जयपुर :राजस्थान के छोटे से गांव से निकलकर अवनि लेखरा ने आज दुनिया मेंं अपनी एक अलग पहचान बनाई है. कार दुर्घटना में पैर खोने के बाद भी लेखरा ने कभी हार नहीं मानी, अवनि लेखरा के पिता कहते हैं कि बेटी को 2015 में पहली बार निशानेबाजी रेंज ले गए, उनका मकसद कार दुर्घटना के पैर गंवाने के बाद बेटी की जिंदगी से नाराजगी कम करके उसका दिल बहलाना था. उन्हें क्या पता था कि उनका यह प्रयास उनकी बेटी की जिंदगी हमेशा के लिए बदल देगा.
नाराजगी कम करने के लिए की गई पहल की परिणित आज टोक्यो पैरालम्पिक में अवनि के ऐतिहासिक स्वर्ण पदक के रूप में हुई. प्रवीण लेखरा ने कहा उस दुर्घटना के पहले वह काफी सक्रिय थी और हर गतिविधि में भाग लेती थी लेकिन उस हादसे ने उसकी जिंदगी बदल दी थी.
उन्होंने कहा वह हालात से काफी खफा थी और किसी से बात नहीं करना चाहती थी. माहौल बदलने के लिए मैं उसे जगतपुरा में जेडीए निशानेबाजी रेंज ले जाता था जहां से उसे निशानेबाजी का शौक पैदा हुआ. उन्होंने इसके बाद अपनी बेटी को ओलंपिक चैंपियन निशानेबाज अभिनव बिंद्रा की आत्मकथा 'अ शॉट एट हिस्ट्री : माय आब्सेसिव जर्नी टू ओलंपिक गोल्ड' खरीदकर दी. अवनि ने किताब पढ़ना शुरू किया और ओलंपिक में भारत के पहले व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता बिंद्रा से प्रेरित होने लगी.
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