नई दिल्ली/गाज़ियाबादः नये कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर सैकड़ों किसान गत नौ महीने से अधिक समय से धरने पर बैठे हुए हैं. इन किसानों की मांग से इतर गाज़ियाबाद के लोनी इलाके के कुछ किसान अधिग्रहित की गई भूमि के उचित मुआवजे नहीं मिलने से नाराज होकर, जमीन में समाधि लेने की तैयारी कर रहे हैं.
गाजियाबाद के एक गांव के लोग जिंदा समाधि लेने के लिए अपने लिए ही खेत में गड्ढे खोदने का काम कर रहे हैं. सुनने में यह बात काफी हैरान कर देने वाली लगती है, लेकिन है यह सच है. मामला दिल्ली से सटे लोनी के गांव का है. मुजफ्फरनगर में हुई किसान महापंचायत के बाद सोमवार को गाजियाबाद में किसानों की समाधि लेने की तैयारी से सब स्तब्ध हैं.
लोनी इलाके के मंडोला गांव के किसान एक खास वजह से खेत में गड्ढा खोदने के काम में लगे हुए हैं और कह रहे हैं कि 14 सितंबर को इन्हीं गड्ढों में जिंदा समाधि ले लेंगे. गाजियाबाद में मंडोला गांव के किसान पिछले कई सालों से मंडोला आवास योजना के तहत अधिग्रहित की गई भूमि के उचित मुआवजे की मांग कर रहे हैं. इनमें 6 गांव के किसान शामिल हैं.
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किसानों का कहना है कि पिछले कई सालों से धरना-प्रदर्शन भी किया है. कई बार तो आवास विकास परिषद के दफ्तर पर ताला भी लगा दिया. लगातार पंचायतें भी की गईं, लेकिन मांग पूरी नहीं हुई. अब यहां के किसानों ने जिंदा समाधि लेने का रास्ता अख्तियार किया है.
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रविवार को मुजफ्फरनगर में किसानों की एक बड़ी महापंचायत हुई, जिसके बाद गांव में किसान स्थानीय मुद्दों पर भी इस तरह के गंभीर निर्णय ले रहे हैं. किसानों ने साफ कहा है कि 14 सितंबर तक अगर मांग पूरी नहीं हुई तो जिंदा समाधि ले लेंगे.
मंडोला के पास खेतों में कई किसान गड्ढा खोदते हुए इन दिनों देखे जा सकते हैं. इन्हीं गड्ढों में यह जिंदा समाधि लेने की बात कर रहे हैं. इनका यह भी कहना है कि अगर संबंधित लोग चाहते हैं, कि यह जिंदा समाधि ना लें तो आकर इनकी मांग सुनी जाए.
यह मामला सियासी रंग भी ले रहा है. हालांकि कोई जनप्रतिनिधि अभी तक यह नहीं पहुंचा है और ना ही इस पर कुछ बोलने को तैयार है. इससे पहले भी इस मामले में सियासत होती रही है. लेकिन मुजफ्फरनगर में हुई किसान महापंचायत के बाद किसानों के इस अनोखे विरोध ने प्रशासन की चिंता बढ़ा दी है. क्योंकि गड्ढों की संख्या भी लगातार इलाके में बढ़ती जा रही है. हालांकि प्रशासन की तरफ से अभी इस पर कोई जवाब नहीं आया है. लेकिन पूर्व में प्रशासनिक अधिकारियों ने कई बार किसानों को आश्वस्त किया है कि उनकी मांगों को सरकार तक पहुंचाया गया है.