नई दिल्लीः देश का राजधानी दिल्ली झोलाछाप डॉक्टरों का गढ़ बन रहा है. दक्षिणी दिल्ली स्थित मदनगीर निवासी राजेश के पिता की मौत एक झोलाछाप डॉक्टर के कारण हो गई. वह डाइबिटिज से पीड़ित थे और उन्हें नियमित इन्सुलिन का इंजेक्शन लेना होता था.
नीम-हकीम के चक्कर में जा रही जान एक दिन वह मजबूरी में अपने पड़ोस के झोलाछाप के पास इंजेक्शन लगवाने पहुंच गए. झोलाछाप को डाइबिटिज के मरीज को इंजेक्शन देने नहीं आता था. उसने जांघ या पेट पर लगने वाले इन्सुलिन के इंजेक्शन को हाथ की नस में लगा दिया, जिसकी वजह से थोड़ी देर बाद उसकी मौत हो गई.
दिल्ली में झोलाछाप की वजह से राजेश के पिता अकेले शिकार नहीं हैं. एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में लगभग 40000 झोलाछाप डॉक्टर लोगों की जान के साथ खेल रहे हैं. अगर एक झोलाछाप साल में किसी एक व्यक्ति की जान लेता है, तो भारत में हर सेकंड किसी झोलाछाप की वजह से एक व्यक्ति की जान जाती है. दिल्ली में हर 5 से 10 मिनट में झोलाछाप डॉक्टर की वजह से एक व्यक्ति का जीवन बर्बाद होता है.
पुलिस और कानून का भी नहीं है खौफ
विशेषज्ञों के मुताबिक देश भर में हर चौराहे पर अपनी दुकान चलाने वाले झोलाछाप डॉक्टर को नियंत्रित करने के लिए कानून भी है. उन्हें सजा दिलवाने के लिए पुलिस को अधिकार भी प्राप्त है, लेकिन सरकार की इच्छाशक्ति की कमी की वजह से कानून का पालन नहीं करवाया जा रहा है.
हाई कोर्ट के आदेश में यह था..
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के एंटीक्वैरी सेल के अध्यक्ष डॉ. अनिल बंसल ने बताया कि भारत में दो तरह के झोलाछाप डॉक्टर पाए जाते हैं. एक वह, जो बिना किसी मेडिकल डिग्री के एलोपैथी, आयुर्वेदा या होम्योपैथी की प्रैक्टिस कर रहे हैं और एलोपैथिक दवाइयां मरीजों को दे रहे हैं. दूसरे तरह के झोलाछाप डॉक्टर वो हैं, जिनके पास आयुर्वेद या होम्योपैथी की डिग्री तो होती है, लेकिन वे मरीजों को एलोपैथिक दवाइयां भी प्रिसक्राइब करते हैं.
कोर्ट का है स्पष्ट निर्देश
डॉक्टर बंसल बताते हैं कि झोलाछाप डॉक्टरों पर अंकुश लगाने के लिए हाई कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि जिनके पास कोई भी मेडिकल डिग्री नहीं है. अगर वे मेडिकल प्रैक्टिस करते हुए पाए जाते हैं, तो स्टेट मेडिकल काउंसिल एक्ट के तहत उनके खिलाफ कार्यवाई किया जाए. इसके अलावा आयुर्वेद, होम्योपैथी डिग्री के बावजूद एलोपैथिक दवाई की प्रैक्टिस करने वाले झोलाछाप के खिलाफ दिल्ली मेडिकल काउंसिल एक्ट 1998 के क्लाउज 27 के तहत 3 साल की सजा या 20000 का जुर्माना या 3 साल की कैद और जुर्माना दोनों के प्रावधान है.
बिना वैध डिग्री के मेडिकल प्रैक्टिस करना गैरकानूनी
एमसीडी एक्ट और स्टेट मेडिकल काउंसिल एक्ट के तहत आयुर्वेद या होम्योपैथ में क्वालीफाई डॉक्टर भी एलोपैथिक दवाइयों की प्रैक्टिस नहीं कर सकते हैं. देश के विभिन्न हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के तहत भी यह गैर कानूनी है.
