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JNU: 9 दिन बाद छात्रों ने खत्म की भूख हड़ताल, BJP के खिलाफ करेंगे प्रचार

बुधवार को छात्रों की भूख हड़ताल को खत्म कराने के लिए 20 विश्वविद्यालय से शिक्षक जेएनयू परिसर में पहुंचे थे. उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वह अपनी भूख हड़ताल खत्म कर दें.

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Published : Mar 28, 2019, 4:22 AM IST

JNU छात्रसंघ की भूखहड़ताल खत्म

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छात्रसंघ ने बुधवार देर शाम 9 दिनों से चल रही भूख हड़ताल को खत्म कर दिया. कंप्यूटर आधारित प्रवेश परीक्षा से लेकर एमबीए और इंजीनियरिंग कोर्स की बढ़ी हुई फीस जैसी मांगों के लिए छात्र धरने पर बैठे थे.


बता दें कि जेएनयू छात्र संघ सत्र 2019-20 में आयोजित होने वाली दाखिला परीक्षा में नेशनल टेस्टिंग एजेंसी द्वारा कंप्यूटर आधारित प्रवेश परीक्षा, लाइब्रेरी के फंड कटौती, एमबीए और इंजीनियरिंग कोर्स की फीस के विरोध में साबरमती हॉस्टल के पास अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे थे.

JNU छात्रसंघ की भूखहड़ताल खत्म

शिक्षक ने किया भूखहड़ताल खत्म करने का आग्रह
बुधवार को छात्रों की भूख हड़ताल को खत्म कराने के लिए 20 विश्वविद्यालय से शिक्षक जेएनयू परिसर में पहुंचे थे. उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वह अपनी भूख हड़ताल खत्म कर दें.

साबरमती रेजोल्यूशन पारित
वहीं इस दौरान जेएनयू शिक्षक संघ ने छात्रों के साथ मिलकर एक साबरमती रेजोल्यूशन पारित किया. जिसमें निश्चित किया गया कि छात्र और शिक्षक शिक्षा के मुद्दे को लेकर आने वाले दिनों में एक रैली निकालेंगे.

बीजेपी के खिलाफ प्रचार
इसके अलावा लोकसभा चुनाव के दौरान देश के विभिन्न राज्यों में जाकर भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ प्रचार करने का फैसला किया गया. साथ ही अन्य राजनीतिक पार्टियों को छात्रों से संबंधित मुद्दों का एक घोषणा पत्र सौंपेंगे. इसके जरिए राजनीतिक पार्टियों से उन मुद्दों को अपने घोषणापत्र में शामिल करने का आग्रह किया जाएगा.

सालाना बजट का 10 फीसदी हिस्सा शिक्षा पर खर्च
वहीं भूख हड़ताल पर बैठी जेएनयू छात्रसंघ की उपाध्यक्ष सारिका चौधरी ने बताया कि हमारी मांग है कि सरकार सालाना बजट का 10 फीसदी हिस्सा शिक्षा पर खर्च करें. वहीं चौधरी ने कहा कि हम पिछले करीब 9 दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे हुए थे, लेकिन प्रशासन की ओर से ना ही कोई आश्वासन मिला ना ही कोई भूख हड़ताल पर बैठे छात्रों से मिलने के लिए आया.

चौधरी ने कहा कि प्रशासन छात्रों के मुद्दों को लेकर मौन है. जिस तरह से प्रशासन ने इंजीनियरिंग और एमबीए कोर्स की फीस निर्धारित की है, ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशासन नहीं चाहता है कि गरीब घर के बच्चे विश्व विद्यालय तक पहुंचे और उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें.

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