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Published : Oct 22, 2019, 3:22 PM IST

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विलय के खिलाफ हड़ताल पर बैंक कर्मचारी, बोले- सरकार कर रही है धोखा

दिल्ली में बैंकों के विलय को लेकर आज बैंक कर्मचारी हड़ताल पर है. आरोप है कि सरकार बैंक कर्मचारियों के साथ धोखा कर रही है और जो लोग सरकार का हर फैसले में साथ देते हैं, उन्हीं को नुकसान पहुंचा रही है.

बैंक कर्मचारी हड़ताल पर

नई दिल्ली: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय के विरोध में आज देशभर में बैंक कर्मचारी हड़ताल पर हैं. ऑल इंडिया बैंक एंप्लाइज एसोसिएशन और बैंक एंप्लोई फेडरेशन ऑफ इंडिया के तत्वाधान में ये हड़ताल बुलाई गई है. आरोप है कि सरकार बैंक कर्मचारियों के साथ धोखा कर रही है और जो लोग सरकार का हर फैसले में साथ देते हैं, उन्हीं को नुकसान पहुंचा रही है.

बैंक कर्मचारी विलय के खिलाफ हड़ताल पर है

बैंक कर्मचारियों ने की हड़ताल
मंगलवार को बड़ी संख्या में कर्मचारियों ने इकट्ठा होकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर अपनी आवाज बुलंद की. यहां न सिर्फ मौजूदा बैंक कर्मचारियों ने बल्कि रिटायर्ड कर्मचारियों ने भी आकर हिस्सा लिया. उन्होंने कहा कि सरकार को विलय से अलग बैंकों और बैंक कर्मचारियों की मौजूदा परेशानियों के विषय में सोचना चाहिए.

विलय के खिलाफ हैं कर्मचारी
ऑल इंडिया बैंक एंप्लाइज एसोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट जेपी शर्मा ने कहा कि 30 अगस्त को सरकार ने विलय का जो फैसला लिया है, कर्मचारी उसके खिलाफ हैं. सरकार अपने नॉन परफार्मिंग एसेट्स (nps) के लिए कुछ नहीं कर रही है जबकि ग्राहकों पर बोझ बढ़ रहा है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने सेविंग बैंक अकॉउंट्स पर ब्याज दर घटा दी है. इसी तरह अन्य जगहों पर भी ग्राहकों को इसका नुकसान झेलना पड़ रहा है.

'सरकार के सारे काम हो रहे है उलटे'
शर्मा ने कहा कि सरकार कोई एक कारण बताएं कि क्यों आखिर विलय की जरूरत पड़ रही है. रिटायर्ड कर्मचारी आलोक यहां केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहते हैं कि ये सरकार जो भी कह रही है उसके उलट सारे काम हो रहे हैं. वो कहते हैं कि एक तरफ तो प्रधानमंत्री कहते हैं कि देश को बिकने नहीं देंगे वहीं दूसरी तरफ बैंक के सारे एसेट्स बेचे जा रहे हैं. वो कहते हैं कि कर्मचारियों के सेटेलमेंट 2-2 साल से नहीं हुए हैं. तनख्वाह पहले ही कम है ऊपर से विलय कर और कर्मचारियों की परेशानी बढ़ा रहे हैं.

इन्होंने कहा कि अगर जल्दी ही सुनवाई नहीं कि गई तो ये हड़ताल का विस्तार किया जा सकता है.

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