नई दिल्ली: गर्भपात के लिए समय-सीमा बढ़ाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया है. हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और केंद्रीय विधि मंत्रालय को नोटिस जारी किया है.
याचिका में किसी गर्भवती महिला या उसके गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को कोई खतरा होने की स्थिति में गर्भपात कराने की समय-सीमा बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते करने की मांग की गई है. बता दें कि एमटीपी एक्ट के तहत बीस हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण को हटाने की इजाजत नहीं है. बीस हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण को हटाने के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी होती है.
इसलिए जरूरी है इजाजत!
याचिका वकील अमित साहनी ने दायर की है. इसमें कहा गया है कि कई बार गंभीर किस्म की बीमारियों वाले भ्रूण को हटाने की इजाजत नहीं दी जाती है, लेकिन उसका दुष्परिणाम महिला को भुगतना पड़ता है. गंभीर किस्म के भ्रूण से पैदा हुए बच्चे को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
'प्रासंगिक नहीं है कानून'
एमपीटी एक्ट 1971 में लागू किया गया था. एमपीटी की धारा 3 के मुताबिक एक रजिस्टर्ड डॉक्टर ही 12 हफ्ते के भ्रूण को हटा सकता है. 12 से 20 हफ्ते के भ्रूण को तभी हटाया जा सकता है, जब दो डॉक्टरों का पैनल इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भ्रूण महिला के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है. याचिका में कहा गया है कि अधिकांश मामलों में गंभीर बीमारियों का पता 20 हफ्ते के बाद ही पता चलता है. इसलिए ये कानून प्रासंगिक नहीं है.