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पाकिस्तान तालिबान के एकजुट होने से चीन के बीआरआई को खतरा - पाकिस्तान तालिबान

पाकिस्तान में आतंकी संगठन तालिबान चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से जुड़ी परियोजनाओं के लिए खतरा बन सकता है. विभिन्न आतंकी समूहों के फिर से एकजुट होने से यह आशंका जताई गई है.

Pakistan Taliban reunification
पाकिस्तान तालिबान के पुनर्मिलन

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Published : Sep 10, 2020, 12:29 PM IST

पेशावर :विश्लेषकों के अनुसार, पाकिस्तान में तालिबान के विभिन्न समूहों के फिर से एक साथ आने से चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से जुड़ी परियोजनाओं के लिए खतरा पैदा हो सकता है.

इस्लामाबाद के एक सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि हाल के घटनाक्रम ने चीनी नागरिकों और परियोजनाओं की सुरक्षा के बारे में चिंताओं को जन्म दिया है. अधिकारी बताया कि खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के विभिन्न दूरदराज के क्षेत्रों में, कई चीनी विकास परियोजनाएं (मुख्य रूप से जल विद्युत उत्पादन और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में) चल रही हैं.

अधिकारी ने कहा, 'पाकिस्तान तालिबान के फिर से एकजुट होकर उभरने पर चीनी नागरिकों और परियोजनाओं की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ा दी है.'

पाकिस्तान तालिबान या तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के तीन प्रमुख गुटों में जमात-उल-अहरार, हिज्ब उल-अहरार और हकीमुल्लाह महसूद समूह थे. समूह का नेता बनाने के मुद्दे वह 2014 में अलग हो गए थे. हालांकि, यह घोषणा की गई है कि पिछले महीने यह समूह फिर से एक साथ आ गए हैं और बलूचिस्तान में सक्रिय प्रतिबंधित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-झांगवी के एक गुट में शामिल हो गए हैं.

साल 2007 में अपने गठन के बाद से टीटीपी (अल-कायदा का एक मजबूत सहयोगी) आतंकवादी समूहों को चलाने वाला संगठन बन गया, जो कई आतंकी हमलों में शामिल रहा है.

टीटीपी की शुरुआत खैबर पख्तूनख्वा प्रांत और अफगानिस्तान सीमा से सटे अर्ध-स्वायत्त आदिवासी क्षेत्रों से हुई. हालांकि, बाद में समूह ने पाकिस्तान के अन्य हिस्सों में अपनी गतिविधियां शुरू कर दी.

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इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर पीस स्टडीज (पीआईपीएस) के निदेशक मुहम्मद अमीर राना ने बताया कि टीटीपी के एकजुट होने से पंजाब, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के कुछ जिलों में खतरा पैदा हो सकता है क्योंकि इन इलाकों में आतंकी गुट के नेटवर्क हैं.

पीआईपीएस की एक रिपोर्ट के अनुसार, टीटीपी और उसके समूहों ने 2019 में 97 आतंकी हमले किए, मुख्य रूप से खैबर पख्तूनख्वा, पंजाब और बलूचिस्तान में. इन हमलों में 209 लोगों की जान गई थी.

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