नई दिल्ली/गाजियाबाद: भारत में रक्षाबंधन का त्योहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. बहनें अपने भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधती हैं और भाई उनकी सुरक्षा का वचन देते हैं, लेकिन वहीं दूसरी ओर गाजियाबाद के मुरादनगर स्थित सुराना गांव में भाइयों की कलाइयां रक्षाबंधन पर सूनी रहती हैं. दरअसल, प्राचीन मान्यता के मुताबिक गांव में रक्षाबंधन मनाने पर अपशगुन होता है. surana village people never celebrate rakshabandhan
सुराना गांव निवासी राहुल सुराना ने बताया कि जनपद गांव के छबाड़िया गोत्र के लोग रक्षाबंधन के त्योहार को अपशगुन मानते हैं. सुराना गांव गाजियाबाद शहर से करीब 35 किलोमीटर दूर है. सुराना गांव को 11वीं सदी में सोनगढ़ के नाम से जाना जाता था. सैकड़ों साल पहले राजस्थान से आए पृथ्वीराज चौहान के वंशज सोन सिंह राणा ने हिंडन नदी के किनारे डेरा डाला था. जब मोहम्मद गौरी को पता चला कि सोहनगढ़ में पृथ्वीराज चौहान के वंशज रहते हैं, तो उसने रक्षाबंधन वाले दिन सोहनगढ़ पर हमला करके औरतों, बच्चों, बुजुर्ग और जवान युवकों को हाथियों के पैरों तले जिंदा कुचलवा दिया.
Raksha Bandhan Special : रक्षाबंधन पर सूनी रहती हैं इस गांव में कलाइयां, सैकड़ों वर्षों से नहीं मनाया गया त्योहार
गाजियाबाद के सुराना गांव में सैकड़ों साल बीत जाने के बाद भी पुरानी मान्यता के मुताबिक आज भी गांव में रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया (surana village people never celebrate rakshabandhan) जाता है. अगर कोई भी गांव में रक्षाबंधन का त्योहार मनाता है तो गांव में अपशगुन होता है. जानिए क्या है सुराना गांव की कहानी...
राहुल ने बताया की मोहम्मद गौरी द्वारा किए गए आक्रमण से पहले सोनगढ़ यानी कि सुराना गांव में रक्षाबंधन का त्यौहार बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता था. आक्रमण के बाद पूरा गांव खत्म हो गया था. हालांकि गांव की रहने वाली महिला जसकौर अपने पीहर गई हुई थी. इस दौरान जसकौर गर्भवती थी, जो कि गांव में मौजूद न होने के चलते जिंदा बची थी. जसकौर ने लकी और चुंडा को जन्म दिया. दोनों बच्चे बड़े होने के बाद वापस सोनगढ़ में आकर बसे और गांव बसाया. आज सोनगढ़ यानी कि सुराना गांव 12 हजार आबादी का गांव है. राहुल बताते हैं कि नई पीढ़ी ने पुरानी परंपरा को दरकिनार करते हुए रक्षाबंधन मनाने का प्रयास किया जिसके बाद गांव में कई घरों में अनहोनियाँ हुई. नई पीढ़ी भी अब रक्षाबंधन को अशुभ मानती है.
राहुल आगे बताते हैं कि सिर्फ गांव में रहने वाले लोग ही नहीं बल्कि जो लोग गांव छोड़कर शहरों में या फिर विदेश में बस गए हैं. वह लोग भी रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाते हैं. भूपेन्द्र यादव सेना में सेवाएं दे रहे हैं. उनका कहना है कि रक्षाबंधन के त्यौहार से पहले सभी सैनिकों की बहने कोरियर के माध्यम से राखियां भेजती हैं लेकिन हमारी राखी हमारे ड्यूटी स्थान पर नहीं पहुंचती है. जब साथी ही पूछते हैं कि तुम्हारे यहां से राखी क्यों नहीं आई है तब हमने उन्हें अपने गांव का इतिहास बताते हैं.