नई दिल्ली: 2020 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए अक्टूबर 2019 में केंद्र सरकार ने दिल्ली की 1,731 अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले करीब 4 लाख से अधिक लोगों के लिए पीएम उदय योजना लॉन्च की थी. इसके तहत अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को अपने घर और प्लॉट की रजिस्ट्री करवाने और उनका मालिकाना हक देने का ऐलान किया गया था. इससे इन कालोनियों में रहने वाले लाखों लोगों उम्मीद जगी थी कि रजिस्ट्री होने से उनकी कॉलोनी का तेजी से विकास हो सकेगा.
लोगों को यह भी उम्मीद थी कि कॉलोनियों में सड़क और सीवर जैसी बुनियादी सुविधाएं सुचारू हो सकेंगी तो उनके घर की कीमत भी बढ़ेगी, जिससे वे अपने घरों पर बैंकों से ऋण लेने के हकदार भी हो जाएंगे. लेकिन दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) अफसरों की मनमानी के कारण यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी.
ऐसे रद्द किए गए आवेदन: योजना के तहत लोग अपने घरों की रजिस्ट्री करवाने के लिए डीडीए में आवेदन करते रहे और अधिकारी आवेदनों को धड़ाधड़ रद्द करते रहे. कभी कागजों में कमी बताकर तो कभी जीआईएस सर्वे का हवाला देकर लोगों के आवेदन रद्द किए गए. इसका नतीजा यह हुआ कि योजना लॉन्च होने के साढ़े तीन साल बाद भी इस योजना के तहत सिर्फ साढ़े 18 हजार घरों की ही रजिस्ट्री हो सकी है. इस मामले में डीडीए का पक्ष जानने के लिए जब डीडीए के पीआरओ को कॉल किया गया तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया.
लोगों ने लिया था हाथों हाथ: दरअसल, पीएम उदय योजना केंद्रीय आवासन एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने अक्टूबर 2019 में जब लॉन्च की थी. उस समय आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने विरोध भी किया था. इसके बावजूद इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों ने इस योजना को हाथों हाथ लिया था. दरअसल राजनितिक दलों को आशंका थी कि कुछ माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को इसका फायदा मिलेगा. हालांकि इस योजना का न तो भाजपा को कुछ खास लाभ मिला और न ही जनता को.