नई दिल्ली: तीन दशक से अधिक के इंतजार के बाद इस वर्ष पद्मश्री सम्मान के लिए चुने गए पी टी उषा के कोच ओ एम नाम्बियार ने कहा कि 'देर आए लेकिन दुरूस्त आए' देश को उषा जैसी महान एथलीट देने वाले 88 वर्ष के नाम्बियार ने कोझिकोड से पीटीआई से बातचीत में कहा, ''मैं ये सम्मान पाकर बहुत खुश हूं हालांकि ये बरसों पहले मिल जाना चाहिए था. इसके बावजूद मैं खुश हूं. 'देर आए, दुरूस्त आए'
उन्होंने कहा, ''मेरे शिष्यों के जीते हर पदक से मुझे अपार संतोष होता है. द्रोणाचार्य पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ एशियाई कोच का पुरस्कार और अब पद्मश्री मेरी मेहनत और समर्पण का परिणाम है.'' अपनी सबसे मशहूर शिष्या उषा को ओलंपिक पदक दिलाना उनका सबसे बड़ा सपना था हालांकि 1984 में लॉस एंजिलिस ओलंपिक में वो मामूली अंतर से कांस्य से चूक गई.
अतीत की परतें खोलते हुए उन्होंने कहा, ''जब मुझे पता चला कि 1984 ओलंपिक में 400 मीटर बाधा दौड़ में उषा एक सेकंड के सौवें हिस्से से पदक से चूक गई तो मैं बहुत रोया. मैं रोता ही रहा. उस पल को मैं कभी नहीं भूल सकता. उषा का ओलंपिक पदक मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना था.'' उषा को रोमानिया की क्रिस्टिएना कोजोकारू ने फोटो फिनिश में हराया.