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'लोहड़ी मनाई, नहीं पूरी हुई मांग तो होली भी यहीं मनाएंगे'

दिल्ली की सीमा पर किसानों के आंदोलन के 50 दिन पूरे हो चुके हैं. ईटीवी भारत ने गाजीपुर बॉर्डर पर किसान चौपाल के जरिए किसानों के अब तक के अनुभव और आगामी रणनीतियों को लेकर बातचीत की.

Interaction with farmers on the 50th day of the farmers' movement in gazipur border
किसानों आंदोलन के 50 वें दिन किसानों से बातचीत

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Published : Jan 14, 2021, 4:19 PM IST

नई दिल्ली:किसान आंदोलन के 50 दिन हो गए हैं. ईटीवी भारत ने गाजीपुर बॉर्डर पर किसान चौपाल के जरिए किसानों के अब तक के अनुभव और आगामी रणनीतियों को लेकर बातचीत की. चौधरी धर्मपाल बीते लगातार 50 दिनों से आंदोलन पर डटे हुए हैं. इस दौरान केंद्र सरकार के साथ कई दौर की वार्ता हो चुकी है. इस दौरान के अनुभव को लेकर ईटीवी भारत से बातचीत में चौधरी धर्मपाल ने कहा कि घर में परिवार और बच्चों के साथ रहने की जो खुशी थी, वे सब यहां खत्म हो गई हैं. यहां आंदोलन में बड़ों और बुजुर्गों के साथ बच्चे भी शामिल हैं.

किसानों आंदोलन के 50 वें दिन किसानों से बातचीत

'बाप-दादा कर रहे हैं विरोध'

सिद्धार्थ चौधरी अभी स्कूल में पढ़ाई करते हैं, लेकिन कोरोना काल में चूंकि स्कूल भी बंद हैं. इसलिए अपने परिवार वालों के साथ यहां आंदोलन में आए हैं. सिद्धार्थ ने कहा कि हमारे बाप-दादा इसका विरोध कर रहे हैं. इसलिए हम भी यहां बैठे हुए हैं. बागपत से आए युवा अंकुर कुमार ने इसे आरपार की लड़ाई बताया. वहीं, बुजुर्ग महिपाल सिंह ने कहा कि मांगे पूरी होने तक यहीं रहेंगे.

'हमें पाले में रहने की आदत है'

बागपत से ही आए सहदेव चौधरी ने कहा कि हमें तो मेढ़ तक पर सोने का अनुभव है, यहां तो फिर भी ट्रॉली पर सो रहे हैं और जब तक केंद्र सरकार ये तीनों कानून वापस नहीं लेती है, तब तक यहीं रहेंगे. सहदेव चौधरी ने यहां तक कहा कि हमने लोहड़ी यहीं मनाई है और अगर मांगें नहीं मानी गईं, तो होली भी यहीं मनाएंगे. युवा अनिल कुमार ने कहा कि हमें पाले में रहने की आदत है और इससे कोई दिक्कत नहीं है.


'सरकार का अहंकार तोड़ना है'

किसान आंदोलन का यह मामला अब दोनों तरफ के अहंकार में भी बदलता दिख रहा है. इसे लेकर सवाल करने पर युवा किसान विपिन कुमार ने कहा कि सरकार के लोग यहां आकर बैठें, तब हमारी मजबूरी का पता चलेगा. युवा नकुल चौधरी और मोहित धामा ने कहा कि हमें सरकार का अहंकार तोड़ना है. इतने किसान मर गए और प्रधानमंत्री ने इसका जिक्र तक नहीं किया.

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