नई दिल्ली:भारतीय निशानेबाजों ने वर्ष 2019 में लगातार अच्छा प्रदर्शन करके अपना दबदबा इस तरह से बनाया कि कुछ अवसरों पर तो विश्व प्रतियोगिताएं घरेलू टूर्नामेंट जैसी लगी जिससे टोक्यो ओलंपिक में इस खेल से अधिक से अधिक पदक बटोरेने की उम्मीद बंध गयी है.
भारत के इस प्रदर्शन में युवा निशानेबाजों का अहम योगदान रहा जिन्होंने बेफिक्र होकर अपने निशाने साधे. इनमें से कुछ को परीक्षाओं की तैयारी करनी पड़ी लेकिन साथ में उन्होंने निशानेबाजी पर भी कड़ी मेहनत की.
भारत ने हासिल किए 15 ओलंपिक कोटे
इस साल भारत ने राइफल - पिस्टल विश्व कप और फाइनल्स में कुल मिलाकर 21 स्वर्ण, छह रजत और तीन कांस्य पदक जीते.
भारत निशानेबाजी में अभी तक 15 ओलंपिक कोटा हासिल कर चुका है जो कि रिकॉर्ड है और जिससे देश की इस खेल में प्रगति का पता चलता है. इससे भारत की टोक्यो ओलंपिक में रियो की निराशा को भी समाप्त करने की उम्मीद बंध गयी है.
भारतीय निशानेबाजों का ओलंपिक में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन लंदन 2012 में रहा जबकि उन्होंने दो पदक जीते थे. वे टोक्यो में आसानी से सुधार कर सकते हैं.
रियो के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ (एनआरएआई) ने कुछ कड़े फैसले किए थे. इसमें ओलंपिक खेलों से पहले किसी तरह का वित्तीय करार नहीं करना भी शामिल है. ये निशानेबाजों की ध्यान भंग होने से बचने के लिए किया गया भले ही कुछ निशानेबाजों को ये नागवार गुजरा.
रियो के बाद अगर भारतीय निशानेबाजों ने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया तो इसका श्रेय एनआरएआई को भी जाता है जिसने अभिनव बिंद्रा की अगुवाई वाली समिति के सुधारात्मक उपायों को गंभीरता से लिया.
जूनियर निशानेबाजों ने किया कमाल
महासंघ ने जसपाल राणा और समरेश जंग जैसे अनुभवी निशानेबाजों की मदद से जूनियर कार्यक्रम को अच्छी तरह से व्यवस्थित किया. इससे देश को मनु भाकर, सौरभ चौधरी, दिव्यांश सिंह पंवार और इलावेनिल वलारिवान जैसे निशानेबाज मिले.