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Budget 2023: बजट में महंगाई कम करने के उपाय नहीं, ग्रीन डेवलपमेंट और समावेशी विकास पर जोर

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को वित्त वर्ष 2023-24 के लिए आम बजट पेश किया. इस दौरान उन्होंने कई घोषणाएं की. कई लोगों ने इस बजट की सराहना की और कइयों ने आलोचना की. लेकिन इस पूरे बजट का लब्बोलुआब क्या रहा? आइए जानते हैं एक्सएलआरआई के पूर्व प्रोफेसर और अर्थशास्त्री प्रो. प्रबल के सेन की राय....

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Published : Feb 1, 2023, 10:32 PM IST

Updated : Feb 2, 2023, 12:14 PM IST

नई दिल्लीःवित्त मंत्री ने जो बजट पेश किया है, दरअसल इसके पीछे उनका उद्देश्य आर्थिक स्थिरता, समावेशी विकास और राजकोषीय समरूपता के साथ विकास के लक्ष्य को हासिल करना है. हालांकि, यह अच्छी तरह से माना जाता है कि ये लक्ष्य आवश्यक रूप से प्रबल नहीं होते हैं और कभी-कभी एक-दूसरे के विरोधाभासी भी होते हैं, फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि मंत्री ने इसे प्राप्त करने के लिए काफी साहस जुटाया है. इस वर्ष के बजट की एक महत्वपूर्ण विशेषता भारत को हरित विकास की दिशा में ले जाना है. ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिए बुनियादी ढांचे के विकास को एक आवश्यक शर्त माना जाता है, इसलिए वित्त मंत्री ने बुनियादी ढांचे की बाधाओं को दूर करने और उसकी प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए कई घोषणाएं की हैं. साथ ही उन्होंने इसके लिए महत्वपूर्ण राशि भी आवंटित किए हैं.

पूंजी निवेश परिव्यय को लगातार तीसरे वर्ष 33 प्रतिशत बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपये किया जा रहा है, जो कि सकल घरेलू उत्पाद का 3.3 प्रतिशत होगा. यह 2019-20 के खर्च से लगभग तीन गुना अधिक होगा. केंद्र के 'प्रभावी पूंजीगत व्यय' का बजट 13.7 लाख करोड़ रुपए रखा गया है, जो कि जीडीपी का 4.5 फीसदी होगा. सरकारी व्यय के अलावा, नवगठित इंफ्रास्ट्रक्चर वित्त सचिवालय रेलवे, सड़क और बिजली सहित बुनियादी ढांचे में अधिक निजी निवेश के लिए सभी स्टॉकहोल्डर्स की सहायता करेगा, जो अभी मुख्य रूप से सार्वजनिक संसाधनों पर निर्भर है. पब्लिक प्राइवेट पार्टरनशिप (पीपीपी) की पहचान, अवधारणा, संरचना और प्रबंधन में सरकारी पदाधिकारियों की क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है. यह इस संदर्भ में है कि राष्ट्रीय क्षमता निर्माण कार्यक्रम को पुनर्जीवित करने की सरकार की मंशा को सही दिशा में उपयोगी कदम माना जाता है.

बजट को समावेशी बनाने के लिए वित्त मंत्री ने काफी सराहनीय काम किया है.

शहरी बुनियादी ढ़ांचा विकास कोष की स्थापनाः इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के संबंध में, इस वर्ष के बजट में की गई एक महत्वपूर्ण घोषणा 1990 के दशक की शुरुआत में बनाए गए ग्रामीण बुनियादी ढांचा विकास कोष (RIDF) की तर्ज पर एक शहरी बुनियादी ढांचा विकास कोष (UIDF) की स्थापना करना है. UIDF की स्थापना बैंकों के प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग शॉर्टफॉल के जरिए होगी. इसका प्रबंधन नेशनल हाउसिंग बैंक (NHB) द्वारा किया जाएगा और यह टियर-2 और टियर- 3 शहरों में बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए सरकारी एजेंसियों की मदद करेगा.

राज्यों को 15वें वित्त आयोग के अनुदानों के साथ-साथ मौजूदा योजनाओं से संसाधनों का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, ताकि UIDF के लिए यूजर्स शुल्क को अपनाया जा सके. टीयर 2 और टीयर 3 शहरों में शहरी बुनियादी ढांचे के विकास के लिए प्रति वर्ष 10,000 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए जाने की उम्मीद है.

परिवहन क्षेत्र में अधिक राशि का प्रावधानः रेलवे के लिए 2.40 लाख करोड़ रुपये का पूंजी परिव्यय प्रदान किया गया है. इस क्षेत्र में यह अब तक सर्वाधिक परिव्यय है. इससे पहले 2013-14 में सर्वाधिक परिव्यय हुआ था. इस बार इससे 9 गुणा अधिक किया गया है. इसके साथ ही बंदरगाहों, कोयला, इस्पात, उर्वरक और खाद्यान्न क्षेत्रों के लिए प्रभावी कनेक्टिविटी हासिल करने के लिए 100 महत्वपूर्ण परिवहन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की पहचान की गई है. उन्हें निजी स्रोतों से 15,000 करोड़ रुपये सहित 75,000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ प्राथमिकता दिए जाने की उम्मीद है.

