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Explainer: मॉनसून 2023 ने ली विदाई, जाते-जाते छोड़ गया कई सवाल, जानें इसपर बदलती जलवायु का असर

देश में मानसून विदाई ले रहा, लेकिन अपने पीछे कई सवाल छोड़े जा रहा है. उत्तरी राज्यों में अत्यधिक बारिश के कारण बाढ़ की स्थिति बनी, जबकि पूर्व और उत्तर-पूर्ण भारत में सूखे जैसे हालातों ने मौसमी विसंगतियों को बढ़ावा दिया. वहीं, अल-नीनो (एक जटिल मौसम संबंधी घटना) वर्ष ने बड़े पैमाने पर बारिश की कमी लाने में अपनी भूमिका निभाई. इस तरह के जलवायु परिवर्तन से कैसे स्थिति बिगड़ रही हैं, जानने के लिए पढ़ें ये रिपोर्ट...

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 30, 2023, 5:03 PM IST

Updated : Oct 3, 2023, 12:15 PM IST

देश में मानसून 2023 सितंबर महीने के अंत के साथ ही विदाई ले रहा है. 30 सितंबर को साल दक्षिण-पश्चिम मानसून की आखिरी बारिश हुई, जो कि मौसम विभाग के अनुसार 'सामान्य से कम' है. 29 सितंबर तक देशभर में संचित बारिश की कमी देश की कुल बारिश की अवधि का औसत (एलपीए) का छह प्रतिशत रहा. यानी कि देश में सामान्यत: 856 मिमी के मुकाबले कुल 814.9 मिमी बारिश दर्ज की गई है.

यहां बता दें कि इस साल के मॉनसून सीजन की शुरुआत प्रशांत महासागर में विकसित हुए अल नीनो के साथ हुई थी. वहीं, विशेषज्ञ पहले ही चेतावनी दे चुके थे कि दूसरी छमाही के दौरान अल नीनो के तेज होने पर मॉनसून की बारिश में कमी आ सकती है. बहरहाल, मॉनसून अपने आप में एक मजबूत मौसम है, जो बारिश की मात्रा को बढ़ा सकती है. यही सितंबर में भी देखा गया, जब दो कम दबाव वाले क्षेत्रों के कारण मानसून की बारिश पुनर्जीवित हुई. इससे देश सूखे की समस्या से बच गया. वहीं, मॉनसून की देरी से शुरुआत और धीमी गति के कारण जून में सुस्त बारिश हुई, जिसका औसत दस प्रतिशत से कम दर्ज किया गया.

आधिकारिक आंकडे़

केरल में मॉनसून की शुरुआत के लिए अरब सागर में उठा चक्रवात बिपरजॉय के साथ हुई. हालांकि, जैसे-जैसे इस तूफान ने तेजी पकड़ी, वैसे-वैसे ही देश से सारी नमी छिनती चली गई. जून में आई मॉनसून की प्रगति भी थम गई, जिसकी वजह से बारिश में दो प्वाइंट की कमी आई. मॉनसून बारिश की कमी ने पूरे पूर्वी भारत में उमस भरी गर्मी को भी न्योता दे दिया. वहीं, जुलाई में पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत को छोड़कर पूरे देश में बारिश हुई. बड़े अंतर-मौसमी बदलावों ने 2023 के मानसून सीजन की दूसरी छमाही को भी प्रभावित किया. लंबे समय तक 'मॉनसून ब्रेक' की स्थिति बनी रही, जिसके कारण अगस्त माह में, जो कि मॉनसून का प्रमुख महीना होता है, सदी की सबसे कम संचित बारिश हुई. गुजरात में 90.67 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई, तो वहीं, केरल में 86.61 फीसदी, राजस्थान में 80.15 फीसदी, कर्नाटक में 74.16 फीसदी और तेलंगाना में 64.66 फीसदी बारिश हुई. अगस्त माह में मॉनसून की बारिश की कमी से देश पर सूखे का खतरा मंडराने लगा. हालांकि, बंगाल की खाड़ी में मॉनसून की हलचल ने एक बार फिर सितंबर के दूसरे सप्ताह में बारिश शुरू कर दी. एक सितंबर को जहां -11 फीसदी कम बारिश हुई. वहीं, इस कमी को पूरा करते हुए 29 सितंबर तक -6 फीसदी बारिश हुई.

