नई दिल्ली: दिल्ली सरकार का राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल और दिल्ली राज्य कैंसर संस्थान फंड की कमी से जूझ रहा है. हालत यह है कि दोनों अस्पतालों से डॉक्टर छोड़कर जा रहे हैं. इससे डॉक्टरों की कमी हो गई है और इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है. यह आरोप आम आदमी पार्टी के सीमापुरी विधायक और पूर्व मंत्री राजेंद्रपाल गौतम ने विधानसभा में लगाया.
गौतम ने गुरुवार को इस मुद्दे को उठाते हुए विधानसभा में कहा कि दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट हो या राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल. यहां के कितने डॉक्टर छोड़कर चले गए. जो डॉक्टर कॉन्टैक्ट्र पर नौकरी कर रहे थे, वो सब सुविधाओं की कमी के चलते नौकरी छोड़कर जा रहे हैं. यह बंद होने के कगार पर है.
फंड की कमी से नहीं चल रहा अस्पताल:पूर्व मंत्री राजेंद्रपाल गौतम ने कहा कि अस्पतालों से नौकरी छोड़कर जाने वाले डॉक्टर्स की सूची विधानसभा में भी मंगवाई जाए. अस्पतालों में उपकरण नहीं है, जिस वजह से डॉक्टर कुछ कर नहीं पाते. उन्हें समय पर वेतन देने के लिए सरकार के पास फंड नहीं है. पूरा हॉस्पिटल बंद होने के कगार पर है.
उन्होंने कहा कि फंड की कमी के कारण यहां एक्स-रे मशीन कैथ लैब और सीटी स्कैन सहित तमाम चिकित्सा उपकरण भी खराब पड़े हैं. डॉक्टर और नर्स को भी तीन-तीन महीने के बाद एक महीने का वेतन मिलता है. 650 बेड की क्षमता वाला यह अस्पताल मात्र ढाई सौ बेड की क्षमता से ही चल पा रहा है. उसमें भी अब अव्यवस्थाएं होने के चलते मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
पिछले कई महीनों से नहीं मिल पा रही सुविधा:अस्पताल में कुछ महीनों से कई मशीनें बंद है. पिछले छह महीने से दोनों कैथ लैब खराब होने से हार्ट के मरीजों की स्टंटिंग, एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी भी बंद है. दोनों कैथ लैब खराब होने से हार्ट के मरीजों की छह महीने से स्टंटिंग, एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी भी बंद रखी गई है. एक्स-रे मशीन कैथ लैब और सीटी स्कैन सहित तमाम चिकित्सा उपकरण भी खराब हैं.
जानें, डॉक्टर्स की हालत:अस्पताल के रेडियोलॉजी विभाग के प्रमुख रहे डॉ. लालेंद्र उप्रेती ने बताया कि वेतन में देरी के अलावा सबसे बड़ी समस्या रेडियोलॉजी में उपकरणों का खराब होना है. इन्हें ठीक कराने के लिए कई बार लिखकर भी दिया, लेकिन मशीनें ठीक नहीं हुई. इस वजह से अपने विभाग में मरीजों का काम नहीं हो पाने से परेशान होकर अंत में इस्तीफा देना ही उचित समझा. डॉ. उप्रेती ने बताया कि वेतन मिलने में भी तीन तीन महीने का समय लगता था. मैं अस्पताल में ड्यूटी करने 25 किलोमीटर दूर नोएडा से आता था.