दिल्ली

delhi

ETV Bharat / opinion

महिंदा राजपक्षे की धमाकेदार जीत, भारत-श्रीलंका संबंध होंगे स्थिर

श्रीलंका के संसदीय चुनाव में राजपक्षे भाइयों की बड़ी जीत के बाद नई दिल्ली और कोलंबो के बीच रिश्तों में सुधार के आसार दिख रहे हैं. चुनाव में जीत के बाद महिंदा राजपक्षे ने भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने के संकेत दिए हैं. नई दिल्ली-कोलंबो संबंधों को स्थिर करना चाहते हैं. पढ़िए भारत-श्रीलंका के संबंधों पर वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा का विशेष लेख...

rajapaksa-clan-registers-landslide-win
महिंदा राजपक्षे की धमाकेदार जीत

By

Published : Aug 7, 2020, 11:06 PM IST

Updated : Aug 8, 2020, 11:49 AM IST

नई दिल्ली : श्रीलंका के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद महिंदा राजपक्षे इस साल फरवरी में पहली बार भारत के आधिकारिक दौरे पर आए थे. तब भारत के एक अंग्रेजी अखबार ने उनसे सवाल किया था कि क्या श्रीलंका के संविधान के 19वें संशोधन को लेकर जारी कशमकश के मुद्दे पर उनके और उनके छोटे भाई गोटाबाया राजपक्षे के बीच समस्याएं पैदा हो सकती हैं? अपनी प्रतिक्रिया में पूर्व राष्ट्रपति और श्रीलंका के बेहद ताकतवर नेता महिंदा ने जवाब दिया- नहीं, नहीं, नहीं. उल्लेखनीय है कि महिंदा राजपक्षे ने वर्ष 2009 में एलटीटीई को सख्ती से कुचल दिया था. उन्होंने आगे कहा था कि जिस तरह से मौजूदा संविधान बनाया गया है और 19वें संशोधन को लेकर भ्रम की स्थिति है, उसे केवल दोनों भाई (महिंदा और गोटाबाया) ही संभाल सकते हैं. नहीं तो कोई भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर कभी भी सहमत नहीं होगा.

महिंदा राजपक्षे ने कोरोना महामारी के बीच पांच अगस्त को हुए संसदीय चुनाव में 145 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया है. अब 19वें संविधान संशोधन में बदलाव करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा.

पहले स्थगित किए गए इस चुनाव में लगभग 71 प्रतिशत मतदाताओं ने भाग लिया जो 2015 में हुए संसदीय चुनाव के 77 प्रतिशत मतदान से कम है. प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने फिर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पार्टी (एसएलपीपी) से राजधानी के उत्तर-पश्चिम जिला कुरूनेगला से चुनाव लड़े थे.

पूर्व राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने पोलोनारुआ के उत्तर-मध्य क्षेत्र से जबकि पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे और साजिथ प्रेमदासा ने कोलंबो जिले से चुनाव लड़ा था. साजिथ‌ की सामागी जान बालावेगाया (एसजेबी) 54 सीट जीतकर मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी है.

चुनाव परिणाम राष्ट्रपति गोटाबाया के लिए बहुत ही उत्साह बढ़ाने वाला है. राष्ट्रपति को संविधान संशोधन के लिए 225 सदस्यीय श्रीलंकाई संसद में दो तिहाई बहुमत चाहिए था. गोटाबाया राजपक्षे को चुनाव प्रचार के दौरान 2015 में किए गए 19वें संविधान संशोधन को खत्म करने या बदलाव करने के लिए कुल 150 सीटों की जरूरत होगी. 2015 में 19वां संविधान संशोधन तब किया गया था, जब महिंदा राजपक्षे 10 साल शासन करने के बाद चुनाव हार गए थे और सिरिसेना राष्ट्रपति बने थे. उस संशोधन में राष्ट्रपति के अधिकारों को कम करके उन्हें प्रधानमंत्री और संसद को समान रूप से बांट दिया गया था. उसका मकसद शासन की संसदीय प्रणाली की तरफ बढ़ना था.

सिरिसेना और विक्रमसिंघे के बीच अंदर खाने पहले से ही विवाद चला रहा था लेकिन पिछले साल ईस्टर पर्व के दिन हुए आतंकी हमलों के बाद यह और बढ़ गया. उस आतंकी हमलों में 290 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.

इन दोनों नेताओं की लड़ाई ने वर्ष 2019 के राष्ट्रपति चुनाव में गोटाबाया राजपक्षे की शानदार जीत का मार्ग प्रशस्त कर दिया. ‌यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) पूरे श्रीलंका में मात्र तीन प्रतिशत वोट ही हासिल कर पाई है और पार्टी को अपमानित होना पड़ा है. यह चिंता तब और बढ़ेगी जब दोनों राजपक्षे भाई फिर सत्ता संभालेंगे और मजबूत विपक्ष का अभाव जल्द ही दिखने लगेगा.

