काबुल : अफगानिस्तान की राजधानी पर कब्जा करने वाले हजारों तालिबान लड़ाकों में से एक 22 साल के एजानुल्ला ने ऐसा नजारा पहले कभी नहीं देखा था. काबुल की पक्की सड़कों पर ऊंचे-ऊंचे अपार्टमेंट, इमारतों में शीशे के कार्यालय और शॉपिंग मॉल उसे अचम्भे में डाल रहे थे.
गृह मंत्रालय के भीतर उम्दा फर्नीचर के बारे में उसने कहा कि वह ऐसा था जैसा उसने सपने में भी नहीं सोचा था. एजानुल्ला ने कहा कि वह अपने कमांडर से पूछेगा कि क्या उसे यहां रहने की अनुमति मिलेगी. उसने कहा, 'मैं वापस नहीं जाना चाहता.'
आज का काबुल और अन्य शहर वैसे नहीं हैं जैसे 20 साल पहले के तालिबान शासन में थे, जिसके लड़ाके मुख्यतः ग्रामीण इलाकों से आते हैं. अफगानिस्तान की एक पूरी पीढ़ी आधुनिकता और पश्चिमी विकास के रंग में रंगी हुई है. बहुत से लोगों को डर है कि इतने सालों में जो हासिल किया है वह तालिबान के वापस आने के बाद कहीं फिर से न खो जाए. जब दो महिलाओं ने एजानुल्ला को सड़क पर हैलो कहा तो उसे विश्वास नहीं हुआ.
उसने कहा, 'उन्होंने कहा कि वे हमसे डरती थीं और सोचती थीं कि हम डरावने हैं. लेकिन मैंने उनसे कहा कि तुम मेरी बहनों की तरह हो और हम तुम्हें स्कूल जाने देंगे शिक्षा लेने देंगे और सुरक्षा देंगे. बस तुम अपने हिजाब का ध्यान रखो.'
तालिबान सचमुच बदल गया है या नहीं यह नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह वो देश नहीं है, जिस पर संगठन ने गृह युद्ध के चार साल बाद 1996 में कब्जा किया था. सोवियत संघ की वापसी और 1992 में कम्युनिस्ट समर्थक सरकार के जाने के बाद अफगानिस्तान को गृह युद्ध झेलना पड़ा था, जिसके बाद तालिबान का शासन रहा था.
उस जमाने में शहर खंडहर की शक्ल में हुआ करते थे जिस पर स्थानीय लड़ाके प्रशासन चलाते थे. ज्यादातर अफगान टूटी फूटी सड़कों, साईकिल या पीली टैक्सी में चला करते थे. पूरे देश में उस समय केवल एक कम्प्यूटर था, जो तालिबान के नेता मुल्ला मोहम्मद उमर के पास हुआ करता था.