नई दिल्ली:विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में बहुत सारे आविष्कार और दवाओं की खोज होने के बावजूद दुनिया में आज भी एक ऐसी बीमारी है, जिसका इलाज लोगों के लिए असंभव है. दरअसल, ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) एक ऐसी बीमारी है, जो जीन में अंतर होने की वजह से होती है. यह एक जेनेटिक बीमारी है.
क्यों और कैसे होती है बीमारी की शुरुआत:इस बीमारी की एक खासियत यह भी है कि यह सिर्फ लड़कों में ही होती है. देश में हजारों बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त हैं. लेकिन, उन्हें इस बीमारी का उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है. इससे इन बच्चों के मां-बाप घुट-घुट कर जीने को मजबूर हैं. वे चाहते हुए भी अपने बच्चों को इस बीमारी का इलाज मुहैया नहीं करा पा रहे हैं. सर गंगाराम अस्पताल में जैनेटिक विभाग की चेयरमैन डॉक्टर रत्ना दुआ पुरी बताती हैं कि इस बीमारी के कारण बच्चों के माता-पिता ही होते हैं. उनमें यह बीमारी नहीं होती, लेकिन पहले की पीढ़ी में परिवार में किसी न किसी सदस्य को या किसी रिश्तेदार के बच्चों में इस बीमारी के होने की हिस्ट्री हो सकती है.
जिन बच्चों के जीन में अंतर होता है. यह बीमारी उन्ही बच्चों को होती है. बीमारी जन्म से होती है, लेकिन 5-7 साल की उम्र में इसका पता चलता है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी में बच्चों के शरीर में प्रोटीन नहीं बनता है. जिसकी वजह से उनकी मांसपेशियां गलने लगती हैं. इसकी शुरुआत पांव की मांसपेशियों से होती है, लेकिन जल्द ही ये रोग हृदय और फेफड़ों सहित शरीर की हर मांसपेशी को अपनी चपेट में ले लेता है. नतीजा यह होता है कि 15-16 साल की उम्र तक बच्चा व्हीलचेयर पर पहुंच जाता है और फिर एक दो साल में उसकी मौत हो जाती है.