हैदराबाद :पेरिस कम्यून (Paris Commune) फ्रांस के इतिहास की एक महान घटना है. 18 मार्च 1871 का वो दिन जब मजदूर वर्ग सरकार के खिलाफ खड़ा हो गया था. इतिहास में यह पहली बार था, जब किसी सर्वहारा सत्ता की स्थापना हुई थी. 26 मार्च को पेरिस कम्यून का चुनाव हुआ और फिर 28 मार्च को इसकी घोषणा कर दी गई. मजदूर वर्ग के सत्ता में आने से पूंजीपति वर्ग की नींव डगमगाने लगी.
पेरिस कम्यून की सरकार केवल 72 दिन तक चली, लेकिन इस शासन ने इतिहास में एक मॉडल पेश किया कि समाजवादी समाज में भेदभाव, गैरबराबरी और शोषण को किस तरह मिटाया जा सकता है. यह घटना 150 साल बाद भी फ्रांस पर अपना प्रभाव छोड़ती है.
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सेना ने कुचला आंदोलन
इस ऐतिहासिक घटना के अगले तीन महीनों तक पीपुल्स कमेटी ने राजधानी की बागडोर संभाली, जबकि आधिकारिक फ्रांसीसी सरकार पूरी तरह से चरमराई हुई थी, लेकिन फ्रांसीसी सरकार ने सेना के जरिए इस आंदोलन को कुचल डाला.
सर्वहारा सत्ता का विनाश होता देख रुढ़िवादी ताकतों के चेहरे खिलखिला उठे. वहीं, जर्मन विचारक कार्ल मार्क्स ने इस घटना को अपनी श्रमिक क्रांति के एक प्रोटोटाइप के रूप में देखा.
फ्रेंको-प्रशिया युद्ध के मद्देनजर
प्रशिया के सैनिकों द्वारा चार महीने की घेराबंदी के बाद, गंभीर अकाल और जीवन यापन की बढ़ती लागत, कामकाजी वर्ग (जो हौसमैन के शहरी नवीनीकरण के बाद पेरिस के पूर्वी हिस्से में एकजुट थे) उन्हें अलग किया गया और वर्साय में नई सरकार (कम्युनार्ड विद्रोही की नजर में शांतिवादी, शाही, सहयोगी) ने अपनी सेना का इस्तेमाल कर श्रमिकों के बढ़ते असंतोष को बलपूर्वक दबाने का प्रयास किया.