वॉशिंगटन : अमेरिकी संसद भवन 'कैपिटोल बिल्डिंग' के 220 साल के इतिहास में बुधवार जैसी घटना पहले कभी नहीं हुई, जब निर्वतमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हजारों समर्थक भवन में घुस आए और संवैधानिक दायित्वों के निर्वाह में बाधा पहुंचाने की हरसंभव कोशिश की. अमेरिका के लोकतांत्रिक इतिहास में इसे काला दिन बताया जा रहा है.
बहरहाल, यह पहला मौका नहीं है, जब कैपिटोल भवन हिंसा का साक्षी बना. 1814 में भी यह इसी तरह की हिंसा का साक्षी बना था. तब इस इमारत में काम-काज की शुरुआत के सिर्फ 14 साल ही साल हुए थे. युद्ध में ब्रितानी बलों ने इमारत को जला कर बर्बाद करने की कोशिश की थी.
ब्रितानी आक्रमणकारियों ने पहले इमारत को लूटा और फिर इसके दक्षिणी और उत्तरी हिस्से में आग लगा दी. इस आग में संसद का पुस्तकालय जल गया. लेकिन कुदरत की मेहरबानी से अचानक यहां आंधी-पानी शुरू हो गया और यह इमारत तबाह होने से बच गई.
तब से अब तक काफी कुछ हो चुका है और कई घटनाओं ने हाउस चैम्बर के मंच पर लिखे 'संघ, न्याय, सहिष्णुता, आजादी, अमन' जैसे बेहतरीन शब्दों के मायने का मजाक बना दिया है.
इस इमारत पर कई बार बम से भी हमला हुआ. कई बार गोलीबारी हुई. एक बार तो एक सांसद ने दूसरे सांसद की लगभग हत्या ही कर दी थी. 1950 में पोर्टो रिको के चार राष्ट्रवादियों ने द्वीप का झंडा लहराया था और 'पोर्टो रिको की आजादी' के नारे लगाते हुए सदन की दर्शक दीर्घा से ताबड़-तोड़ 30 गोलियां चलाई थीं. इसमें पांच सांसद जख्मी हुए थे. उनमें से एक गंभीर रूप से घायल हुआ था.
पोर्टो रिको के इन राष्ट्रवादियों को जब गिरफ्तार किया गया तो उनकी नेता लोलिता लेबरॉन ने चिल्लाकर कहा, 'मैं यहां किसी की हत्या करने नहीं आई हूं, मैं यहां पोर्टो रिको के लिए मरने आई हूं.'
वहीं, इस घटना से पहले 1915 में जर्मनी के एक व्यक्ति ने सीनेट के स्वागत कक्ष में डायनामाइट की तीन छड़ियां लगा दी थीं. मध्यरात्रि से पहले उनमें विस्फोट भी हुआ. तब कोई आसपास नहीं था.