बर्लिन : जर्मनी ने एशिया में अपने सबसे करीबी साझेदार चीन को एक बड़ा राजनयिक झटका दिया है. जर्मनी ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लोकतांत्रिक देशों के साथ भागीदारी मजबूत करने का फैसला बहुत सोच-समझकर किया है. दरअसल, इस क्षेत्र से बर्लिन के भी व्यापारिक, आर्थिक और सामरिक हित जुड़े हैं. जाहिर है, इससे चीन खुद को घिरता हुआ महसूस करेगा और जर्मनी से नाराज होगा लेकिन बदलते वैश्विक परिदृश्य में चीन की परवाह किसे है.
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप के बाद चीन के मानवाधिकार रिकॉर्ड और एशियाई देश पर आर्थिक निर्भरता पर चिंता व्यक्त करने के बाद भारत-प्रशांत के प्रति बर्लिन का कूटनीतिक बहाव बढ़ गया है.
भारत और चीन वर्तमान में पूर्वी लद्दाख में एलएसी में चार महीने के लंबे गतिरोध में लगे हुए हैं. कई स्तरों के संवाद के बावजूद, कोई सफलता नहीं मिली है, अब भी गतिरोध जारी है.
दो सितंबर को जर्मनी के विदेश मंत्री हेइको मॉस ने कहा था हम भावी वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में मददगार बनना चाहते हैं, जिसकी लाठी उसकी भैंस की बजाय यह विश्व-व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय सहयोग और नियमों के अनुरूप होनी चाहिए. इसी के चलते हमने उन देशों के साथ सहयोग बढ़ाया है, जो हमारे साथ लोकतांत्रिक और उदार मूल्यों को साझा करते हैं.
चीन के साथ जर्मनी के व्यापारिक और निवेश संबंध काफी मजबूत रहे हैं. एशिया में चीन ही जर्मनी की कूटनीति का केंद्र बिंदु रहा है. हालांकि, उम्मीद के अनुरूप आर्थिक विकास भी चीनी बाजार को नहीं खोल सका. चीन में कार्यरत जर्मन कंपनियों को चीनी सरकार टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए बाध्य करती है. जर्मन कंपनियां चीन में अपने कारोबार और बौद्धिक संपदा की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. ऐसे कई मुद्दों को लेकर यूरोपीय यूनियन और चीन के बीच सुलह का कोई रास्ता नहीं निकल पाया. इससे बीजिंग पर बढ़ती आर्थिक निर्भरता ने बर्लिन की चिंता बढ़ा दी थी.
उस दिन से जर्मनी ने भारत-प्रशांत दृष्टिकोण से संबंधित नए दिशानिर्देशों को अपनाया. इस क्षेत्र में कानून के शासन और खुले बाजारों को बढ़ावा देने के महत्व पर बल दिया. भारत-प्रशांत रणनीति का भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और आसियान सदस्यों सहित अन्य देशों ने समर्थन किया है.
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रिपोर्ट के मुताबिक चीन एशिया में जर्मनी का कूटनीतिक केंद्र बिंदु था, जिसमें जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल लगभग वार्षिक रूप से देश का दौरा करती थीं. यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि चीन भारत-प्रशांत क्षेत्र के साथ जर्मनी के 50 प्रतिशत व्यापार के लिए भी जिम्मेदार है.