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नोएडाः पति ने छोड़ा साथ तो बेटे को सीने में बांध ई रिक्शा चलाने लगीं चंचल...

गाजियाबाद की रहनेवाली चंचल शर्मा के पति उसके साथ नहीं रहते. वह अपने बेटे से भी अलग नहीं रह सकती थी. इसलिए उसने नौकरी न करने का फैसला किया और ई-रिक्शा चलाने (Chanchal started driving e rickshaw with son) लगी. आज वह उन महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं, जो किसी न किसी वजह से अकेली रहती हैं और जीविका चलाने को लेकर संघर्ष करती हैं.

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Published : Sep 24, 2022, 5:25 PM IST

नई दिल्ली/नोएडाःनोएडा में चंचल शर्मा (27) नाम की महिला ई-रिक्शा चलाकर महिलाओं के अंदर हौसला भर रही है. ईटीवी भारत की टीम ने जब उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि अगर नौकरी करते तो अपने एक साल के मासूम बच्चे को कहीं न कहीं छोड़ना पड़ता, क्योंकि उसे साथ लेकर नौकरी करना संभव नहीं था.

बेटे को साथ रख सके, इसके लिए चंचल ने गाजियाबाद के इंदिरापुरम से नोएडा के सेक्टर 59 स्थित लेबर चौक तक करीब छह किलोमीटर ई-रिक्शा चलाकर अपना जीवन-यापन कर (Chanchal started driving e rickshaw with son) रही है. बच्चे को सीने में बांधकर सवारी बैठाना और उतारना उनका अब एक रोजमर्रा का काम हो गया है. सुबह 6:30 बजे से चंचल दोपहर तक ई-रिक्शा चलाने का काम करती है. फिर बच्चे को नहलाने और खिलाने का काम करती हैं.

गाजियाबाद की चंचल बेटे के साथ चला रही ई रिक्शा

मासूम को गोद में लेकर ई-रिक्शा चलाती हैं चंचलः मूल रूप से गाजियाबाद की रहने वाली चंचल शर्मा का पति साथ में नहीं रहता है. वह अपने एक साल का बेटा अंकुश और बूढ़ी मां के साथ ही रहती है. इनके जीविकोपार्जन का एकमात्र साधन ई-रिक्शा चलाना है. चंचल बच्चे को सुबह 6:30 बजे अपने सीने से बांधकर गाजियाबाद से चलती है और सेक्टर 62 स्थित मेट्रो इलेक्ट्रॉनिक सिटी पहुंचती है. वहां वह किराए पर ई-रिक्शा लेकर सुबह से लेकर दोपहर तक उसे चलाती हैं और इस बीच बच्चे को भूख लगने पर उसे दूध और खाना देने के साथ ही नहलाने धुलाने का भी काम करती हैं. कुछ देर समय बिताने के बाद चंचल फिर ई रिक्शा लेकर चलती हैं और शाम तक सवारी ढोती हैं.

गाजियाबाद की चंचल बेटे के साथ चला रही ई रिक्शा

आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के चलते चंचल ने कई बार ई-रिक्शा किस्त पर खरीदने का प्रयास किया, लेकिन वह खरीद नहीं पाई. वह ई-रिक्शा चलाने के लिए वह इसका किराया 300 रुपये चुकाती हैं. पूरे दिन में चंचल 600 से 700 रुपए ई-रिक्शा चला कर कमा लेती हैं. वहीं जहां हर तरफ सवारी ढोने का काम पुरुष करते हैं. महिला होकर चंचल ने इस धारणा को तोड़कर अपने संघर्ष की कहानी लिख रही हैं.

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चंचल ने बताया कि इमानदारी और मेहनत से किया गया कोई भी काम छोटा नहीं होता है. बच्चे को अपने तीन बहनों के पास छोड़ना काफी मुश्किल है, जिसके चलते मैंने कहीं पर नौकरी भी नहीं की. क्योंकि हर जगह बच्चे को साथ ले जाना संभव नहीं था. पिछले करीब दो साल से ई-रिक्शा चलाने का काम कर रही हूं.

उन्होंने बताया कि मेरे संघर्ष में मेरे पति या मेरे ससुराल पक्ष का कोई सहयोग नहीं है. मेरे पति मेरे साथ नहीं रहते हैं, जिसके चलते हमारी आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि आम महिलाओं को कभी किसी के भरोसे नहीं रहना चाहिए. खुद संघर्ष करना जरूरी है और आत्मनिर्भर के साथ आगे बढ़ना चाहिए.

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