्दू टीचरों के लिए निर्धारित कर दिया जाए.

उर्दू की तरक्की के लिए आवाज उठाने वाले प्रमुख समाजसेवी डॉ. फहीम बैग ने कहा कि आज उर्दू की जबान की दुर्दशा के लिए सरकार के साथ हम खुद भीजिम्मेदारहैं. उन्होंने कहा किउर्दू जबान को बचाने के लिए हमें भी पूरी तरह से जागरूक होना पड़ेगा,कहीं ऐसा न हो कि हम सोते रह जाएं और उर्दू अपनी बदहाली पर आंसू ही बहाते रह जाए.

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