500 से ज्यादा एफआईआर के बाद भी कार्रवाई नहीं
दिल्ली मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉक्टर अरुण गुप्ता बताते हैं कि उनके पास झोलाछाप डॉक्टरों की 500 से ज्यादा शिकायतें लंबित पड़ी हैं. इन सभी मामलों में दिल्ली मेडिकल काउंसिल ने एफआईआर भी दर्ज करवा रखी है, लेकिन दिल्ली पुलिस इस पर कोई कार्यवाई नहीं कर रही है. डॉक्टर गुप्ता का आरोप है कि दिल्ली पुलिस झोलाछाप डॉक्टरों से पैसे लेकर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करती हैं और उन्हें खुलेआम प्रैक्टिस करने की छूट दे देती है.
अरुण गुप्ता बताते हैं कि दिल्ली मेडिकल काउंसिल एक्ट के तहत प्ली गिल्टी का भी एक विकल्प होता है. जिसके अंतर्गत माफी मांगने और थोड़े-बहुत जुर्माने भरने के बाद इस शर्त पर झोलाछाप को छोड़ दिया जाता है कि वो आगे से प्रैक्टिस बंद कर देंगे. लेकिन जब तक इसका फॉलोअप नहीं किया जाएगा, तब तक यह पता लगाना मुश्किल है कि झोलाछाप डॉक्टर ने वाकई प्रैक्टिस बंद कर दी या किसी और नई जगह पर जाकर प्रैक्टिस शुरू कर दी है.
एमसीआई ने किया था यह प्रावधान..
डॉ. अनिल बंसल बताते हैं कि आजादी के बाद जब झोलाछाप डॉक्टरों की गैरकानूनी प्रैक्टिस करने से लोगों की जान जाने लगी, तो 1956 में पार्लियामेंट एक्ट द्वारा मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया का गठन किया गया. इस एक्ट की क्लाउज संख्या 15 (2 बी) के तहत यह प्रावधान किया गया कि केवल एमबीबीएस डॉक्टर ही एलोपैथिक दवाइयों की प्रैक्टिस कर सकते हैं.
कानूनी लड़ाई के बाद भी नहीं मिली सफलता
पंजाब हाई कोर्ट ने 1985 में एक अहम फैसला दिया था, जिसे आयुर्वैदिक प्रैक्टिशनर मुख्तार चंद ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट में इस केस के ऊपर 11 सालों तक सुनवाई चलती रही इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी एमसीआई एक्ट को सख्ती से लागू कराने का फैसला दिया. साथ ही नियमों का उल्लंघन कर गैर कानूनी प्रैक्टिस करने वाले झोलाछाप के खिलाफ एमसीआई एक्ट और स्टेट मेडिकल काउंसिल एक्ट के तहत कठोर सजा देने का एक लैंडमार्क फैसला दिया.
वहीं नेता और ब्यूरोक्रेट सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लागू करवाने के प्रति उदासीन रवैया रहा. इसे झोलाछाप डॉक्टरों ने अपने हक में मानते हुए एलोपैथिक दवाइयों की प्रैक्टिस जारी रखा. सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडिया आयुर्वेदिक एंड यूनानी प्रैक्टिशनर्स ने गैरकानूनी तरीके से एक नोटिफिकेशन जारी कर उन्हें एलोपैथिक दवाइयों की प्रैक्टिस करने की अनुमति दे दी. इस नोटिफिकेशन की आधार पर आयुर्वैदिक प्रैक्टिशनर एसोसिएशन केरल हाई कोर्ट पहुंचकर एलोपैथिक दवाइयों की प्रैक्टिस करने की अनुमति की मांग की. लेकिन उनके इस अपील को केरल हाईकोर्ट ने रिजेक्ट कर दिया. उसके बाद यह ग्रुप सुप्रीम कोर्ट पहुंचा लेकिन वहां भी उनकी हार हुई.