क्षेत्रवार प्रदर्शन : मॉनसून सीजन में दक्षिण प्रायद्वीप भारत और पूर्व तथा पूर्वोत्तर भारत के हिस्से में बारिश कम हुई, राज्य-वार देखा जाए तो, केरल में -36 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई, जबकि झारखंड में -27 फीसदी और बिहार में -24 फीसदी कम बारिश हुई. देश के 36 मौसम उपविभागों में से 26 में सामान्य बारिश रिकॉर्ड किया गया, जो देश के क्षेत्रफल का 73 प्रतिशत है. इस बीच, सात उपसंभागों में कम बारिश रिकॉर्ड किया गया. केवल तीन उपसंभागों में सात प्रतिशत क्षेत्र में अधिक वर्षा हुई. इस साल मॉनसून में प्रमुख योगदान देश के असामान्य क्षेत्रों जैसे पश्चिम राजस्थान का रहा, जहां 42 प्रतिशत से ज्यादा बारिश रिकॉर्ड किया गया. वहीं, गुजरात में सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र में 48 प्रतिशत तक अधिक बारिश हुई. हिमाचल प्रदेश में 19 प्रतिशत और तेलंगाना में 15 प्रतिशत अधिक बारिश हुई. हालांकि, ध्यान दें कि ये अतिरिक्त बारिश पूरे मौसम में बहुत भारी से अत्यधिक भारी बारिश के कारण संभव हुई.

Month Actual Normal Departure from Normal
June 148.6 mm 165.3 mm -10%
July 315.9 mm 289.5 mm 13%
August 162.7 mm 254.9 mm -36%

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव : वैज्ञानिकों के मुताबिक, मॉनसून सीजन में बारिश की मात्रा में बढ़ोतरी या कमी, सामान्य प्रणाली है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन ने मौसम की घटनाओं में भी बदलाव को दुगना कर दिया है, फिर चाहे वो अत्यधिक बारिश हो या लू के थपेड़े. आपने देखा होगा कि ग्रीष्मकालीन मानसून तेजी से अनियमित और अविश्वसनीय होता जा रहा है. ये वजह से जलवायु परिवर्तन, जो मौसमी पैटर्न में बदलाव के लिए जिम्मेदार है. वहीं, शुष्क, अधिक शुष्क और नमी, अधिक नमी ले आती है. इस तरह के बदलाव से सूखे या बाढ़ की स्थिति भी बन सकते हैं, जिससे जल और खाद्य सुरक्षा चुनौती बन सकती है. उदाहरण स्वरूप, इस साल हिमाचल प्रदेश में आई बाढ़ है, जिसमें भूस्खलन और बाढ़ के कारण कई जानें चली गईं.

भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के जलवायु वैज्ञानिक डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कोल ने बताया, "जमीन और समुद्र के लगातार बढ़ते तापमान की वजह से लंबे समय तक नमी बनाए रखने वाली हवा प्रभावित हो रही है. वहीं, इससे मानसूनी बारिश की तीव्रता भी प्रभावित हुई है. उदाहरण स्वरूप, जनवरी से अब तक अरब सागर गर्म तावे के समान हो चुका है. इससे उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी भारत में अधिक नमी आ गई है." भारत कई सालों से मानसूनी बारिश के कारण आए बाढ़ से जूझता आया है. पिछले पांच दशकों में, देश में भीषण बाढ़ लगभग चार गुना बढ़ गई है. साल 1970 और साल 2004 के बीच, हर साल औसतन तीन भीषण बाढ़ें आईं. अनुमान लगाया जा रहा है कि ग्लोबल वार्मिंग के असर से सदी के अंत तक दक्षिण एशिया में फसल उत्पादन में दस से 50 फीसदी कमी हो सकती है.

