हैदराबाद:इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच जंग जारी है. इजरायल के रॉकेट हमलों में अब तक 65 फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है, जबकि इस संघर्ष में 7 इजरायली अब तक जान गंवा चुके हैं. इस जंग में एक भारतीय मूल की महिला की भी मौत हुई है. इजरायल और हमास के बीच छिड़ा ये ताजा संघर्ष दुनियाभर के देशों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है.
इतिहास
दशकों पुराना इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष 12 मई को एक बार फिर एक दूसरे पर रॉकेट दागने और एयर स्ट्राइक से साथ शुरू हो गया है. रमजान के दौरान अरब देशों के पुलिस बल और फिर हमास (फिलिस्तीनी सुन्नी इस्लामी कट्टरपंथी) के रॉकेट हमले मध्य पूर्व में दो देशों के बीच बढ़ती दुश्मनी की वजह बताया जाता है.
एक अनसुलझा संघर्ष
नए सिरे से हिंसा की मूल वजह नहीं बदलती है. ये यहूदियों और अरब के लोगों के बीच अनसुलझे संघर्ष का वो खुला घाव है जिसने फिलिस्तीनी और इजरायल की पीढ़ियों को दर्द दिया है. ये ताजा संघर्ष यरुशलम में तनाव के कारण है जो इन दोनों के बीच संघर्ष की मुख्य कड़ी है. पुराने शहर में पवित्र स्थल राष्ट्रीय होने के साथ-साथ धार्मिक प्रतीक भी हैं और उन्हें प्रभावित करने वाले हर कदम ने अक्सर इस हिंसा को बढ़ाया है. ताजा विवाद की जड़ रमजान के दौरान फिलिस्तीनी पुलिस बल साथ ही इजरायली अदालत का वो फैसला भी जिसके तहत फिलिस्तीनियों के परिवारों को हटाने का आदेश जारी किया. जिसके बाद आंदोलन और संघर्ष की ताजा तस्वीर सामने आई.
हिंसा की वजह
पूर्वी यरुशलम की एक पवित्र पहाड़ी परिसर में फिलिस्तीनियों और इजरायली पुलिस के बीच संघर्ष के दिनों के दौरान इज़राइल और हमास के बीच लड़ाई शुरू हो गई थी. यह स्थल मुसलमानों और यहूदियों दोनों के लिए पवित्र है. मुस्लिम इसे हरम अल-शरीफ और यहूदी इसे टेंपल माउंट कहते हैं. हमास ने इजरायल से उस इलाके और मुख्य रूप से अरब जिले के शेख जर्राह से पुलिस बल हटाने की मांग की, जहां फिलिस्तीनी परिवारों को यहूदियों द्वारा बेदखली का सामना करना पड़ता है.
प्राचीन यरुशलम शहर इतना महत्वपूर्ण क्यों है
यरुशलम शहर इजरायल और फिलिस्तीन संघर्ष के केंद्र में है और दोनों पक्षों की धार्मिक महत्ता के साथ राष्ट्रीय महत्व का भी प्रतीक है. इजरायल ने 1980 में पूर्वी यरुशलम के प्रभाव को खत्म किया और पूरे शहर को अपनी राजधानी बना लिया, हालांकि ज्यादातर देशों ने इसे मान्यता नहीं दी. फिलिस्तीनियों ने यरुशलम के पूर्वी हिस्से पर अपनी राजधानी के रूप में दावा किया.
ये जंग सालों पुरानी है
पूरी लड़ाई का केंद्र यरुशलम है. साल 1948 में इजरायल एक देश के रूप में स्थापित हुआ, लेकिन मध्य पूर्व के इस्लामी देशों ने इस कभी भी मान्यता नहीं दी. हालांकि लंबे संघर्ष के बाद ये तय हुआ कि पश्चिमी यरुशलम के कुछ हिस्सों पर इज़रायल का अधिकार होगा और पूर्वी यरुशलम के कुछ हिस्सों पर जॉर्डन का अधिकार होगा. जॉर्डन की आर्मी वहां तैनात रहेगी. इस तरह यरुशलम का विभाजन हुआ लेकिन ये अस्थायी था.
साल 1967 में, जब इजरायल का सीरिया, जॉर्डन और फिलिस्तीनियों से युद्ध लड़ा तो उसने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक पर भी कब्जा कर लिया. वो दो इलाके जॉर्डन के पास थे, जिन्हें इजरायल ने छीन लिया था. इसके बाद से इन क्षेत्रों में इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच हिंसक टकराव जारी हैं. इज़रायल का दावा है पूरा यरुशलम उसकी राजधानी है और फिलिस्तीनी पूर्वी यरुशलम को भविष्य के फिलिस्तीनी राष्ट्री की राजधानी मानते हैं. वहीं अमेरिका उन कुछ देशों में से एक है जो पूरे यरुशलम शहर पर इज़रायल के दावे को स्वीकार करते हैं. कुल मिलाकर ये पूरी लड़ाई पूर्वी यरुशलम को लेकर है.
पूर्वी यरुशलम को लेकर क्यों है लड़ाई ?
