नई दिल्ली: इस पर विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह ने एक सवाल के लिखित जवाब में राज्यसभा को बताया कि ब्रेक्जिट की प्रकिया अभी चल रही है. उन्होंने कहा कि सरकार इस प्रक्रिया पर सतर्क नजर रख रही है.
उन्होंने कहा कि ब्रिटेन के साथ हमारे संबंधों पर ब्रेक्जिट के प्रभाव का कोई भी मूल्यांकन इस प्रक्रिया के संपन्न होने के बाद ही किया जा सकता है. सिंह ने कहा कि ब्रेक्जिट का परिणाम चाहे कुछ भी हो, भारत सरकार अपने द्विपक्षीय संबंधें को सुदृढ़ करने के लिए वचनबद्ध है.
व्यापार जगत के कई दिग्गजों ने कहा कि अगर बिना किसी समझौते के यानी नो-डील ब्रेक्सिट होता है तो ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के लिए इसके काफी भयावह परिणाम होंगे. इससे ईयू और खासतौर पर उसकी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी को भी नुकसान पहुंचेगा, जिसके उत्पादों के लिए ब्रिटेन एक बड़ा बाजार है.
क्या यह चिंता का विषय है?
भारत भी ब्रिटेन और ईयू के बीच होने जा रहे इस अलगाव को करीबी से देख रहा है. कई भारतीय कंपनियां जिन्होंने पिछले कुछ सालों में भारत में भारी निवेश किया है, वे चिंतित हैं. भारतीय कंपनियां ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के एक प्रवेश द्वार के रूप में देखती रही हैं. अब तक एक आम बाजार ने ईयू देशों में इन कंपनियों की बाधा मुक्त पहुंच सुनिश्चित की है.
कंपनियों पर पड़ेगा सीधा असर
ब्रिटेन में 800 से ज्यादा भारतीय कंपनियां हैं, जो 1,10,000 लोगों को रोजगार देती हैं. इनमें से आधे से अधिक लोग केवल टाटा समूह की ही पांच कंपनियों में काम करते हैं. टाटा समूह ब्रिटेन में सबसे बड़े विदेशी निवेशकों में से एक है. नो डील ब्रेक्सिट की स्थिति में इन कंपनियों पर सीधा असर पड़ेगा और हजारों लोगों की नौकरी चली जाएगी.
भारतीय कंपनियों पर क्या होगा असर
पिछले कुछ सालों में ब्रिटेन में कई भारतीय कंपनियां फली-फूली हैं, जैसे कि रोल्टा, भारती एयरटेल और एजिस आउटसोर्सिग.
इनके अलावा ब्रिटेन के फार्मा सेक्टर में भी भारतीय व्यापार फला-फूला है. उनके लिए भी जाहिर तौर पर ब्रेक्सिट एक बुरी खबर है. पाउंड स्टर्लिग कमजोर होने पर उनके राजस्व पर भी बुरा असर पड़ेगा.
भारतीय चिंतित
कई भारतीय ब्रेक्सिट के सामाजिक-राजनीतिक परिणामों को लेकर भी चिंतित हैं. भारतीय और एक बड़ी संख्या में दक्षिण एशियाई लोगों ने ब्रेक्सिट के समर्थन में वोट दिया था क्योंकि ईयू से अलग होने के पक्षधरों ने उन्हें पूर्व कॉमनवेल्थ देशों से प्रतिभा के आसान स्थानांतरण का आश्वासन दिया था.
उदाहरण के तौर पर भारतीय रेस्टोरेंट मालिकों को वादा किया गया है कि ब्रिटेन के ईयू से अलग होने के बाद वे ज्यादा शेफ को ला पाएंगे.
लेकिन, तथ्यामक रूप से ब्रेक्सिट के प्रबल समर्थक दक्षिणपंथी समूह हैं, जो अप्रवासन से सख्त नफरत करते हैं. अगर ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचता है और ज्यादा लोगों की नौकरियां चली जाती हैं, जैसा कि अंदेशा है, तो ऐसी स्थिति में ऐसे समूहों का गुस्सा गैर यूरोपीय लोगों पर निकल सकता है.