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दिल्ली में पार्टीशन म्यूजियम का हुआ उद्घाटन

दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने गुरुवार को दारा शिकोह लाइब्रेरी बिल्डिंग में बनाए गए पार्टीशन म्यूजियम का उद्घाटन किया. यह एक जन-केंद्रित संग्रहालय है, जहां भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय को दर्शाया गया है.

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Published : May 18, 2023, 10:59 PM IST

नई दिल्ली: कश्मीरी गेट स्थित डॉक्टर भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी कैंपस में गुरुवार शाम दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने पार्टीशन म्यूजियम और सांस्कृतिक हब का उद्घाटन किया. इस पार्टीशन म्यूजियम में भारत पाक के बंटवारे के दौरान लोगों के पलायन का दर्द बयां किया गया है. उद्घाटन के दौरान आतिशी ने कहा कि मुझे लगता है कि यह म्यूजियम किसी भी समय से आज के समय में बेहद ही महत्वपूर्ण है.

उन्होंने कहा कि यह इस बात की याद दिलाता है कि राजनीति अलग-अलग लोगों में भेदभाव और नफरत पैदा करती है और फिर उसका आम इंसान की जिंदगी में क्या असर पड़ता है. उन्होंने कहा कि जल्द आम लोगों के लिए इस पार्टीशन म्यूजियम को खोल दिया जाएगा. जल्द इसके लिए टाइम टेबल तैयार कर लिया जाएगा.

क्या है इस पार्टीशन म्यूजियम में? :इस विभाजन संग्रहालय का केंद्र दिल्ली है तथा यहां 1947 की घटनाओं के दौरान इस शहर और उसमें रहने वाली शरणार्थी आबादी पर पड़े प्रभाव पर विशेष ध्यान दिया गया है. यह एक स्मारक है, जो उन लाखों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को समर्पित है, जो रातों-रात अपना घर अथवा जीवन खो बैठे.

संग्रहालय की स्थापना के दौरान विभाजन की विभीषिका को झेल चुके तथा जीवन संध्या की ओर अग्रसर चश्मदीदों की यादों और व्यक्तिगत अनुभवों को समेटने के लिए एक नई प्रेरणा मिली. इनके कई अनुभव या तो खो जाने के कगार पर हैं या अधिकांश विभाजन के 75 वर्षों बाद हमेशा के लिए खो चुके हैं. विभाजन संग्रहालय में इस विभीषिका से उबरने वाले सभी लोगों की सहनशीलता का भी सम्मान किया गया है.

सात दीर्घाओं में विभाजित है म्यूजियम:संग्रहालय सात दीर्घाओं में विभाजित है. इसकी यात्रा 1900 के दशक में ब्रिटिश राज के बढ़ते प्रतिरोध के साथ शुरू होती है. यहां 1900-1946 की अवधि के महत्वपूर्ण क्षणों पर प्रकाश डाला गया है और 1947 की शुरुआत में भारत के अधिकांश हिस्से को अपनी चपेट में ले लेने वाले अराजकतापूर्ण दंगों को भी वर्णित किया गया है. यह एक जन-केंद्रित संग्रहालय है जहां लाखों असहाय लोगों की कहानियां बयां करने के लिए मौखिक इतिहास, वस्तुओं और तस्वीरों का सहारा लिया गया है. विभाजन द्वारा दिल्ली में आए परिवर्तन इस कथा के केंद्र में है.

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