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1988 के आंदोलनकारी किसान बोले, राकेश टिकैत में आई बाबा टिकैत की आत्मा

दिल्ली गाजीपुर बॉर्डर पर कई बुजुर्ग किसान ऐसे हैं, जो 1988 में दिल्ली के बोट क्लब पर हुए किसानों के आंदोलन में बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के साथ मौजूद थे. ऐसे में ईटीवी भारत ने ऐसे किसानों के साथ बातचीत की.

farmers present in the Boat Club Movement of 1988
1988 के बोट क्लब आंदोलन में मौजूद थे ये किसान, गाजीपुर बॉर्डर पर डटे

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Published : Feb 9, 2021, 5:15 PM IST

नई दिल्ली: इतिहास पर नजर डालें तो इससे पहले भी मौजूदा किसान आंदोलन की तरह दो आंदोलन हो चुके हैं. पहला, पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन, जो 1907 में शहीद स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह के नेतृत्व में ब्रिटिश हुकूमत के कृषि कानूनों के खिलाफ किया गया था. इसके लगभग आठ दशक बाद, बोट क्लब आंदोलन हुआ. किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में बोट क्लब पर रैली का अयोजन किया था. तत्कालीन राजीव गांधी शासन ने किसानों के सामने अपने घुटने टेक दिए थे.

1988 बोट क्लब आंदोलन में मौजूद थे ये किसान

दिल्ली गाजीपुर बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में चल रहे किसान आंदोलन में भारी संख्या में बुजुर्ग किसान मौजूद हैं. कई बुजुर्ग किसान ऐसे हैं, जो 1988 में दिल्ली के बोट क्लब पर हुए किसानों के आंदोलन में बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के साथ मौजूद थे. ईटीवी भारत ने बाबा टिकैत के साथ 1988 के आंदोलन में मौजूद किसानों से बातचीत की.


1988 में गांवों से बनकर आता था खाना

बुज़ुर्ग किसान जोगिंदर ओरधान ने कहा, गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे मौजूदा किसान आंदोलन में दर्जनों लंगर चल रहे हैं, लेकिन 1988 में दिल्ली में बोट क्लब पर हुए आंदोलन के दौरान लंगर नहीं थे. आंदोलनकारी किसानों के लिए गांवों से खाना बनकर आता था. उस समय के लोग होशियार नहीं थे. बाबा टिकैत कहा करते थे "ये बावलों का सांग है". बाबा टिकैत के नेतृत्व में जितने भी आंदोलन हुए, उसमें काफी अनुशासन देखने को मिलता था. 1988 में किसानों के पास ट्रैक्टर नहीं थे. चंद किसानों के पास ही ट्रैक्टर थे. फिर भी बाबा की एक आवाज़ पर किसान दिल्ली पहुंच जाता था.

बाबा टिकैत के आगे झुकती थी सरकारें

किसान रणवीर सिंह ने कहा बाबा महेंद्र सिंह टिकैत का चरित्र बहुत ही प्रभावशाली था. करनी-कथनी में कोई अंतर नहीं होता था. यही कारण था बाबा टिकैत के आगे सरकारें झुकती थीं. देश के बड़े अधिकारियों और बड़े नेताओं के सामने बिना किसी हिचक के बाबा टिकैत अपनी बात रख देते थे. बाबा टिकैत स्वयं वार्ता के लिए कभी नहीं गए, उनके सामने सरकारें खुद चलकर वार्ता के लिए आती थीं. बाबा टिकैत के पुत्र राकेश टिकैत ने भी आज सिद्ध कर दिया है कि वे भी किसी मामले में बाबा से कम नहीं हैं. किसानों की हक की आवाज उठाने का काम जो बाबा टिकैत ने किया था, आज राकेश टिकैत उस को आगे बढ़ा रहे हैं. हमें उम्मीद है जल्द सरकार झुकेगी और काले कानून को वापस लेगी.

सरकारें किसानों को बदनाम करती हैं

किसान बलवीर सिंह बताते हैं 1988 के आंदोलन में उनकी उम्र 18 साल थी. उन्होंने कहा कि पहले युवा कार्यकर्ता के रूप में आंदोलन में काम करते थे और आंदोलन को मजबूत बनाते थे, लेकिन आजकल के युवा कार्यकर्ता नहीं बल्कि नेता बनते हैं. पहले की सरकारें किसानों का सम्मान करती थीं, लेकिन आजकल की सरकारें किसानों को बदनाम करने का काम कर रही हैं.

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बाबा टिकैत की लोकप्रियता विश्व भर में थी

किसान राजवीर सिंह ने कहा बाबा टिकैत ने हमेशा किसानों के हक की आवाज उठाई है और कभी भी बाबा पीछे नहीं हटे. 28 जनवरी की रात ग़ाज़ीपुर बार्डर पर देखने को मिला महात्मा टिकैत साक्षात राकेश टिकैत में आ गए थे. उस दिन राकेश टिकैत महात्मा टिकैत बन गए थे. 1988 के दौर में इंटरनेट आदि संसाधन नहीं थे, लेकिन फिर भी बाबा टिकैत की लोकप्रियता विश्व भर में थी.

14 बार गए हैं जेल

बागपत जिले के रहने वाले धर्मपाल बाबा टिकैत के साथ 14 मर्तबा जेल जा चुके हैं. जब-जब बाबा जेल गए हमने जेल में बाबा टिकैत की सेवा की. बाबा टिकैत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हमने किसानों के हक की लड़ाई लड़ी है.


सरकारें हठधर्मिता पर हैं उतारू

किसान रामपाल सिंह बताते हैं कि 1988 के आंदोलन के दौरान सरकार को किसानों के आगे घुटने टेकने पड़े थे, उस वक्त कि सरकार किसानों को अहमियत देती थी और उनकी बात सुनती थी, लेकिन आजकल की सरकारें अपनी हठधर्मिता पर उतारू हैं.

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