वहीं, घरेलू हवाई संपर्क में सुधार के लिए 50 अतिरिक्त हवाई अड्डों, हेलीपोर्ट्स, वाटर एयरोड्रोम और एडवांस लैंडिंग ग्राउंड को विकसित किया जाएगा. बुनियादी ढांचे में निवेश सहित सभी उपायों से देश की सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में होने की संभावना है.

राजकोषीय घाटे से निपटना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण होगा.

महंगाई पर नियंत्रण का कोई उपाय नहींःआर्थिक स्थिरता बनाए रखने जैसे महंगाई पर नियंत्रण के लिए बजट में ज्यादा कुछ नहीं है. पिछले कुछ वर्षों से भारत में महंगाई का स्तर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों कारकों द्वारा प्रभावित हुआ है. देश के भीतर खाद्य कीमतें और बाहर से आने वाले कच्चे तेल की कीमतों की अधिकता भारत में महंगाई बढ़ने के प्रमुख कारक बन रहे हैं। जहां तक कच्चे तेल की कीमतों का संबंध है, सरकार ने स्वीकार किया है कि उसके पास इसको लेकर कुछ करने के लिए नहीं है. बजट में खाद्य कीमतों को कम करने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं बताया गया है.

जहां तक समावेशी विकास का संबंध है, बजट में कई घोषणाएं की गई हैं, जिनका समाज के वंचित वर्गों पर एक उल्लेखनीय प्रभाव पड़ने की उम्मीद है. इस संबंध में कुछ घोषणाएं इस प्रकार हैः

  1. पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन पर ध्यान देने के साथ कृषि ऋण लक्ष्य को 20 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाया गया.
  2. 6,000 करोड़ रुपये के लक्षित निवेश के साथ पीएम मत्स्य संपदा योजना की एक नई उप-योजना, मछुआरों, मछली विक्रेताओं और सूक्ष्म और लघु उद्यमों की गतिविधियों को सक्षम करने, मूल्य श्रृंखला क्षमता में सुधार और बाजार का विस्तार किया जाना है.
  3. प्राइमरी एग्रीकल्चर क्रेडिट सोसाइटी (पीएसीएस) को बहुउद्देश्यीय समितियां बनाना है, ताकि ऐसी सहकारी समितियों द्वारा गैर-कृषि क्षेत्रों को भी कवर किया जा सके.

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राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने का प्रयासःवित्त वर्ष 2022-23 के लिए संशोधित अनुमान में वित्त मंत्री ने राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 6.4 प्रतिशत रखा है, जो बजट अनुमान के मुताबिक ही है. हालांकि, अगले वित्त वर्ष के लिए इसे घटाकर 5.9 प्रतिशत कर दिया है. इसके लिए वित्त मंत्री को बधाई दी जानी चाहिए. इस तरह का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य विनिवेश के माध्यम से 51,000 करोड़ रुपये की प्राप्ति के अनुमान पर आधारित है, जो वर्तमान स्थिति को देखते हुए काफी महत्वाकांक्षी प्रतीत होता है. साथ ही यह लक्ष्य वित्त वर्ष 2022-23 की तर्ज पर अच्छे कर संग्रह पर आधारित है. लगातार दो वर्षों तक कोविड महामारी के बाद 2022-23 में कर संग्रह ठीक ठाक हुआ है. अगर इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश और समावेशी विकास के मोर्चों पर प्रस्तावित महत्वाकांक्षी व्यय किया जाना है तब सरकार के लिए वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाएगा. ऐसे में भारत का भाग्य ही उसके राजकोषीय घाटे को 5.9 प्रतिशत पर सीमित रखने के महत्वपूर्ण योगदान देगा.

हरित विकास और डिजिटलीकरण पर जोरः इस साल का बजट हरित विकास और भारतीय अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण स्तंभ यानी डिजिटलीकरण पर विशेष जोर दिया गया. ये ऐसे लक्ष्य हैं जो भारत को न केवल लचीले बल्कि विकास के सतत पथ पर भी ले जाएगा. हरित ईंधन, हरित ऊर्जा, हरित खेती, हरित परिवहन, हरित भवन और हरित उपकरण के लिए कई कार्यक्रम शुरू करने का प्रस्ताव रखा गया है. इसके साथ ही विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में ऊर्जा के कुशल उपयोग के लिए नीतियों के अनुसार ही शुरू करने का प्रस्ताव रखा गया है. घोषित उपायों में सबसे उल्लेखनीय 19,700 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ हाल ही में शुरू किए गए राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का क्रियान्वयन है, जो अर्थव्यवस्था को कम कार्बन फुटप्रिंट के साथ चमत्कारी तौर पर बदलने की क्षमता रखता है. यह जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता कम करेगा. सरकार का लक्ष्य 2030 तक हरित हाइड्रोजन के 5 एमएमटी के वार्षिक उत्पादन तक पहुंचना है. ये हरित विकास अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने में मदद करेगा और बड़े पैमाने पर हरित रोजगार के अवसर प्रदान करेंगे.

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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Last Updated : Feb 2, 2023, 12:14 PM IST

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