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जानिए, आखिर रमजान में ही क्यों दिया जाता है जकात और फितरा?

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Published : Apr 20, 2021, 8:28 AM IST

मौलाना शगीर ने बताते हैं कि रमजान का महीना हमदर्दी और खैरखाही (मदद) करने का महीना है. इस महीने में 1 रुपया देने पर 70 के बराबर सवाब मिलता है.

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मौलाना मोहम्मद शगीर कासमी

नई दिल्ली/गाजियाबाद:14 अप्रैल से शुरू हुआ मुस्लिम समुदाय का रमजान उल मुबारक का पाक महीना लगभग 13 मई तक रहेगा. इस 1 महीने के बीच मुस्लिम समुदाय के लोग गरीब, मजदूर, यतीम लोगों की खूब मदद करते हैं. जिसको जकात, फितरा कहा जाता है. आखिर रमजान के महीने में जकात, फितरा क्यों दिया जाता है. इसी को जानने के लिए ईटीवी भारत में मौलाना शगीर से की बातचीत.

आखिर रमजान में ही क्यों दिया जाता है जकात और फितरा?
मौलाना शगीर ने बताते हैं कि यह महीना हमदर्दी और खैरखाही (मदद) करने का महीना है. इस महीने में जब रोजेदार सुबह से शाम तक भूखा रहकर रोजा रखते हुए खुदा का फरमान पूरा करता है. वहीं दूसरी ओर भूखे प्यासे रहने वाले गरीब, मजदूर, लाचार, लोगों के दर्द को महसूस करता है. इसलिए रमजान के महीने में जकात, फितरा देने का एहसास होता है.भूखे प्यासे रहकर होता है गरीबों के दर्द का अहसास

जिन गरीब लोगों के पास खाने-पीने के इंतजाम नहीं होते और जिन रोजेदारों के पास रोजा इफ्तार का सामान नहीं होता उनकी मदद की जाती है. तो वहीं दूसरी ओर इस रमजान के महीने में 1 रुपया देने पर 70 के बराबर सवाब मिलता है. रमजान के महीने में मुसलमान जकात निकालकर गरीबों की मदद भी करते हैं और खुदा का फरमान भी पूरा करते हैं.

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लॉकडाउन में भी करें गरीबों की मदद

मौलाना ने बताया कि जकात और फितरा इस प्रकार दिया जाता है कि जिस पर साढ़े 52 तोला चांदी या इसके बराबर अन्य माल है. तो उस पर जकात, फितरा फर्ज हो जाता है. इसलिए उसको अपनी दौलत के हिसाब से ₹100 पर ढाई रुपए गरीबों के लिए निकालना चाहिए. इसके साथ ही मौलाना का कहना है कि जकात, फितरा देने के साथ ही लॉकडाउन में गरीब, मजदूरों की भी बढ़-चढ़कर मदद करनी चाहिए.

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