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जिन्होंने खून-पसीने से सींच कर खड़ा किया शहर, आज उन्हीं के आशियाने हो गए वीरान!

प्रवासी मजदूरों ने महानगरों में अपने छोटे-छोटे आशियाने बसाए, लेकिन आज ये आशियाने वीरान पड़े हैं. आबाद हैं तो वह बड़ी-बड़ी इमारतें जिनको मजदूरों ने अपने खून-पसीने से सींच कर बनाया था. पढ़ें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

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Published : Jun 6, 2020, 3:52 PM IST

Updated : Jun 6, 2020, 10:39 PM IST

migrant laborers not getting work, migration continues
प्रवासी मजदूर का घर

नई दिल्ली/गाजियाबादः एक बेहतर जीवन की आस में अपने गांव को छोड़कर प्रवासी मजदूर बड़े-बड़े महानगरों में आकर बसे. जिससे कि अपने और अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर सकें. महानगरों में प्रवासी मजदूरों ने छोटे-छोटे आशियाने बनाए, लेकिन लॉकडाउन ने इनसे इनका सब कुछ छीन लिया. आज प्रवासी मजदूरों के छोटे-छोटे आशियाने वीरान पड़े हैं.

वीरान दिख रहे प्रवासी मजदूरों के आशियाने

गाजियाबाद के इंदिरापुरम स्थित कानावनी गांव में करीब 300 झुग्गियां है. जिनमें बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल, झारखंड आदि प्रदेशों से आकर प्रवासी मजदूर रह रहे थे. जो कि यहां पर दिहाड़ी मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का पेट भरते थे, लेकिन लॉकडाउन प्रवासी मजदूरों पर संकट बनकर टूटा. लॉकडाउन ने प्रवासी मजदूरों से एक झटके में सब कुछ छीन लिया.

झुग्गियां होने लगी हैं खाली

कनावनी गांव की झुग्गी बस्ती में से करीब 50 फीसदी प्रवासी मजदूर अपने प्रदेशों को वापस लौट चुके हैं. यहां अधिकतर झुग्गियों में ताले लटके हुए हैं. कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन किया गया. लॉकडाउन के दौरान तमाम फैक्ट्रियां बंद हो गई. ऐसे में रोजगार प्रभावित हो गया. रोजगार ना मिलने के कारण प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटने लगे.

काम न मिलने से परेशान हैं मजदूर

ईटीवी भारत की टीम ने कुछ प्रवासी मजदूरों से बातचीत की. मजदूरों का कहना है कि अधिकतर लोग यहां से अपने घरों को वापस लौट चुके हैं, जो लोग यहां रह रहे हैं उनके सामने दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना किसी चुनौती से कम नहीं है. मजदूर हर सुबह दिहाड़ी की तलाश में जाते हैं, लेकिन काम ना मिलने के कारण निराश होकर लौटना पड़ता है.

छोटी-मोटी दुकान चलाने वाले भी परेशान

कुछ प्रवासी मजदूर झुग्गियों में ही छोटी मोटी सब्जी और किराने की दुकान चलाते हैं. वहीं अधिकतर प्रवासी मजदूर अपने घर लौट चुके हैं तो, ऐसे में उनकी बिक्री भी नहीं हो पा रही है. प्रवासी मजदूरों का कहना है कि लगातार रोजगार ना मिलने के कारण प्रवासी मजदूर अपने-अपने घरों को निकल रहे हैं.

हालांकि सरकार प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए तमाम कदम तो उठा रही हैं. लेकिन सरकार द्वारा उठाए गए कदम प्रवासी मजदूरों के लिए नाकाफी साबित हो रहे हैं. प्रवासी मजदूरों ने महानगरों में अपने छोटे-छोटे आशियाने बसाए लेकिन आज ये आशियाने वीरान पड़े हैं. आबाद हैं तो वह बड़ी-बड़ी इमारतें जिनको मजदूरों ने अपने खून-पसीने से सींच कर बनाया था.

Last Updated : Jun 6, 2020, 10:39 PM IST

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