दिल्ली

delhi

ETV Bharat / international

29 मार्च को यूरोपियन यूनियन से अलग होगा ब्रिटेन, भारत सतर्क

घड़ी की सुईयां आगे बढ़ रही हैं, ब्रिटेन दो महीने से भी कम समय में, 29 मार्च को यूरोपीय संसद से अलग होने जा रहा है. लेकिन ब्रिटेन की संसद में इस सप्ताह हुए नए मतदान के बाद अगर दोनों पक्षों के बीच कोई नया समझौता नहीं हो पाता तो उसे बिना किसी समझौते के ही ईयू से अलग होना पड़ेगा.

By

Published : Feb 9, 2019, 8:03 AM IST

Updated : Feb 9, 2019, 11:23 AM IST

नई दिल्ली: इस पर विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह ने एक सवाल के लिखित जवाब में राज्यसभा को बताया कि ब्रेक्जिट की प्रकिया अभी चल रही है. उन्होंने कहा कि सरकार इस प्रक्रिया पर सतर्क नजर रख रही है.
उन्होंने कहा कि ब्रिटेन के साथ हमारे संबंधों पर ब्रेक्जिट के प्रभाव का कोई भी मूल्यांकन इस प्रक्रिया के संपन्न होने के बाद ही किया जा सकता है. सिंह ने कहा कि ब्रेक्जिट का परिणाम चाहे कुछ भी हो, भारत सरकार अपने द्विपक्षीय संबंधें को सुदृढ़ करने के लिए वचनबद्ध है.

व्यापार जगत के कई दिग्गजों ने कहा कि अगर बिना किसी समझौते के यानी नो-डील ब्रेक्सिट होता है तो ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के लिए इसके काफी भयावह परिणाम होंगे. इससे ईयू और खासतौर पर उसकी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी को भी नुकसान पहुंचेगा, जिसके उत्पादों के लिए ब्रिटेन एक बड़ा बाजार है.

क्या यह चिंता का विषय है?
भारत भी ब्रिटेन और ईयू के बीच होने जा रहे इस अलगाव को करीबी से देख रहा है. कई भारतीय कंपनियां जिन्होंने पिछले कुछ सालों में भारत में भारी निवेश किया है, वे चिंतित हैं. भारतीय कंपनियां ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के एक प्रवेश द्वार के रूप में देखती रही हैं. अब तक एक आम बाजार ने ईयू देशों में इन कंपनियों की बाधा मुक्त पहुंच सुनिश्चित की है.

कंपनियों पर पड़ेगा सीधा असर
ब्रिटेन में 800 से ज्यादा भारतीय कंपनियां हैं, जो 1,10,000 लोगों को रोजगार देती हैं. इनमें से आधे से अधिक लोग केवल टाटा समूह की ही पांच कंपनियों में काम करते हैं. टाटा समूह ब्रिटेन में सबसे बड़े विदेशी निवेशकों में से एक है. नो डील ब्रेक्सिट की स्थिति में इन कंपनियों पर सीधा असर पड़ेगा और हजारों लोगों की नौकरी चली जाएगी.

भारतीय कंपनियों पर क्या होगा असर
पिछले कुछ सालों में ब्रिटेन में कई भारतीय कंपनियां फली-फूली हैं, जैसे कि रोल्टा, भारती एयरटेल और एजिस आउटसोर्सिग.
इनके अलावा ब्रिटेन के फार्मा सेक्टर में भी भारतीय व्यापार फला-फूला है. उनके लिए भी जाहिर तौर पर ब्रेक्सिट एक बुरी खबर है. पाउंड स्टर्लिग कमजोर होने पर उनके राजस्व पर भी बुरा असर पड़ेगा.

