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शावर में घंटों रोता था.. नेपोटिज्म के तानों से हुए थे इमाम उल हक परेशान

इमाम उल हक ने कहा है कि किस तरह वे नेपोटिज्म के तानों से परेशान हो गए थे और अपने डेब्यू वनडे सीरीज के दौरान किस तरह शावर के नीचे खड़े हो कर घंटों रोते थे.

Imam-ul-Haq
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Published : Jul 25, 2020, 1:43 PM IST

कराची :पाकिस्तान के लिए क्रिकेट खेलने कोई आसान चीज नहीं है. इस देश ने एक के बाद एक क्रिकेट जगत को लेजेंड्स दिए हैं. इमरान खान, वसीम अकरम, सक्लैन मुश्ताक, साईद अनवर और जावेद मियांदाद जैसे खिलाड़ी पाकिस्तान से निकले हैं. लेकिन अगर कोई खिलाड़ी पाकिस्तान के सफल कप्तानों में से एक रहे इंजमाम उल हक से जुड़ा हो तो उसके लिए क्रिकेट खेलना बहुत कठिन हो जाता है. ऐसा ही दबाव पाकिस्तान के सलामी बल्लेबाज इमाम उल हक भी झेलते हैं.

इंजमाम के भतीजे इमाम को पहली बार पाकिस्तान टीम में श्रीलंका के खिलाफ वनडे सीरीज के लिए चुना गया था, तब उनको भाई-भतीजावाद के तानों का सामना करना पड़ा था. सोशल मीडिया पर उनको कई लोनों ने ताने दिए थे. फैंस उनकी बल्लेबाजी और टीम में जगह बनाने पर सवाल भी करते थे. हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में 24 वर्षीय इमाम ने कहा है कि इसका सामना करना बहुत कठिन था.

इमाम उल हक

उन्होंने कहा, "सच कहूं तो, जब मैं पाकिस्तान के लिए चुना गया तब मेरा एक ही दोस्त था- बाबर. लेकिन हम दोनों ज्यादा बात नहीं करते थे क्योंकि हम लगातार पाकिस्तान के लिए खेल रहे थे और मैं घरेलू क्रिकेट भी खेलता था. इसलिए हम ज्यादा बात नहीं करते थे."

उन्होंने आगे कहा, "वो अपने क्रिकेट पर ध्यान देता था, वो हर फॉर्मेट में बहुत अच्छा फॉर्म में भी था और उसने श्रीलंका के खिलाफ वनडे सीरीज में लगातार दो शतक जड़े थे. उस समय वो टेस्ट क्रिकेट में ज्यादा अच्छा नहीं कर पा रहा था इसलिए उसका ध्यान टेस्ट क्रिकेट में खुद को बेहतर करने पर था. इसलिए हमारी ज्यादा बात नहीं हो पाती थी."

इमाम उल हक का वनडे करियर

श्रीलंका के खिलाफ 2017 में खेली गई सीरीज को याद कर इमाम ने कहा, "मैं बहुत निराश रहता था और सब से दूर रहता था, खाना भी अकेले खाता था. वो मेरा पहला टूर था और जब भी मैं फोन देखता था, मैं देखता था कि लोग मुझे सोशल मीडिया पोस्ट पर टैग कर रहे हैं और चीजें भेज रहे हैं. मैं बहुत निराश हो गया था और मुझे समझ नहीं आता था कि मैं क्या करूं."

उन्होंने आगे कहा, "मैंने अपने परिवार से भी बात करनी बंद कर दी थी मैं उनको दुखी नहीं करना चाहता था. नहीं बताना चाहता था कि मैं परेशान हूं. मैं फोन बंद कर के अपने मैनेजर को दे देता था और मैं कहता था कि मैं इसे इस्तेमाल नहीं कर सकता, ले जाओ इसे."

इमाम उल हक

इमाम ने कहा, "मुझे याद है कि मैंने अभी खेलना भी शुरू नहीं किया था और बाथरूम में जाकर घंटों रोया था. किसी भी युवा खिलाड़ी को खुद की क्षमता पर शक होना बहुत आम बात है. मेरे दिमाग में बस यही बात चलती थी कि मैं अभी तक खेला भी नहीं हूं, क्या होगा अगर मैं खेला और अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सका? फिर तो मेरा करियर खत्म हो जाएगा. मैं अपने कमरे से एक कदम भी बाहर नहीं रख पाऊंगा. मुझे डर था कि लोग मुझे नुकसान पहुंचा सकते हैं क्योंकि दुबई में पाकिस्तानी कम्युनिटी के काफी लोग हैं."

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