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मरने वालों की फिक्र करो सरकार! 'चालान की राशि पर क्यों कर रहे विचार'

मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन के बाद कई राज्यों ने चालान की राशि कम कर दी है तो कई राज्य इसे कम करने की तैयारी में हैं. सड़क हादसों में जान गंवाने वालों के परिजनों का कहना है कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए.

कई राज्यों ने अपने अधिकार का इस्तेमाल कर कम की चालान की राशि etv bharat

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Published : Sep 15, 2019, 1:26 PM IST

नई दिल्ली: मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन से चालान की राशि कई गुना बढ़ गई है. कई राज्यों ने अपने अधिकार का इस्तेमाल कर इसे कम कर दिया है तो कई राज्य इसे कम करने की तैयारी में हैं. इसे लेकर सड़क हादसे का शिकार हुए लोगों के परिजनों ने नाराजगी जाहिर की है.

कई राज्यों ने अपने अधिकार का इस्तेमाल कर कम की चालान की राशि

उनका कहना है कि चालान की राशि के बारे में सोचा जा रहा है लेकिन हादसे में मरने वाले लोगों के बारे में कोई विचार नहीं कर रहा है. उन्होंने विभिन्न राज्य सरकारों से मांग की है कि वह केंद्र सरकार के कानून में छेड़छाड़ न करें.

कई राज्यों ने अपने अधिकार का इस्तेमाल कर कम की चालान की राशि

इस मामले पर शशांक शेखर ने बताया कि उनके बड़े भाई दो साल पहले अपनी गाड़ी में सवार होकर लखनऊ से नोएडा जा रहे थे. इस दौरान रास्ते में गलत दिशा से आ रही एक गाड़ी ने उन्हें टक्कर मार दी. इस हादसे की वजह से वह 2 साल से कोमा में हैं. उनका इलाज चल रहा है, लेकिन अब तक वह ठीक नहीं हुए हैं. शशांक ने बताया कि देश में रोजाना लगभग 500 लोगों की मौत सड़क हादसों में हो जाती है. 25 बच्चे रोज सड़क पर अपनी जान गंवा रहे हैं, लेकिन कोई इसे गंभीरता से नहीं ले रहा. अब नया कानून आया है तो कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं. वह हादसे में मरने वालों एवं उनके परिवार के बारे में नहीं सोच रहे हैं.

'बच्चों को गाड़ी देकर परिजन उनका भविष्य खराब करते हैं'
सिविल लाइंस इलाके में 4 अप्रैल 2016 को तेज रफ्तार से मर्सिडीज कार चला रहे नाबालिग ने सड़क पार कर रहे सिद्धार्थ शर्मा नामक युवक की जान ले ली थी. सिद्धार्थ की बहन शिल्पा मित्तल ने बताया कि वह और उनके माता-पिता बीते 3 साल से कोई खुशी नहीं मना पाए हैं. इस तरह की घटना में जहां जाने वाले कि क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती तो वहीं आर्थिक और मानसिक परेशानी भी झेलनी पड़ती है. आज समाज में सड़क हादसे को बहुत ही सामान्य ढंग से लिया जाता है. लोगों को सड़क हादसे की बात सुनकर कोई झटका नहीं लगता है. आज शाइनिंग इंडिया की बात की जा रही है लेकिन दूसरी तरफ भारत का युवा सड़क हादसे में मर रहा है. छोटे-छोटे बच्चे गाड़ी चलाते हैं. परिजन गाड़ी देकर उनका भविष्य खराब करते हैं.

'पहले होता कानून तो मेरा बेटा ठीक होता'
संध्या गुरुंग ने बताया कि सड़क हादसे में उनके बेटे की यह हालत हो गई है कि वह दो साल से कोमा में है. इस घटना की वजह से ना तो वह नौकरी कर पा रही है और ना ही उनका दूसरा बेटा कोई काम कर पा रहा है. एक तरफ कोमा में बड़े बेटे की देखभाल करने के लिए पैसे चाहिए तो वहीं दूसरी तरफ परिवार की आर्थिक हालत खराब है. दो साल से उनका परिवार इस सड़क हादसे का दंश झेल रहा है. उन्होंने कहा कि वह मोटर वाहन अधिनियम में हुए संशोधन से बेहद खुश हैं. यह संशोधन पहले हो गया होता तो शायद उनका बेटा कोमा में नहीं होता.

'45 मिनट सड़क पर तड़पकर भाई ने तोड़ा दम'
सेव लाइफ फाउंडेशन के अध्यक्ष पीयूष तिवारी ने बताया कि वर्ष 2007 में उनके 16 वर्षीय भाई को गलत दिशा से आ रही गाड़ी ने टक्कर मार दी थी. इस हादसे के बाद चालक ने भागने का प्रयास किया और दोबारा उनके भाई शिवम को कुचल दिया. हादसे के बाद वहां पर लगभग 300 लोगों की भीड़ जमा हो गई. उन्होंने शिवम को पानी दिया, उसके मुंह पर पानी के छींटे मारे, लेकिन किसी ने भी उसे अस्पताल नहीं पहुंचाया. ना ही किसी ने पुलिस या एंबुलेंस को इसकी जानकारी दी. 45 मिनट बाद उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया.

'संशोधित एक्ट से नहीं हो राजनीतिक खेल'
पीयूष तिवारी ने बताया कि विभिन्न राजनीतिक पार्टी के नेता सड़क हादसे में मारे गए हैं. यह एक नॉन पॉलिटिकल मुद्दा है जिस पर राजनीति की जा रही है. हादसों का शिकार सड़क पर पैदल या साइकिल चलाने वाले 60 फीसदी लोग होते हैं. ऐसे में अगर फाइन को कम किया जाता है तो यह उनके साथ नाइंसाफी होगी जिनके परिवार के सदस्य मारे गए हैं. इस नए एक्ट के जरिए केंद्र सरकार ने सड़क हादसों को कम करने की कोशिश की है और राज्यों को इसमें साथ देना चाहिए.

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