नई दिल्ली : आस्था और प्रकृति के संगम का महापर्व छठ पूजा के दूसरे दिन खरना का विशेष महत्व (Importance Of Kharna) है. खरना के दिन व्रत रखा जाता है और देर शाम में रसिया (खीर) का प्रसाद ग्रहण किया जाता है. मान्यता है कि खरना पूजा (Kharna Puja) के बाद ही घर में देवी षष्ठी (छठी मैया) का आगमन हो जाता है.
पंडित जय प्रकाश शास्त्री बताते हैं कि छठ पर्व (Chhath Festival) की शुरुआत 28 अक्टूबर शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ हो चुकी है. नहाय-खाय के बाद अगले दिन यानी शनिवार को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना मनाया जाएगा. खरना में दिन भर व्रत के बाद व्रती शाम को पूजा के बाद गुड़ से बनी खीर खाकर, उसके बाद से 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू करते हैं. खरना खास होता है, क्योंकि व्रती इसमें दिन भर व्रत रखकर रात में खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं.
खरना का मतलब होता है शुद्धिकरण. इसे लोहंडा भी कहा जाता है. खरना के दिन छठ पूजा का विशेष प्रसाद बनाने की परंपरा है. छठ पर्व बहुत कठिन माना जाता है और इसे बहुत सावधानी से किया जाता है. माना जाता है कि जो भी व्रती छठ के नियमों का पालन करती हैं, उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. खरना वाले दिन व्रती सुबह स्नान ध्यान करके पूरे दिन का व्रत रखते हैं. इसके अगले दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए प्रसाद बनाया जाता है. रात में पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है. इसके बाद व्रती छठ पूजा के पूर्ण होने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते हैं. इसके पीछे का मकसद तन और मन को छठ पारण तक शुद्ध रखना होता है.
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खरना के दिन प्रसाद के रूप में गुड़ और चावल की खीर बनाई जाती है. इसके अलावा पुड़िया, ठेकुआ, खजूर बनाया जाता है. पूजा के लिए मौसमी फलों और सब्जियों का इस्तेमाल होता है. खरना के दिन प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत की शुरुआत होती है. खरना के दिन से छठ पूजा समाप्त होने तक व्रत करने वाले लोग चादर बिछाकर सोते हैं.
खरना की विधि
इस दिन महिलाएं और छठ व्रती सुबह स्नान करके साफ वस्त्र धारण करती हैं. व्रती नाक से माथे के मांग तक सिंदूर लगाती हैं. खरना के दिन व्रती दिन भर व्रत रखती हैं और शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर साठी के चावल और गुड़ की खीर बनाकर प्रसाद तैयार करती हैं. सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद व्रती महिलाएं इस प्रसाद को ग्रहण करती हैं.
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