नई दिल्ली:तीन मैचों की टेस्ट सीरीज भारत ने 2-1 से गंवाई तो इतने ही मुकाबलों की वनडे सीरीज में 3-0 से क्लीन स्वीप हुआ. अब हार का पोस्टमार्टम होगा तो बलि के बकरे भी तलाशे जाएंगे. लेकिन जिस एक सवाल का जवाब कोई नहीं देगा वो ये कि आखिर साउथ अफ्रीकी टीम से हर मामले में बेहतर होने के बावजूद भारतीय टीम को इस दौरे पर इतनी शमिर्ंदगी क्यों झेलनी पड़ी?
सवाल तो पिच के न समझ में आने वाले पेंच पर भी किया जाएगा कि आखिर क्या वजह रही कि जिस पिच पर साउथ अफ्रीकी बल्लेबाजों ने जमकर रन कूटे और गेंदबाजों ने विकेटों की झड़ी लगा दी. उन पिचों पर भारतीय दिग्गज दोनों मोचरें पर फिसड्डी कैसे रह गए?
पिच की किचकिच!
सेंचुरियन से लेकर जोहान्सबर्ग और वहां से केपटाउन तक, साउथ अफ्रीका के इन सभी मैदानों में एक चीज कॉमन है. वो ये कि इन स्टेडियम की पिचें तेज गेंदबाजों का स्वर्ग कहलाई जाती हैं. यहां मिलने वाला अतिरिक्त उछाल और सीम मूवमेंट किसी भी बल्लेबाज के लिए चुनौती और किसी भी गेंदबाज के लिए मुंह मांगे वरदान की तरह है. अब इस बात में कोई रॉकेट साइंस नहीं है कि कुछ वक्त पहले भारत नंबर वन टेस्ट टीम के तौर पर साउथ अफ्रीका गई थी.
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बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों विभागों में साउथ अफ्रीका से कहीं आगे. तेज गेंदबाजी में तो जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी, मोहम्मद सिराज, शार्दुल ठाकुर और ईशांत शर्मा जैसे दिग्गजों की फौज थी. साउथ अफ्रीका की पिचें भी भारतीय खिलाड़ियों के एकदम मुफीद. फिर भी जब दोनों विभागों में खुद को साबित करने की बारी आई तो नतीजा सिफर रहा और उसी पिच पर कम अनुभवी साउथ अफ्रीकी गेंदबाज और बल्लेबाज टीम इंडिया के खिलाड़ियों के सिर पर चढ़कर नाचे.
साउथ अफ्रीकी पिचों का ये पेंच इसलिए और भी पेचीदा है, क्योंकि टेस्ट सीरीज में जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी, मोहम्मद सिराज और रविचंद्रन अश्विन को कीगन पीटरसन, डीन एल्गर, रासी वान डेर दुसैं ने भारतीय गेंदबाजों को सहजता से खेला तो केएल राहुल (सेंचुरियन टेस्ट की पहली पारी को छोड़कर), मयंक अग्रवाल, विराट कोहली, चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे मेजबान गेंदबाजों कगिसो रबाडा, लुंगी एन्गिडी, मार्को यानसिन और डुआन ओलवर के खिलाफ संघर्ष ही करते दिखे. वहीं वनडे सीरीज में क्विंटन डी कॉक, टेम्बा बावुमा औ रासी वान डेर दुसैं ने मेहमान गेंदबाजों को आसानी से खेलते हुए टीम को जीत दिलाई.
दरअसल, भारत ने दौरे की शुरूआत सेंचुरियन में पहले टेस्ट मैच से की. साउथ अफ्रीका की सबसे तेज पिचों में इसकी गिनती होती है. यहां भारतीय बल्लेबाजों खासकर केएल राहुल और मयंक अग्रवाल ने संभलकर शुरूआत करते हुए 117 रन की साझेदारी कर गेंदबाजों के खतरे को टाल दिया. पूरे दौरे पर यही एक वो पड़ाव था, जहां टीम इंडिया का साउथ अफ्रीका पर दबदबा दिखा.
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यहां तक कि पहले टेस्ट में टीम इंडिया की जीत की वजह भी यही साझेदारी बनी. क्योंकि इसके बाद से ही मेजबान टीम ने जोरदार पलटवार करना शुरू कर दिया था. इस पारी में भारते ने आखिरी सात विकेट करीब 50 रन जोड़कर गंवा दिए. दूसरी पारी में तो टीम 174 रनों पर ही सिमट गई. हालांकि, पहली पारी में मिली 130 रन की बढ़त की बदौलत टीम इंडिया ये मुकाबला जीतने में सफल रही.
