नई दिल्ली:दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऑटोमोबाइल कंपनी के दो कर्मचारियों के खिलाफ इंटर्न के साथ यौन उत्पीड़न के केस को यह देखते हुए रद्द कर दिया कि कंपनी की आंतरिक शिकायत समिति ने दोनों को पहले ही दोषमुक्त कर दिया था. न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन ने कहा कि यदि प्राथमिकी से उत्पन्न परिणामी कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह शक्तियों का दुरुपयोग होगा.
दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट यौन उत्पीड़न और आपराधिक धमकी के लिए एक FIR को रद्द करने की मांग वाली दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था. इसमें महिला ने दावा किया था कि सितंबर 2017 से अगस्त 2018 के बीच ऑटोमोबाइल कंपनी के लीगल डिपार्टमेंट में इंटर्नशिप के दौरान उसके साथ यौन उत्पीड़न और अश्लील व्यवहार किया गया था.
उच्च न्यायालय ने अपने 25 जनवरी के आदेश में दो कर्मचारियों के दायर दो याचिकाओं को स्वीकार कर लिया और भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए (यौन उत्पीड़न) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया. कोर्ट ने माना गया कि दो कर्मचारियों के वकील की दी गई दलीलों में वजन था कि प्राथमिकी से उत्पन्न होने वाली आपराधिक कार्यवाही या अभियोजन को जारी नहीं रखा जा सकता है, खासकर तब जब याचिकाकर्ताओं को आंतरिक शिकायत समिति (ICC) ने अपनी अंतिम रिपोर्ट के माध्यम से बरी कर दिया था.
FIR के अनुसरण में उत्पन्न होने वाली कार्यवाही को कानून में कायम नहीं रखा जा सकता है. न्यायाधीश ने कहा कि यदि प्राथमिकी के अनुसरण में जांच को जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा. FIR पर विचार करने के बाद उच्च न्यायालय ने कहा कि यह दिसंबर 2018 में दर्ज किया गया था और महिला ने अगस्त 2018 में कंपनी छोड़ दी थी और उसने बिना किसी विशिष्ट विवरण के केवल सामान्य आरोप लगाए हैं.