भारत पहले राजपक्षे बंधुओं से प्रेम जताता था, फिर चीन के साथ महिंदा के प्रेम संबंध और तमिल अल्पसंख्यकों को और अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने की अनिच्छा को देखकर भारत ने उनसे दूरी बना ली.

गोटाबाया के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद पिछले साल नवंबर में संबंधों को फिर से ठीक करने की प्रक्रिया शुरू हुई. संसदीय चुनाव में महिंदा की जोरदार जीत के बाद नई दिल्ली को खाड़ी देश श्रीलंका को चीन के प्रभाव से दूर रखने के लिए पहले से कहीं ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी. भारत लंबे समय से चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर टकराव की स्थिति और नेपाल में भारत विरोधी भाषणों का सामना कर रहा है.

जीत पर महिंदा को शुरू में ही फोनकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबंधों को ताजगी देने के लिए मंच तैयार कर लिया है. मोदी बधाई देने वाले दुनिया के नेताओं में पहले हैं, यहां तक कि जब आधिकारिक रूप से चुनाव परिणाम की घोषणा नहीं हुई थी, उसके पहले ही मोदी ने बधाई दे दी.

इसके जवाब में राजपक्षे ने ट्वीट किया- बधाई वाले फोन कॉल के लिए आपका धन्यवाद पीएम नरेंद्र मोदी. राजपक्षे ने आगे लिखा- श्रीलंका के लोगों के भारी समर्थन के साथ हम दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सहयोग को और आगे बढ़ाने के लिए आपके साथ मिलकर काम करने के लिए आशा कर रहे हैं. श्रीलंका और भारत मित्र और संबंधी हैं.

यह भी पढ़ें-ब्लैक लिस्ट से बचने के लिए पाक संसद में एफएटीएफ से जुड़ा विधेयक पारित

उत्तर और पूर्व में विभाजित तमिल राष्ट्रीय गठबंधन (टीएनए) चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद संविधान के 13वें संविधान संशोधन के तहत तमिलों के लिए राजनीतिक सामंजस्य एवं सत्ता के हस्तांतरण की आशा के लिए अच्छा शगुन नहीं है.

टीएनए ने एक बड़ा वोट शेयर खो दिया है. हालांकि, अभी पूरे उत्तर पूर्व में एक बड़ी पार्टी बनी हुई है. तमिल मतदाता पहले से ही 13वें संविधान संशोधन को पूरी तरह से लागू होते देखने को लेकर एहतियात बरत रहे थे, क्योंकि राजपक्षे 2019 में ही सत्ता के गलियारे में लौट आए थे. राष्ट्रपति गोटाबाया पहले ही कह चुके हैं कि 13वें संविधान संशोधन के कुछ अंशों को लागू नहीं किया जा सकता है. उन्होंने इसके हितग्राहियों को अन्य विकल्पों पर विचार करने को कहा है. चुनाव प्रचार के दौरान महिंदा ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह सिंहली रूढ़िवादी मुद्दे को लेकर चुनाव लड़ रहे हैं.

चुनाव के इन परिणामों का मतलब यह है कि नई दिल्ली, कोलंबो के साथ भविष्य में श्रीलंकाई तमिलों के जातीय संकट के समाधान के लिए सत्ता के हस्तांतरण में अपने प्रभाव का बहुत कम लाभ उठा पाएगा. श्रीलंका में तमिलों का मुद्दा तमिलनाडु की घरेलू राजनीति में गूंजता रहता है.

भारत के लिए प्रमुख बुनियादी संरचना परियोजनाओं के भविष्य पर विशेषकर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) परियोजना को लेकर अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है. बहुत विचार विमर्श के बाद मई 2019 में श्रीलंका ने जापान और भारत के साथ संयुक्त रूप से 700 मिलियन डॉलर की अनुमानित लागत से एक टर्मिनल विकसित करने के सहयोग सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किया था.

यह समझौता विक्रमसिंघे और सिरिसेना के बीच विवाद का एक बहुत बड़ा मुद्दा बन गया. पूर्व राष्ट्रपति राष्ट्रवाद का कार्ड खेल गए और उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय संपत्तियों के प्रबंधन के लिए विदेशी भागीदारी नहीं चाहिए. इस मुद्दे पर दोनों ने एक दूसरे को उलटी दिशा में खींचा, जिससे गठबंधन की सरकार गिर गई. तमिल संपादकों को संबोधित करते हुए जुलाई की शुरुआत में महिंदा राजपक्षे ने यह उल्लेख किया कि उस परियोजना का भविष्य एक साल बाद भी स्पष्ट नहीं है. बताया जाता है कि उन्होंने कहा था कि यह समझौता पूर्व राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुआ था, लेकिन अभी हम लोगों ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है. हालांकि, श्रीलंका का हामबानाटोटा बंदरगाह चीन के साथ 99 साल की लीज पर है, लेकिन ऐसा लगता है कि यह श्रीलंका के राष्ट्रवादी बेचैनी के दायरे से बाहर है.