जोहान्सबर्ग में दूसरे टेस्ट से तो पूरी कहानी ही बदल गई और यहां अलग ही तस्वीर देखने को मिली. वांडर्स के मैदान की पिच तेज गेंदबाजों खूब रास आती है. यहां का उछाल और सीम मूवमेंट बल्लेबाजों के हाथ पांव फुला देता है. हमने ऐसा होते देखा भी, जब इस पिच पर भारतीय टीम 202 और 266 रनों पर सिमट गई.
मगर जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद सिराज और मोहम्मद शमी जैसे टीम इंडिया के धाकड़ विश्व स्तरीय गेंदबाजों की दुर्गति तो तब देखने को मिली, जब इसी पिच पर चौथी पारी में बारिश के बाद के हालात में भी साउथ अफ्रीका ने महज तीन विकेट खोकर 240 रनों का मुश्किल लक्ष्य बड़ी आसानी से हासिल कर लिया.
अब ऐसे में इस पिच का पेंच कैसे समझा जा सकेगा, जो भारतीयों के लिए काल है तो साउथ अफ्रीका के लिए कमाल. केपटाउन टेस्ट की कहानी भी अलग नहीं थी. कुछ-कुछ जोहान्सबर्ग से मिलती हुई ही रही. यहां भी भारतीय बल्लेबाज मेजबान गेंदबाजों के आगे सरेंडर करते चले गए और साउथ अफ्रीकी बल्लेबाज मेहमान गेंदबाजों के आगे से जीत निकालकर चलते बने.
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भारत को पहली और दूसरी पारी में 223 और 198 रन पर समेटने के बाद साउथ अफ्रीका ने चौथी पारी में 212 रन का लक्ष्य एक बार फिर सिर्फ तीन विकेट खोकर हासिल कर लिया और टीम इंडिया को ये बताया कि इन पिचों पर बल्लेबाजी और गेंदबाजी कैसे की जाती है.
वनडे सीरीज के शुरूआती दो मुकाबले पार्ल के मैदान पर खेले गए, जबकि आखिरी मुकाबला केपटाउन में हुआ. टीम इंडिया की शर्मनाक शिकस्त का एक पहलू ये भी रहा कि इन तीन में से दो मुकाबलों में टॉस भारत ने जीता था. लेकिन मैच जीतने के मामले में मायूसी ही हाथ लगी. पहले वनडे में भारतीय टीम 297 रनों का लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी तो दूसरे वनडे में इसी मैदान पर 288 रनों के लक्ष्य का बचाव नहीं कर पाई.
यानी बल्लेबाजी से लेकर गेंदबाजी तक सब जगह भारतीय टीम फिसड्डी ही साबित हुई. तीसरे वनडे में साउथ अफ्रीका ने 287 रन बनाए और चार से ये मैच जीता. लेकिन इसमें भी चौंकाने वाली बात ये रही कि केपटाउन की जिस पिच पर साउथ अफ्रीकी ओपनर क्विंटन डी कॉक ने 124 रन अकेले ठोक दिए. वहां भारतीय बल्लेबाज संघर्ष करते नजर आए. यहां तक कि पहले वनडे में भी टेम्बा बावुमा और रासी वान डेर दुसैं के शतक मेजबान टीम की ओर से देखने को मिले और इस मामले में भारतीय बल्लेबाजों के हाथ खाली ही रहे.
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ऐसे समझिए भारतीय गेंदबाजों की नाकामी
तीन मैचों की टेस्ट सीरीज में जहां साउथ अफ्रीकी गेंदबाजों ने कुल 60 विकेट लिए, वहीं भारतीय गेंदबाज 46 विकेट ही हासिल कर सके, वो भी तब जबकि भारत नंबर वन टेस्ट टीम के तौर पर खेल रहा था. इनमें भी तेज गेंदबाजों की मददगार इन पिचों पर मेजबान पेसर्स ने 60 में से 59 विकेट अपने नाम किए. यानी कि सिर्फ एक विकेट स्पिनर के खाते में गया.
वहीं भारतीयों में 46 में से 43 विकेट पेसर्स ने लिए, जबकि तीन विकेट रविचंद्रन अश्विन के खाते में आए. वहीं वनडे सीरीज में साउथ अफ्रीकी तेज गेंदबाजों ने कुल 24 विकेट लिए जिनमें से 15 शिकार तेज गेंदबाजों ने किए. जबकि नौ विकेट स्पिनर्स के खाते में गए. वहीं भारतीय इस बार भी फिसड्डी रहे और वनडे सीरीज में मेजबान टीम के सिर्फ 14 विकेट ही ले सके. इनमें भी तेज गेंदबाजों ने 11 विकेट लिए, जबकि बाकी तीन शिकार स्पिनरों ने अपने खाते में डाले.