भारतीय चिंतित

कई भारतीय ब्रेक्सिट के सामाजिक-राजनीतिक परिणामों को लेकर भी चिंतित हैं. भारतीय और एक बड़ी संख्या में दक्षिण एशियाई लोगों ने ब्रेक्सिट के समर्थन में वोट दिया था क्योंकि ईयू से अलग होने के पक्षधरों ने उन्हें पूर्व कॉमनवेल्थ देशों से प्रतिभा के आसान स्थानांतरण का आश्वासन दिया था.


उदाहरण के तौर पर भारतीय रेस्टोरेंट मालिकों को वादा किया गया है कि ब्रिटेन के ईयू से अलग होने के बाद वे ज्यादा शेफ को ला पाएंगे.

लेकिन, तथ्यामक रूप से ब्रेक्सिट के प्रबल समर्थक दक्षिणपंथी समूह हैं, जो अप्रवासन से सख्त नफरत करते हैं. अगर ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचता है और ज्यादा लोगों की नौकरियां चली जाती हैं, जैसा कि अंदेशा है, तो ऐसी स्थिति में ऐसे समूहों का गुस्सा गैर यूरोपीय लोगों पर निकल सकता है.

हालांकि, ऐसा नहीं है कि सभी भारतीय चिंतित हैं. कई भारतीय ब्रेक्सिट को भारत के लिए ब्रिटेन के साथ एक लाभदायक व्यापार समझौता करने का मौका मानते हैं. ब्रिटेन के राजनेता ऐसी डील के लिए भारत को प्राथमिकता देते हैं.

भारत इसे यूरोपीय संघ के साथ एक व्यापार समझौता करने के अवसर के तौर पर देखेगा. भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) वार्ता 2013 में उस समय रुक गई थी जब छह सालों तक वार्ता करने के बाद भी दोनों पक्ष किसी समझौते पर पहुंचने में नाकाम रहे थे.


उसके बाद से दोनों पक्षों के बीच शिखर सम्मेलन स्तर की वार्ताएं हुई हैं, लेकिन कोई वास्तविक विकास नहीं हुआ. ब्रेक्सिट से ईयू को एफटीए वार्ता फिर से शुरू करने का मौका मिलेगा.

लेकिन एफटीए वार्ता के बिना भी ईयू और भारत के बीच व्यापार बढ़ रहा है और पिछले एक दशक में दोगुना हुआ है. ईयू 2017 में 85 अरब यूरो यानी 8,500 करोड़ रुपये के व्यापार के साथ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है.

हालांकि, ईयू के परिप्रेक्ष्य से भारत उसका नौंवा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और इस मामले में चीन से काफी पीछे है. इसलिए भारत के पास ब्रेक्सिट के बाद इस अंतर को पाटने की बड़ी क्षमता है.
यूरोपीय नेता, खासतौर पर जर्मनी और फ्रांस हालिया महीनों में भारत सरकार को आकर्षित करने का प्रयास करते रहे हैं.

भारत के ज्यादा हित में होगा, अगर ब्रिटेन ईयू से व्यवस्थित तरीके से अलग होता है, और यह अलगाव व्यापार समझौते की संभावनाएं तलाशने के करार के साथ होता है. इससे भारतीय कंपनियों को एक आम बाजार के लाभ मिलना जारी रहेगा.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक तौर पर ब्रिटेन के ईयू के साथ रहने के पक्ष में बात की है. हालांकि, दोबारा जनमत संग्रह की बढ़ती मांग के बावजूद इसकी संभावना कम ही है.


इसकी वजह सत्तारूढ़ पार्टी में शक्तिशाली ब्रेक्टियर्स का होना है. ईयू के नेता पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वे अब ब्रेक्सिट समझौते पर दोबारा बातचीत नहीं करेंगे. इसलिए भारत को नो-डील ब्रेक्सिट के लिए तैयार रहना चाहिए.

ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन में रहने वाले भारतीयों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में सरकार ने पिछले दिनों कहा था कि इस संबंध में कोई भी मूल्यांकन प्रक्रिया के संपन्न होने के बाद ही किया जा सकता है.

Last Updated : Feb 9, 2019, 11:23 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details