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कौन है हिरोशिमा बॉय, जानिए ओलंपिक मशाल का क्या है परमाणु हमले से कनेक्शन

6 अगस्त, 1945 के परमाणु हमले के बाद 1964 में पहली बार ओलंपिक का आयोजन किया था. हिरोशिमा के योशीनोरी साकाई को एक खास मकसद के लिए चुना गया था. साकाई टोक्यो ओलंपिक के अंतिम टॉर्च बियरर थे.

hiroshima boy

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Published : Oct 15, 2019, 7:25 PM IST

Updated : Oct 16, 2019, 2:29 AM IST

नई दिल्ली:अमेरिका ने 6 अगस्त, 1945 को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु बम गिराए थे. दुनिया के पहले और सम्भवत: आखिरी परमाणु हमले में ये शहर पूरी तरह तबाह हो गए थे, लेकिन उस तबाही के बावजूद उस दिन इन दो शहरों में कई बच्चों ने पहली बार आंखें खोली थी. योशीनोरी साकाई भी उन्हीं में से एक थे. साकाई को 'हिरोशिमा बॉय' नाम मिला और जब वे 19 साल के हुए तब उन्हें एक खास मकसद के लिए चुना गया.

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जापान पर परमाणु हमले के बाद द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया. जापान ने खुद को इस विभिषिका से उभारा और 1964 में ओलंपिक मेजबानी हासिल करने वाला पहला एशियाई देश बना. हिरोशिमा और नागासाकी में जो नरसंहार हुआ था, उसे लेकर जापान के पास दुनिया को देने के लिए एक गम्भीर संदेश था. दुनिया में कहीं भी दोबारा परमाणु हमला न हो, ये संदेश मानवजाति तक पहुंचाने के लिए साकाई को चुना गया. साकाई टोक्यो ओलंपिक के अंतिम टॉर्च बियरर थे. इस कारण उन्हें ओलंपिक मशाल प्रज्जवलित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था.

अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर एक फीचर प्रकाशित किया है, जिसमें कहा गया कि जापान ने साकाई के माध्यम से दुनिया को ये संदेश दिया कि परमाणु युद्ध से मानवजाति का विनाश हो जाएगा. इससे सबको डरना चाहिए. साथ ही उसने ये भी संदेश दिया कि युद्ध के गम्भीर परिणामों से दूर रहते हुए उसने खुद को किस तरह एक आर्थिक ताकत एवं शांति दूत के रूप में दुनिया के सामने पेश किया है.

योशीनोरी साकाई ओलंपिक मसाल के साथ

ग्रीस से चलकर दुनिया के दर्जनों देशों से होती हुई ओलंपिक मशाल रिले सात सितम्बर, 1964 को जापान को ओकीनावा द्वीप पर पहुंची थी. इसके बाद मशाल को चार रास्तों से जापान में प्रवेश कराया गया था. इनमें से एक रास्ता हिरोशिमा भी था, जहां प्रसिद्ध गेनबाकू डोम पर हजारों लोगों ने इसका स्वागत किया था. परमाणु हमले के बाद सिर्फ यही डोम नष्ट होने से बच गया था.

इसके बाद मशाल को ओलंपिक स्टेडियम लाया गया, जहां अंतिम धावक के रूप में साकाई ने इसे अपने हाथों में लिया. साकई के स्टेडियम पहुंचने के बाद पांच गोलों से युक्त सफेद रंग का ओलंपिक ध्वज फहराया गया और ओलंपिक गान बजाया गया. तोपों की सलामी दी गई और इन सबके बीच साकाई 163 सीढ़ियां चढ़ते हुए मुख्य ओलंपिक मशाल तक पहुंचे और उसे प्रज्जवलित किया. उस समय दोपहर के तीन बजकर तीन मिनट और तीन सेकेंड समय हुआ था.

मसाल का स्वागत करते लोग

ओलंपिक में ग्रीस से मेजबान देश तक मशाल रिले आयोजित करने की परंपरा 1936 में शुरू हुई थी. हजारों किलोमीटर की यात्रा के बाद मेजबान शहर पहुंचने के बाद मुख्य मशाल को जलाने के लिए चुने गए एथलीट को ये मशाल सौंपी जाती है. ये व्यक्ति उस देश का मौजूदा या पूर्व एथलीट, प्रतिभाशाली युवा एथलीट या फिर ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जिसे एक खास मकसद के तहत चुना जाता है.

साकाई का चयन भी एक खास मकसद के लिए हुआ था. 'हिरोशिमा बॉय' साकाई ने कभी ओलंपिक में हिस्सा नहीं लिया. वे इस मकसद के लिए चुने जाने से पहले वासेदा विश्वविद्यालय रनिंग क्लब के सदस्य थे. ओलंपिक खेलों के बाद हालांकि साकाई ने 1966 में बैंकॉक में एशियाई खेलों में 4 गुणा 400 मीटर रिले में स्वर्ण तथा 400 मीटर दौड़ में रजत पदक जीता था. इसके बाद वह 1968 में जापान के मशहूर फ्यूजी टेलीविजन के साथ जुड़े और खबरों, खासकर खेल से जुड़ी खबरों पर काम किया.

टोक्यो ओलंपिक 2020

10 सितम्बर, 2014 को 69 साल की उम्र में ब्रेन होमेरेज के कारण उनकी मौत हुई.

अब जापान 55 साल बाद 2020 में फिर से ओलंपिक मेजबानी के लिए तैयार है. इस बार कोई और व्यक्ति मशाल जलाएगा, लेकिन साकाई के माध्यम से दुनिया को दिए गए विश्व शांति के संदेश की सार्थकता कम नहीं हुई है. जापान 1945 की उस घटना को नहीं भूला है लेकिन इसके बावजूद वे दुनिया में सबसे अधिक 'फल-फूलकर' अग्रणी वैश्विक आर्थिक ताकत बना हुआ है और इसकी मिसाल वे टोक्यो में अगले साल जुलाई-अगस्त में पेश करेगा, जिसके लिए उसने खास तैयारियां की हैं.

Last Updated : Oct 16, 2019, 2:29 AM IST

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