1998 में स्वास्थ्य मंत्री ने डीएमसी का किया था गठन
दिल्ली हाईकोर्ट के बाद अब आयुर्वेदिक डॉक्टर्स एसोसिएशन एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की तरफ रुख किया, जहां यह केस अभी भी पेंडिंग पड़ा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने स्टे ऑर्डर जारी कर दिया है. डॉ. अनिल बंसल के मुताबिक 1998 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ कठोर सजा देने का प्रावधान करने के लिए दिल्ली मेडिकल काउंसिल का गठन किए.
डीएमसी में रजिस्ट्रेशन के बिना प्रैक्टिस करने वाले झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ सजा का प्रावधान किया गया. डीएमसी के गठन के तुरंत बाद ही झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई. जगह-जगह रेड डाले गए, लेकिन सरकार और स्थानीय पुलिस का दिल्ली मेडिकल काउंसिल को सहयोग नहीं मिला. इससे झोलाछाप डॉक्टरों का हौसला इतना बुलंद हो गया कि रेड करने वाली टीम के सदस्यों के ऊपर चाकू से हमला कर दिया. डीएमसी की आदेशों का पालन भी सरकार या पुलिस नहीं करवा पाई.
एक मामले में हाई कोर्ट भी हुआ था हैरान
डॉ. अनिल बंसल ने बताया कि 2013 में रियाजुद्दीन नामक एक झोलाछाप की वजह से एक गर्भवती महिला की जान चली गई थी. यह केस दिल्ली हाईकोर्ट में था और आरोपी रियाजुद्दीन जब बेल के लिए आवेदन किया, तो हाईकोर्ट यह जानकर हैरान हो गई कि देश की राजधानी में यह सब हो रहा है. हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार और पुलिस के अधिकारियों को बुलाकर कड़ी फटकार लगाते हुए भारत के एडीशनल सॉलीसीटर सिद्धार्थ लूथरा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया और टाइम बाउंड मैनर में उन्हें अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा.
कमेटी ने मई 2015 में जो सिफारिशें दी उनके कुछ अंश इस तरह है. दिल्ली सरकार के अधिकारी, डीएमसी के प्रतिनिधि, पुलिस अधिकारी, ड्रग कंट्रोलर अधिकारी के अलावा दूसरे काउंसिल के प्रतिनिधि की एक ज्वाइंट कमिटी दिल्ली के सभी 13 जिलों में नियमित हर महीने रेड डालेगी. गैरकानूनी तरीके से प्रैक्टिस करने वाले झोलाछाप की एक पूरी लिस्ट दिल्ली पुलिस के बीच ऑफिसर तैयार करेंगे.
दिल्ली में प्रैक्टिस करने वाले सभी डॉक्टरों की रजिस्ट्रेशन की जांच की जाएगी. अगर उनका रजिस्ट्रेशन नकली पाए जाते हैं, तो इलाके के एसएचओ विभिन्न धाराओं के तहत आरोपी के खिलाफ केस दर्ज कर कार्रवाई करेंगे. इसके अलावा झोलाछाप डॉक्टरों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए रेडियो, टेलीविजन, प्रिंट और सोशल मीडिया के माध्यम से जागरूकता फैलाई जाएगी.
दिल्ली पुलिस ने नहीं कराया सर्वे
इस मामले का हास्यास्पद पक्ष यह है कि दिल्ली पुलिस ने कभी भी इस तरह का सर्वे नहीं किया. पुलिस कमिश्नर ने यह कहकर सर्वे करने से मना कर दिया कि उनके पास पर्याप्त मैन पावर नहीं है. इसके लिए उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में लिखित में आवेदन दिया. इसके बाद एंटीक्विटी अपने लेवल पर दिल्ली के विभिन्न इलाकों में रेड डालना शुरू किया, लेकिन पुलिस का सहयोग नहीं मिलने के बाद रेड डालना बंद कर दिया गया.
यह भी पढ़ेंः-झोलाछाप डॉक्टर के गलत इंजेक्शन से बच्ची की मौत, डॉक्टर गिरफ्तार