नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने एसिड अटैक के एक मामले में आरोपी को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया कि वह पीड़िता के अनदेखे दर्द के प्रति अपनी आँखें बंद नहीं कर सकता है. ऐसे अपराधों के लिए एक मजबूत निवारक स्थापित करना आवश्यक है. आरोपी ने याचिका दायर कर इस आधार पर अपनी रिहाई की मांग की थी कि अपराध के लिए न्यूनतम सजा 10 साल थी और वह पहले ही न्यायिक हिरासत में नौ साल बिता चुका है.
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घटना वर्ष 2014 में पश्चिमी दिल्ली के राजौरी गार्डन इलाके में हुई थी. यहां एक सरकारी अस्पताल में सीनियर रेजिडेंट के रूप में काम करने वाली 30 वर्षीय महिला पर आरोपी ने कथित रूप से दिनदहाड़े तेजाब डाल दिया था.
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि तेजाब हमला समाज में सबसे गंभीर अपराधों में से एक है. आरोपी की लंबी कारावास की पीड़ा को पीड़िता के न्याय के इंतजार के समान ही देखना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि इन हमलों के परिणामस्वरूप अक्सर जीवन बदल देने वाली चोटें आती हैं, जिससे न केवल शारीरिक दर्द होता है बल्कि भावनात्मक घाव भी होते हैं जो कभी ठीक नहीं होते. ऐसी स्थितियों में न्याय के संरक्षक के रूप में अदालत की भूमिका सामने आने की जरूरत है.
कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि अदालत पीड़िता द्वारा सामना किए गए अनदेखे मनोवैज्ञानिक दर्द और जीवन भर जारी रहने वाले उसके परिणामों पर अपनी आँखें बंद नहीं कर सकती. और इस घटना ने समाज में कई लड़कियों में भय और असुरक्षा पैदा कर दी होगी. जबकि आरोपी मुकदमा जारी रहने तक अपनी लंबी कैद पर शोक मना सकता है. अदालत ने कहा कि वह इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकती कि पीड़िता को अपने जीवन के अधिकांश समय काला चश्मा पहनना पड़ता है.