नई दिल्ली:जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, जिसे उच्च शैक्षणिक मानकों के लिये जाना जाता है. जिसके छात्र संघ चुनाव की खूब प्रशंसा की गई थी. जहां अलग-अलग विचारधारा के लोग अकसर छात्र हित के लिए एक हो जाया करते थे. वही यूनिवर्सिटी रविवार 5 जनवरी 2020 की शाम को हिंसा के मैदान में तब्दील हो गई.
5 जनवरी 2020
वो वक्त भयानक था. भयानक इसलिए क्योंकि एक तरफ हाथों में डंडे लिए नकाबपोश गुंडे थे और दूसरी तरफ चीख-पुकार कर रहे खून से सने जेएनयू के निहत्थे छात्र. इस पूरे घटनाक्रम को कैमरे में कैद किया गया. मीडिया ने देश और दुनिया भर में इसे दिखाया. ये समझना होगा कि ऐसी घटनाएं मोदी सरकार के अलोकप्रिय फैसलों के खिलाफ चल रहे आंदोलनों को और मजबूत कर रही हैं.
जब साथ आया बॉलीवुड
बॉलीवुड की कई मशहूर हस्तियों ने जेएनयू हिंसा की निंदा की. जामिया हिंसा के वक्त भी कई बॉलीवुड कलाकार छात्रों के समर्थन में नजर आए. जेएनयू में हाल ही में दीपिका पादुकोण पहुंचीं. वो कैंपस गईं और छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष से मिलीं, जिन पर नकाबपोशों ने जानलेवा हमला किया था.
दीपिका के इस कदम पर बॉलीवुड ने उनकी सराहना की. वहीं कुछ बीजेपी नेताओं ने तो दीपिका को राष्ट्रद्रोही तक बता दिया. उनकी फिल्म तक को बायकॉट करने की बातें कही गईं.
पीछे नहीं हटेगी सरकार
किसी मजबूत लोकप्रिय पर्सनैलिटी का इस तरह सामने आकर खड़े हो जाना किसी भी सरकार के लिए बड़ी बात हो सकती है, लेकिन ये सरकार कठोर है और इसने पीछे हटने का कोई संकेत नहीं दिया.
दिल्ली पुलिस पर उठे सवाल
सिर्फ 3 हफ्ते पहले की बात है, जामिया में हिंसक प्रदर्शन हुआ. दिल्ली पुलिस ने कैंपस में घुसकर छात्रों पर लाठीचार्ज किया. जामिया हिंसा के वक्त पुलिस के रिएक्शन की गंभीरता और उग्रता को समीक्षकों ने करीब से देखा. अब बात जेएनयू की करें तो ऐसा लगा जैसे पुलिस अपने पैर पीछे खींच रही हो. पुलिस कैंपस के बाहर खड़ी रही.
एक तरफ जामिया हिंसा के समय छात्रों की कैंपस से हाथ ऊपर करवाकर गिरफ्तारियां की गई, दूसरी तरफ जेएनयू हिंसा के समय नकाबपोश परिसर में घुसकर, मारपीट करके खुलेआम बाहर निकल आए और उनका बाल भी बांका नहीं हुआ.
राजनीतिक चाल
जब जेएनयू की बात आती है तो निश्चित रूप से मौजूदा व्यवस्था की ही खामियां नजर आती हैं. स्वराज अभियान के योगेंद्र यादव उस वक्त यूनिवर्सिटी कैंपस से बाहर थे, जब अंदर हिंसा चल रही थी. उन्होंने कहा-
जेएनयू पर योजनाबद्ध तरीके से हमले हुए हैं. ये राजनीतिक चाल है. बिल्कुल वैसे जैसे देशद्रोह का मुद्दा बनाकर यूनिवर्सिटी को पहले भी बदनाम करने की कोशिश की गई थी. अब ये हमला शारीरिक हिंसा की तरफ बढ़ गया है.
पहला 'बुद्धिजीवी' हमला
पहला हमला आमतौर पर स्वप्न दासगुप्ता और चंदन मित्रा जैसे बीजेपी से जुड़े अच्छी अंग्रेजी बोलने वाले बुद्धिजीवियों के रूप में हुआ. तर्क ये था कि जेएनयू में वामपंथियों ने कभी भी 'बुद्धिजीवियों' को प्रवेश करने और फलने-फूलने की अनुमति नहीं दी.