कोलंबो सिटी परियोजना में भी चीनी शामिल हैं. महिंदा के बेटे नमन अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र हंबनटोटा से चुनाव लड़े और जीते. उनकी योजना एक ऐसे समेकित रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण टाउनशिप की है जो पर्यावरण के अनुकूल एक स्थाई अड्डा और उनके निर्वाचन क्षेत्र की प्रमुख आधारभूत संरचना हो. नमन हाल ही में एक साक्षात्कार में श्रीलंका के हंबनटोटा में चीन द्वारा निर्मित और संचालित बंदरगाह के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि हंबनटोटा इस द्वीप पर ऐसा दूसरा वाणिज्यिक शहर बन जाएगा, जहां राजमार्ग, रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बंदरगाह, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और सभी परिवहन सुविधाएं होंगी. हम लोग ऐसा बनाकर रहेंगे.

भारत अपने उत्तर और पूर्व में चीन की आक्रामक घुसपैठ का सामना कर रहा है. पश्चिमी भाग में आतंकी घुसपैठ और रक्तपात का सामना कर रहा है और नेपाल से शत्रुतापूर्ण बयानबाजी जारी है. इसे देखते हुए मोदी सरकार के लिए 'नेबरहुड फर्स्ट' को एक नारे से अधिक कुछ करना पड़ेगा.

इंडो-पेसिफिक महासागर में विस्तारवादी चीन को रोकने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत को रक्षा संबंध और ताकत दे सकते हैं, लेकिन भारत की समुद्री सुरक्षा और समुद्र से जुड़ी अर्थव्यवस्था के लिए छोटे और समुद्र तट से जुड़े देश रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं. भारत श्रीलंका में चीन के प्रभाव को दूर करने में सक्षम नहीं होगा. श्रीलंका भारी कर्ज में डूबा हुआ है और आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. वह अपनी अर्थव्यवस्था से जूझ रहा है और उसके पर्यटन उद्योग पर भी पूरी दुनिया में कोरोना महामारी की वजह से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. एक अनुमान के अनुसार श्रीलंका को अगले पांच वर्षों में पांच अरब अमेरिकी डॉलर कर्ज का भुगतान करना होगा. हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक नवंबर 2022 तक 400 मिलियन डॉलर की मुद्रा विनिमय (करंसी स्वैप) की सुविधा देने पर सहमत है.

जैसा कि पहले हुआ है नई दिल्ली चाहेगा कि महिंदा पहली विदेश यात्रा के तहत पहले भारत आएं. कोरोना की स्थिति को देखते हुए या दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच वर्चुअल सम्मेलन हो, लेकिन इन संबंधों को प्रतीकात्मक से आगे ले जाना होगा.

भारत की ओर से पुरातनपंथियों का कहना है कि विशेषकर जब से राजपक्षे सत्ता में आए हैं तब से भारत ने श्रीलंका को दिया अधिक है और पाया बहुत कम है. इसलिए अतीत से सबक लेने और सावधानी बरतने जरूरत है. अतीत की छाया को वर्तमान और भविष्य के संबंधों पर नहीं पड़ने देना चाहिए. राजपक्षे भी पहले चीन के कर्ज में अपने हाथ जला चुके हैं और एक नाकाम अर्थव्यवस्था और नौकरियों के गंवाने के कारण जनता के गुस्से का सामना कर चुके हैं.

सच्चाई यह है कि भारतीय खुफिया एजेंसियों ने सिरिसेना-विक्रमसिंघे सरकार को आतंकी हमलों के लिए पहले ही सचेत कर दिया था, लेकिन श्रीलंका की सरकार अप्रैल 2019 को ईस्टर रविवार को हुए बम हमले को रोक नहीं पाई और जनता ने इसे गंभीरता से लिया गया, उसके बाद जनता ने राष्ट्रपति चुनाव में गोटाभाया को वोट दे दिया.

नेपाल से लेकर बांग्लादेश के साथ संबंधों में आई तल्खी के बीच भारत को कोलंबो के साथ संबंधों को स्थिर करने के लिए रक्षा एवं लॉजिस्टिक्स संबंधित सहयोग क्षेत्र में निवेश के रास्ते तलाशने होंगे और कोलंबो को चीन को बहुत ज्यादा खुश करने और भारत के साथ फिर से संबंधों को असंतुलित करने के फैसले से मिली सीख पर गौर करना होगा.

यह दो पड़ोसियों के व्यापक रणनीतिक हित है, जिन्हें हर हाल में व्यक्तियों के संदेहों को दूर करना चाहिए. जैसा कि पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने गोटाबाया की जीत के बाद ईटीवी भारत से कहा कि पड़ोसी देशों के नेताओं को यह बताने की कोशिश करने से कि कौन दोस्त है और कौन दोस्त नहीं है. इससे हमें कभी लाभ नहीं मिला. इससे बेहतर है कि हम लोग कुछ द्विपक्षीय हितों को आधार बनाकर इन संबंधों को आगे बढ़ाएं तो किसी अन्य चीज से अधिक लाभकारी होंगे.

Last Updated : Aug 8, 2020, 11:49 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details