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Sub-Division Actual rainfall (June1-September 29) Normal rainfall (June1-September 29) Departure from Normal
East & Northeast India 1108.4 1361.2 -19%
Southern Peninsula 650.0 710.0 -8%
Central India 974.8 974.7 0%
Northwest India 593.0 586.6 1%

अल-नीनो प्रभाव : अल-नीनो एक जलवायु संबंधित घटना है. इस दौरान पूर्वी प्रशांत महासागरों में सतही जल का असामान्य रूप से गर्म हो जाता है. इसका असर दुनिया भर के हवा के पैटर्न पर पड़ता है. वहीं, यह हमेशा भारत में कमजोर मॉनसून बारिश के लिये जिम्मेदार भी रहा है. लेकिन इस साल जून और जुलाई में मॉनसून, अल-नीनो के प्रभाव से आसानी से बच गया. हालांकि, लगभग सभी मौसमी विभागों ने संकेत दिये हैं कि दिसंबर 2023 से फरवरी 2024 की सर्दियों में अन-नीनो उत्तरी गोलार्थ पर बना रहेगा, जिसकी संभावना 95 प्रतिशत से भी अधिक जतायी जा रही है.

स्काईमेट वेदर के मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन अध्यक्ष, जी. पी. शर्मा के अनुसार, शुरुआत में ही, अल-नीनो के कारण मॉनसून पर असर पड़ने की आशंका जतायी जा रही थी. हालांकि, आमतौर पर अन-नीनो का असर मॉनसून पर पूरी तरह से पड़ता है. अल- नीनो की 80 फीसदी घटनाओं में, मॉनसून पर असर पड़ने के कारण सामान्य से कम बारिश या सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है. आंकड़ों के अनुसार, अल-नीनो के कारण भारत में मॉनसून की बारिश सामान्य से 60 फीसदी कम बारिश हुई है.

लंबे समय का 'मॉनसून ब्रेक' : देश ने साल 2002 और 2009 के बाद अगस्त 2023 में सदी की तीसरी सबसे लंबा मॉनसून ब्रेक देखा है. दरअसल, इस महीने में बैक-टू-बैक मानसून ब्रेक की स्थिति के दो दौर सामने आए. 7 अगस्त को मॉनसून का शुरुआती दौर 12 दिनों का रहा. इसके बाद 18 अगस्त को यह समाप्त हुआ. दूसरा दौर 27 अगस्त को शुरू होकर सितंबर की शुरुआत तक चला. मानसून ब्रेक की घटना आमतौर पर जुलाई और अगस्त के महीनों में होती है और लगभग एक से दो सप्ताह तक रहती है. इन स्थितियों के दौरान, मॉनसून ट्रफ, जो उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में बारिश को नियंत्रित करता है, हिमालय के करीब चला जाता है. इसस पहाड़ी राज्यों और आसपास के तलहटी इलाकों में बारिश की मात्रा सीमित हो जाती है.

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मॉनसून में विसंगतियां : इस साल के मॉनसून में एलपीए की छह प्रतिशत की कमी रही है, जो भारतीय मौसम विभाग के अनुसार 'सामान्य' बारिश की श्रेणी में आता है. लेकिन गौर करें पता चलेगा कि कई क्षेत्रों में बारिश कहीं ज्यादा हुई तो कहीं कम. 29 सितंबर 2023 तक 717 में से कुल 221 जिले बारिश की अत्यधिक कमी का सामना कर रहे हैं. वर्तमान मॉनसून में जो विसंगतियां देखी गई हैं, वह यह है कि पश्चिमी क्षेत्र जहां बाकी हिस्सों की तुलना में कम बारिश होती है, उनमें अत्यधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई है. विशेष रूप से पश्चिम राजस्थान और सौराष्ट्र-कच्छ मौसम संबंधी उपखंडों में ऐसी स्थिति बनी. वहीं, दूसरी ओर, केरल, गांगेय पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड जैसे क्षेत्र, जहां आमतौर पर मौसम के दौरान आर्द्र की स्थिति देखी जाती है, कम बारिश के कारण शुष्क रहे.

डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कोल की एक रिपोर्ट यह दावा करती है कि हिंद महासागर में समुद्र की सतह के बढ़ते तापमान का संबंध दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में बारिश की विसंगतियों और स्थानिक वितरण से है, जो जलवायु परिवर्तन का संकेत देता है.

Last Updated : Oct 3, 2023, 12:15 PM IST

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