इसका जवाब ये है कि ये क्षेत्र इसाई, इस्लाम और यहूदी तीनों के लिए महत्वपूर्ण है. इसाई धर्म इस क्षेत्र से जुड़ा हुआ है क्योंकि वे मानते हैं कि ये वह स्थान है जहां कलवारी की पहाड़ी पर यूशु को सूली पर चढ़ाया गया था. उनका मकबरा पवित्र सेपुलचर चर्च के अंदर स्थित है और ये उनके पुनर्जीवन का भी स्थान है. मुसलमानों के लिए भी यह स्थान महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां डोम ऑफ रॉक और अल-अक्सा मस्जिद स्थित है. यह मस्जिद इस्लाम तीसरी सबसे पवित्र जगह है और मुसलमानों की मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद ने मक्का से यहां तक की यात्रा की और सभी पैगंबरों की आत्माओं के साथ प्रार्थना की. इस मस्जिद से कुछ कदम की दूरी पर डोम ऑफ रॉक है और मुसलमानों का मानना है कि यहीं से पैंगम्बर मोहम्मद साहब स्वर्ग गए थे. वहीं यहूदी यरुशलम को अपना कहते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि ये धरती का केंद्र है और इस स्थान पर दुनियां की नींव रखी गई थी और यहीं पर अब्राहम ने अपने बेटे इश्हाक की बलि देने की तैयारी की थी. यहूदी हिस्से में कोटेल या पश्चिमी दीवार है, ये दीवार पवित्र मंदिर के अवशेष हैं. कुल मिलाकर यरुशलम इसाई, इस्लाम और यहूदी तीनों के लिए धार्मिक मान्यता का प्रतीक है और हर बार संघर्ष या विवाद यहीं से शुरू होते हैं.
मौजूदा विवाद की एक और वजह
ताजा विवाद यह भी है कि पूर्वी यरुशलम में यहूदी फिलिस्तीनियों को घर छोड़ने की धमकी दे रहे हैं और वे उन्हें अल-अक्सा मस्जिद में जाने से भी रोकते हैं क्योंकि उनका कहना है कि ये जगह पश्चिमी दीवार की है. एक दिलचस्प बात ये है कि दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक यरुशलम पर 52 बार हमला हुआ, इसपर 44 बार कब्जा किया गया और हमलावर सेनाओं ने इस शहर को 23 बार घेरा.
कौन हैं यहूदी ?
यहूदी धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है. इस धर्म का इतिहास लगभग 3,000 वर्ष पुराना है और ऐसा माना जाता है कि यहूदी धर्म की उत्पत्ति यरुशलम में ही हुई थी और इस धर्म के संस्थापक पैगंबर अब्राहम थे. अब्राहम को इसाइयों और मुसलमानों द्वारा ईश्वर का दूत भी कहा जाता है और उसके पुत्र का नाम इसहाक और पोते का नाम याकूब था. याकूब का दूसरा नाम इजरायल था और इसीलिए यहूदी धर्म के लोगों ने अपने देश को इजरायल नाम दिया लेकिन इस धर्म के लोगों को अपने अलग देश के लिए संघर्ष करना पड़ा. कहा जाता है कि लगभग 2200 साल पहले पहला यहूदी राज्य अस्तित्व में आया था लेकिन 931 ईसा पूर्व इस राज्य का धीरे-धीरे पतन शुरू हो गया और संयुक्त इज़राइल इज़राइल और युडा दो भागों में बंट गया. 700 ईसा पूर्व, असीरियन साम्राज्य ने यरूशलेम पर हमला किया और यहूदियों के 10 गुटों को इस हमले के बाद तितर-बितर कर दिया गया. 72 ईसा पूर्व में रोमन साम्राज्य के हमले के बाद, सभी यहूदी दुनिया भर में बस गए और इजरायल ने अपना अस्तित्व खो दिया. यह वह समय था जब यहूदियों ने इजरायल को छोड़ दिया था और फिलिस्तीनी अरबों ने यहां शासन किया था.
करीब 100 साल पहले हुआ संघर्ष का आगाज़
माना जाता है कि आज जो स्थिति है उसकी शुरुआत 100 साल पहले शुरू हुई थी. प्रथम विश्व युद्ध में उस्मानिया सल्तनत की हार के बाद, ब्रिटेन ने मध्य पूर्व में फिलिस्तीन के रूप में जाने वाले हिस्से पर कब्जा कर लिया था. अधिकांश अरबों और यहूदियों के बीच हिंसा इस क्षेत्र में ब्रिटेन के कब्जे के बाद शुरू हुई, जिसके मद्देनजर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने हस्तक्षेप किया और 1917 में ब्रिटेन ने बालफोर घोषणा की घोषणा की, जिसके तहत उसने यहूदियों के लिए एक अलग देश बनाने का वादा किया. फिलिस्तीनी अरब इससे नाराज थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने 6 मिलियन यहूदियों का कत्लेआम किया था तो पश्चिमी देशों के अधिकांश यहूदी अपने देश की चाह में फिलिस्तीन आए थे और फिर 1947 में, संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को यहूदियों और अरबों में विभाजित करने के लिए मतदान किया. यरूशलेम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर बनाया गया. हालाँकि, जब इसे फिलिस्तीनियों ने स्वीकार नहीं किया तो ब्रिटिश शासकों ने इस क्षेत्र को मुक्त कर दिया और इस समय यहूदी नेताओं ने इज़राइल नामक देश के निर्माण की घोषणा की. लेकिन इसे कभी भी मध्य पूर्व के इस्लामिक देशों का समर्थन नहीं मिला और इजरायल को भी एक राष्ट्र के रूप में स्थापित होने के बाद युद्ध लड़ना पड़ा.
इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच कब-कब हुआ संघर्ष
-957 ईसा पूर्व: इजरायल राज्य के शुरुआती वर्षों में, राजा सुलैमान ने पहला मंदिर बनवाया.
- 590 ईसा पूर्व: मंदिर बेबीलोनिया के नेबुचादेरेज़र II के हाथों में पहुंचा, जिसने 604 ईसा पूर्व और 597 ईसा पूर्व मंदिर के खजाने को हटा दिया और 587/586 में इसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया.
-538 ईसा पूर्व: फारस के अचमेनिद राजवंश के संस्थापक साइरस द्वितीय और बेबीलोनिया के विजेता ने निर्वासित यहूदियों को यरूशलम लौटने और मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए आदेश जारी किया.